झारखंड को फिर झुलसाने की तैयारी
झारखंड में पिछले कुछ दिनों से आग सुलग रही है। पहले कुरमियों ने खुद को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की मांग को लेकर आंदोलन किया और बंद कराया। फिर मेलर समुदाय ने भी खुद को जनजाति का दर्जा देने की मांग पर जोर डालने के लिए जगह-जगह रेल-सड़क यातायात रोक कर राज्य का चक्का जाम कर दिया और अब स्थानीयता-नियोजन नीति घोषित करने को लेकर आंदोलन चल रहा है। आरक्षण जैसे सामाजिक मुद्दे को राजनीतिक चश्मे से देखना कितना खतरनाक होता है, यह पिछले महीने हरियाणा में हुए जाट आंदोलन के दौरान साफ हो गया। लेकिन झारखंड के राजनीतिक दल इससे सबक लेने के बजाय इस मुद्दे को हवा दे रहे हैं।
झारखंड अलग राज्य बनने के फौरन बाद यहां हुए डोमिसाइल आंदोलन ने पहले ही यहां भीतरी-बाहरी का विवाद खड़ा कर दिया है। झारखंड के लोग आज तक उस आंदोलन को भूल नहीं सके हैं। मूलवासी, 32 का खतियान और बाहरी जैसे शब्द पहली बार उसी आंदोलन के दौरान सुनाई पड़े थे। लगभग यही स्थिति एक बार फिर पैदा हो रही है। फर्क केवल इतना है कि पिछली बार बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी लेकिन इस बार कम से कम अब तक हिंसा नहीं हुई है।
झारखंड में यह आग सबसे पहले कुरमियों के आंदोलन से सुलगी। राज्य में कुरमियों की आबादी करीब 10 प्रतिशत है। आर्थिक रूप से संपन्न यह समुदाय खुद को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने की मांग कर रहा है। यह मांग पिछले कई साल से की जा रही है लेकिन इस बार दिल्ली से लेकर रांची तक यह मांग उठाई गई है। बंद तक बुलाया गया। झारखंड की सत्ता में भाजपा की सहयोगी पार्टी आजसू ने तो रैली कर 73 प्रतिशत आरक्षण की मांग कर दी। उधर मेलर समुदाय भी आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलित है। मुख्य रूप से खेती पर निर्भर इस समुदाय की आबादी संताल परगना में अच्छी-खासी है। यह समुदाय भी खुद को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग कर रहा है।
राज्य सरकार के सामने स्थिति बेहद विकट है। किसी भी जाति या समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने का अधिकार राज्य सरकार को नहीं है। इसकी लंबी प्रक्रिया है। समुदाय का सर्वे कराने के बाद उसकी रिपोर्ट केंद्र को भेजनी होती है और केंद्र ही इस मुद्दे पर निर्णायक फैसला ले सकता है। मुख्यमंत्री रघुबर दास इस मुद्दे पर अपना रुख अब तक साफ नहीं कर पाए हैं। हालांकि विधानसभा में सरकार ने घोषणा की है कि कुरमियों की मांग के बारे में केंद्र को रिपोर्ट भेजी जाएगी।
इन दोनों आंदोलनों के बीच झारखंड में स्थानीय नीति और नियोजन नीति का मुद्दा भी जोर-शोर से उठा है। इस मुद्दे पर विधानसभा पांच दिन तक बाधित रही। झारखंड मुक्ति मोर्चा और अन्य विपक्षी दलों का कहना है कि स्थानीय नीति और नियोजन नीति के अभाव में झारखंड के स्थानीय लोगों को नौकरियों में प्राथमिकता नहीं मिल रही। सरकार पर अनुसूचित जनजाति के स्थानीय लोगों को तीसरी और चौथी श्रेणी की सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता देने का दबाव है। इन आंदोलनों का परिणाम कुछ भी हो, झारखंड के सामाजिक ताने-बाने पर असर पडऩा तय है। मुख्यमंत्री रघुबर दास कहते हैं कि राज्य में आरक्षण की सीमा बढ़ाने का कोई प्रस्ताव नहीं है। स्थानीयता नीति पर वह दावा करते हैं कि इसे इसी साल घोषित किया जाएगा। उधर कांग्रेस नेता और डोमिसाइल आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभानेवाले उदय शंकर ओझा कहते हैं कि अन्य राज्यों की तरह झारखंड में भी स्थानीय नीति एक समान होनी चाहिए।