जयपुर ब्लास्ट केस: बिना गिरफ्तारी के 12 साल तक कस्टडी में रहा आरोपी, हाईकोर्ट ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए दी जमानत
“12 वर्षों की लड़ाई के बाद मेरे पति को रिहा होते देख खुशी हो रही है। ये साल मेरे और हमारे तीन बच्चों के लिए एक बुरे सपने की तरह रहा। विशेष रूप से, उच्च न्यायालय के आदेश को देखने के बाद अब हमें कुछ राहत की उम्मीदें रहे हैं।" ये कहना है शाहबाज अहमद की पत्नी सदाफ का। बीते गुरूवार को जयपुर बम विस्फोट मामले में शाहबाज को राजस्थान हाईकोर्ट ने जमानत दी थी।
35 वर्षीय सदफ लखनऊ में एक छोटा सा बुटीक चलाती हैं। वो कहती हैं, "हमारी सबसे छोटी बेटी उस समय केवल दो महीने की थी जब शाहबाज को गिरफ्तार किया। गया था। उसे अपने पिता की कोई याद नहीं है। इसी तरह, हमारा बड़ा बेटा जो अब 15 साल का है, अपने पिता की गिरफ्तारी के समय केवल तीन साल का था।" आगे वो कहती हैं, “मेरे लिए ये 12 साल हमारे बच्चों की परवरिश और बीमार माता-पिता की देखभाल करते हुए बीते। इन सालों मैं पति के लौटने का इंतज़ार करती रही। मेरे और मेरे बच्चों को ये 12 साल कोई नहीं लौटा सकता। जब वो जेल में थे, उन्होंने अपनी मां को खो दिया। हर बार जब मैं जाता और उससे मिलता तो वो आंसू बहाता था।“
गुरुवार को राजस्थान हाईकोर्ट ने 42 शाहबाज को जमानत दे दी। कोर्ट ने इस तथ्य पर आश्चर्य व्यक्त किया कि शाहबाज अहमद को 12 साल तक इस मामले में गिरफ्तार नहीं किया गया। भले ही वो हिरासत में थे। जस्टिस पंकज भंडारी की एकल पीठ ने उसे जमानत देते हुए कहा, 'यह वास्तव में आश्चर्यजनक है कि जब याचिकाकर्ता जेल में बंद था (मैं ''लैंगग्विशिंग'' शब्द का उपयोग कर रहा हूं क्योंकि याचिकाकर्ता बारह साल तक हिरासत में रहा और अंततः इन सभी मामलों में दोषी नहीं पाया गया) तो याचिकाकर्ता को इस मामले में गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया। जबकि वह बारह साल तक हिरासत में रहा है?'' जब पीठ ने राज्य से पूछा कि अहमद शाहबाज 12 साल तक अन्य मामलों के संबंध में हिरासत में था तो तब उसे इस एफआईआर के संबंध में गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया, तो अतिरिक्त महाधिवक्ता इस बारे में ''अनभिज्ञ'' थे?
2019 में अहमद के खिलाफ दर्ज एक अन्य एफआईआर के संबंध में पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया था। उस प्राथमिकी में ये आरोप लगाया गया था कि अहमद ने जेल अधिकारियों पर उनके द्वारा ली जा रही तलाशी में बाधा डालने के लिए हमला किया था। जबकि अहमद ने दावा किया कि वो जेल में यातना का शिकार हुआ। 27 जनवरी 2020 को राजस्थान हाईकोर्ट ने उसे जमानत देने से इनकार कर दिया था। इसके बाद याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पाया था कि तात्कालिक मामले के अजीबोगरीब तथ्य और परिस्थितियाँ, विशेषकर ये तथ्य कि याचिकाकर्ता को हिरासत में 11 चोट आई, उसे जमानत देने को उचित साबित करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की बेंच ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वो राज्य कैडर के एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी को याचिकाकर्ता के जेल में यातना देने की शिकायत पर जांच करने और इसमें दोषी पाए जाने वाले के खिलाफ उचित कार्रवाई के निर्देश दें।
पुलिस कार्रवाई को बर्बरता से भरा बताते हुए पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज की महासचिव कविता श्रीवास्तव ने आउटलुक से बातचीत में कहा, "राजस्थान पुलिस ने शाहबाज और उनके परिवार के बारह साल खराब कर दिए हैं। उनका संघर्ष बहुत बड़ा था। हम पुलिस के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग करते हैं। वो निर्दोष है, ये जानने के बावजूद भी रखा गया। राजस्थान सरकार के निर्देशानुसार जल्द ही जेल के अंदर हो रही अनियमितताओं को दूर करने के लिए एक समिति गठित करनी चाहिए।“
13 मई 2008 को जयपुर में सिलसिलेवार बम धमाके हुए थे जिसमें करीब 71 लोगों की मौत हुई थी। विशेष अदालत ने साल 2019 में चार अभियुक्तों को फांसी की सजा सुनाते हुए शाहबाज को बरी कर दिया था। जिसके बाद जांच एजेंसी ने जिंदा मिले बम को लेकर शाहबाज समेत अन्य के खिलाफ अलग से आरोप पत्र दाखिल किया था।