पर्दे के पीछे का व्यूह
दिल्ली में विधानसभा के चुनाव दो तरह से लड़े जा रहे हैं। एक, सार्वजनिक मंचों और सडक़ों पर तो दूसरा पर्दे के पीछे। बाहर की चुनावी लड़ाई तीनों प्रमुख पार्टियों,उनके चुनावी चेहरों तथा उनके उछाले मुद्दों के बीच है। तीनों चुनावी चेहरे जगजाहिर हैं। आम आदमी पार्टी के नेता और 49 दिन मुख्यमंत्री रहे अरविंद केजरीवाल, भ्रष्टाचार विरोधी अन्ना आंदोलन के दौर की केजरीवाल की पूर्व सहयोगी और अब भाजपा की मुख्यमंत्री पद की प्रत्याशी किरण बेदी तथा कांग्रेस के अजय माकन, हालांकि यह खबर लिखे जाने तक मुख्य मुकाबला केजरीवाल और बेदी के बीच ही दिख रहा है। सत्ता के इन तीनों दावेदारों के उछाले गए मुद्दों की बात आगे करेंगे, पहले जिक्र पर्दे के पीछे रचे जा रहे व्यूहों का। सियासत में दिलचस्पी रखने वाले पर्यवेक्षकों के लिए पर्दे के पीछे का खेल बाहर से ज्यादा दिलचस्प और पेचीदा है।
शुरू में इस पेचीदगी का एक उदाहरण देखिए, ग्रेटर कैलाश क्षेत्र से कांग्रेस की उम्मीद्वार शर्मिष्ठा मुखर्जी मैदान में हैं जो राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी की बेटी हैं। ग्रेटर कैलाश की चर्चा किरण बेदी के भी एक पसंदीदा चुनावी क्षेत्र के रूप में चली थी लेकिन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्रीय मंत्री हर्षवर्धन की सुरक्षित सीट कृष्णा नगर बेदी के लिए तजवीज की। इस चर्चा ने फिर जोर पकड़ लिया कि स्वास्थ्य मंत्रालय से अपेक्षाकृत कम महत्व के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय में स्थानांतरित और पिछली बार मुख्यमंत्री पद के प्रक्षेपित दावेदार हर्षवर्धन अपने आलाकमना की नजरे इनायत गंवा चुके हैं लेकिन इस मामले में जो चर्चा सार्वजनिक नहीं हुई वह और भी रोचक है। शर्मिष्ठा मुखर्जी के करीबी सूत्रों के अनुसार उनके महामहिम पिता प्रणव बाबू को खुश रखने के लिए भाजपा सरकार ग्रेटर कैलाश से पार्टी का मजबूत उम्मीदवार नहीं उतारना चाहती थी। उसी के आसपास राष्ट्रपति ने अध्यदेश राज के खिलाफ अपने अहम उद्गार भी जाहिरकर दिए। पर्दे के पीछे की कुछ और पेचिदगियां भी देखिए। रिलायंस उद्योग समूह में कार्यरत एक वरिष्ठ कर्मी के भाई प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतीश उपाध्याय का टिकट ऐन वक्त पर यह कहकर काटा गया कि उनपर पूरी दिल्ली में चुनाव करवाने की जिम्मेदारी रहेगी। इसके विरोध में उपाध्याय के समर्थकों ने भाजपा कार्यालय में हंगामा मचाकर खुल्लमखुल्ला अमित शाह के खिलाफ नारे लगाए। लोग पूछ रहे हैं कि अमित शाह के खिलाफ नारे लगाने का बल इन कार्यकर्ताओं ने किस शक्तिशाली वरदहस्त से पाया। यह नहीं कि किरण बेदी और आयातित नेताओं के थोपे जाने के बारे में कई पुराने भाजपा कार्यकर्ताओं और नेताओं ने जोरदार हंगामा तथा तीखी बयानबाजी की। दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी के पितामह शांतिभूषण ने अपनी ही पार्टी के अरविंद केजरीवाल के मुकाबले एक दिन किरण बेदी को मुख्यमंत्री पद के लिए ज्यादा योज्य बताया तो दूसरे दिन बेदी से मिलने से मना कर दिया। उधर कांग्रेस ने अपनी पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का चेहरा तो चुनाव प्रचार से ओझल किया ही प्रदेश अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली को भी किनारे लगा दिया। दीक्षित ने भी अपनी एक फुलझड़ी यह छोड़ी कि बहुमत न आने पर कांग्रेस फिर आम आदमी पार्टी को सरकार बनाने के लिए समर्थन दे सकती है।
मुद्दों की बात करें तो किरण बेदी ने जनता को बेहतर प्रशासन, केजरीवाल ने सस्ता बिजली-पानी देने की बात कही। वहीं माकन ने पिछले 15 सालों में दिल्ली में किए विकास कार्यों के आधार पर कांग्रेस को वोट देने की बात कही। चुनावी सभाओं में और जनता के बीच महिला सुरक्षा, अवैध कॉलोनियों को नियमित करने, कम दरों पर बिजली-पानी देना और दिल्ली को पूर्ण राज्य दिए जाने के मुद्दा तीनों ही पार्टियां कर रही हैं। किरण बेदी के लिए महिला सुरक्षा अहम है तो कांग्रेस के लिए सस्ती बिजली। कांग्रेस ने अपने मैनिफेस्टो में 200 यूनिट तक बिजली खर्च करने वालों को डेढ़ रुपया प्रति यूनिट बिजली देने का वादा किया है। (अभी यह सब्सिडी के साथ 2.80 रुपये है) पंद्रह साल सत्ता में रहने वाली कांग्रेस ने इससे पहले कभी बिजली दरों में कटौती की बात नहीं की थी। झुज्गी-बस्तियों के मुद्दे पर हाल ही में केंद्रीय कैबिनेट ने दिल्ली की 1639 अवैध कॉलोनियों में से 895 कॉलोनियों को नियमित कर दिया है। हालांकि नियमित करने के बाद इनमें कैसा विकास होगा इसकी कोई योजना नहीं है। अवैध कॉलोनियों में दिल्ली की 30 से 40 फीसदी आबादी रहती है,जो इन राजनीतिक पार्टियों के लिए बड़ा वोटबैंक है।
आरोपों की बात करें तो भाजपा अरविंद केजरीवाल को भगौड़ा कह रही है जो मुख्यमंत्री पद छोडक़र भाग गए थे तो केजरीवाल किरण बेदी को आंदोलन से भाग जाने के लिए भगौड़ा बोल रहे हैं। अजय माकन इन दोनों को मौकापरस्त बोल रहे हैं। दिल्ली के कांग्रेसी नेता डॉ. एके वालिया कहते हैं केजरीवाल की तरह किरण बेदी को भी सरकार चलाने का अनुभव नहीं है। वह भी केजरीवाल की तरह रुखस्त हो जाएंगी।