तृणमूल की महुआ मोइत्रा ने भी दी नागरिकता कानून को चुनौती, सुप्रीम कोर्ट में याचिका
नागरिकता संशोधन कानून को चुनौती देने वालों में तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा भी शामिल हो गई हैं। उन्होंने इसके खिलाफ शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। महुआ के वकील ने मुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबडे से मामले की जल्दी सुनवाई का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि या तो इस मामले की सुनवाई आज यानी शुक्रवार को की जाए या 16 दिसंबर को। इस पर जस्टिस बोबडे ने उनसे मेन्शनिंग अफसर के पास जाने के लिए कहा।
नागरिकता संशोधन कानून में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 तक आने वाले गैर-मुस्लिम लोगों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है। हालांकि इसके लिए उन्हें यह साबित करना पड़ेगा कि इन देशों में उन्हें धार्मिक आधार पर प्रताड़ित किया गया है। संसद के दोनों सदनों में इससे संबंधित विधेयक पारित होने के बाद गुरुवार की रात राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इसे मंजूरी दे दी।
इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने भी जताई है आपत्ति
इससे पहले गुरुवार को इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने कानून के खिलाफ यह कहते हुए याचिका दायर की कि यह संविधान में दिए गए समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है, क्योंकि नए कानून में शरणार्थियों को धर्म के आधार पर नागरिकता देने का प्रावधान है। याचिका में यह भी कहा गया कि यह कानून संविधान के बुनियादी ढांचे के खिलाफ है। इसमें सिर्फ हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को नागरिकता देने की बात है। इस तरह इसमें मुसलमानों के साथ भेदभाव किया गया है।
अहमदिया और शिया भी पाकिस्तान-अफगानिस्तान में प्रताड़ित
लीग का कहना है कि उसे शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने पर कोई एतराज नहीं है, लेकिन इसमें धर्म के आधार पर भेदभाव पर उसे आपत्ति है। भारत में अवैध रूप से आने वाले लोग अपने आप में एक वर्ग हैं, इसलिए धर्म, जाति या राष्ट्रीयता के आधार पर उनमें भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। इस कानून में अहमदिया, शिया और हजारा समुदाय के अल्पसंख्यकों का जिक्र नहीं है जबकि पाकिस्तान और अफगानिस्तान में ये भी प्रताड़ित हैं। अफगानिस्तान पाकिस्तान और बांग्लादेश को चुने जाने का कोई तार्किक आधार भी नहीं है।
मुसलमानों से भेदभाव असंवैधानिक और अमानवीय
याचिका में कहा गया है कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) लागू किए जाने के बाद अवैध रूप से भारत आने वाले मुसलमानों के खिलाफ तो कार्रवाई होगी, लेकिन हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को नागरिकता दे दी जाएगी। सरकार पूरे देश में एनआरसी लागू करने की बात कह रही है, तो जो मुसलमान इसमें अपने कागजात नहीं दे पाएंगे उन्हें विदेशी ट्रिब्यूनल के सामने अपनी नागरिकता सिद्ध करनी पड़ेगी। वह भी सिर्फ इसलिए क्योंकि वह मुसलमान है। नए कानून में किया गया यह भेदभाव ना सिर्फ असंवैधानिक है बल्कि अमानवीय भी है।