बक्सा में नहीं रहे बाघ
बाघ कम होने का कारण मानव बस्ती
वन विभाग के एक शीर्ष अधिकारी का कहना है कि हम ऐसा तो नहीं कह सकते कि बाघ बक्सा से विलुप्त हो रहे हैं लेकिन यह पक्का है कि वे बक्सा पर्वतीय ढलान की ओर बढ़ गए हैं। यह ढलान भूटान सीमा के काफी करीब है। सीमा के दोनों ही तरफ बाघ के आवास मौजूद हैं। उन्होंने बताया कि वन और पशु चारागाहों के पास मानव बस्ती के कारण बाघ अपने मूल आवास से दूर चले गए जो कभी उत्तर बंगाल में समूचे बक्सा वन में फैला था। बाघों की आबादी की पिछली गणना में उनके मल अपशिष्ट के विश्लेषण और पैरों के निशान के आधार पर यह पता चला कि बीटीआर में तीन बाघ हैं। यह अभयारण्य भूटान और असम में मानस बाघ अभयारण्य के वनों की सीमाओं से सटा है। कैमरों की मौजूदगी के बावजूद इनकी तस्वीरें उपलब्ध नहीं होने से कई वन्यजीव जानकारों ने बक्सा में बाघों की मौजूदगी पर शंका जाहिर की है।
घना है जंगल
कैमरे में अब तक किसी बाघ की तस्वीर क्यों नहीं आई, इस बारे में पूछे जाने पर एक अन्य वन अधिकारी ने कहा कि जंगल बहुत घना है। राज्य वन्यजीव बोर्ड के सदस्य विश्वजीत रॉय चौधरी ने कहा कि उन्हें भूटान सीमा के पास बाघों की मौजूदगी के निशान मिले थे लेकिन वह इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं हैं कि ये निशान वहां रहने वाले बाघों के हैं या नहीं। गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल के बक्सा बाघ अभयारण्य के अंदर घनी वनस्पतियां हैं और बाघ कम हैं ऐसे में बाघ को देख पाना सच में मुश्किल कांम है। वर्ष 2010 की बाघ गणना के अनुसार जलपाईगुडी जिले में 750 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस वनक्षेत्र में करीब 12 से 15 बाघ होने की बात सामने आयी थी लेकिन स्थानीय लोगों एवं वन्यजीव कार्यकर्ताओं ने इस अध्ययन की आलोचना की। उनका कहना था कि उन्हें बीटीआर में बामुश्किल बाघ नजर आए।