पश्चिम बंगाल में राज्यपाल और ममता सरकार के बीच चरम पर ‘संघर्ष’
पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार के बीच जारी खींचतान अपने चरम पर पहुंच गई है। पिछले दो दिनों से पश्चिम बंगाल विधानसभा को लगातार दो दिनों बुधवार और गुरुवार को निलंबित कर दिया गया, क्योंकि राज्यपाल के पास छह बिल लंबित हैं, जिससे विधानसभा के पास काम ही नहीं हैं। राज्यपाल धनखड़ का कहना है कि बिलों पर अपनी सहमति देने से पहले जो सरकार से स्पष्टीकरण मांगा था, उसका जवाब नहीं दिया है। वे कहते हैं कि इसके बजाय सरकार ने कुछ स्पष्टीकरण के साथ एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी को भेजा।
धनखड़ ने मंगलवार को ट्वीट किया, “बतौर राज्यपाल मैं संविधान के नियमों का पालन करता हूं और आंख मूंद कर कोई फैसला नहीं ले सकता। मैं न तो रबर स्टांप हूं और न ही पोस्ट ऑफिस। मैं संविधान के दायरे में बिलों की जांच करने और बिना देरी के कार्रवाई करने के लिए बाध्य हूं। इस पर सरकार की ओर से देरी के कारण चिंतित हूं।”
राज्यपाल के पास लंबित हैं ये विधेयक
राज्यपाल की सहमति के लिए जिन बिलों का इंतजार है, वे इस प्रकार हैं: पश्चिम बंगाल (लिंचिंग रोकथाम) विधेयक, 2019; अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए पश्चिम बंगाल आयोग का विधेयक, 2019; पश्चिम बंगाल लिफ्ट, एस्केलेटर और ट्रैवेलर्स बिल, 2019; पश्चिम बंगाल नगरपालिका (संशोधन) विधेयक, 2019; पश्चिम बंगाल अपार्टमेंट स्वामित्व (संशोधन) विधेयक, 2019 और हिंदी विश्वविद्यालय, पश्चिम बंगाल विधेयक, 2019।
राज्य सरकार और राज्यपाल दोनों एक-दूसरे पर इस गतिरोध के लिए आरोप लगा रहे हैं, जिससे सदन को अचानक स्थगित कर दिया गया है। इस बीच राज्यपाल गुरुवार को राज्य विधानसभा का दौरा करने के लिए गए, तो मुख्य गेट (जो उनके आने-जाने के लिए नामित है) को बंद देखकर हैरान हो गए। बाद में उन्हें सदन में दूसरे गेट से प्रवेश कराया गया, लेकिन वहां स्पीकर या डिप्टी स्पीकर उन्हें व्यक्तिगत रूप से लेने आने के लिए नहीं मिला। इससे नाराज धनखड़ ने कहा कि उन्हें अध्यक्ष ने दोपहर के भोजन के लिए आमंत्रित किया था, लेकिन अंतिम समय में इसे रद्द कर दिया गया। उन्होंने कहा, “यह एक अपमान है और साजिश की ओर इशारा करता है।”
उन्होंने आगे कहा कि “विधानसभा स्थगित होने का मतलब यह नहीं है कि यह बंद है।” उन्होंने कहा, “नामित फाटक के बंद होने की घटना ने लोकतांत्रिक इतिहास को शर्मसार किया है।” कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अब्दुल मन्नान का कहना है कि सरकार राज्यपाल द्वारा उठाए गए सभी सवालों के जवाब देने के लिए बाध्य है। माकपा विधायक दल के नेता सुजान चक्रवर्ती भी इस घटनाक्रम से हैरान हैं।
यह दरार इसी साल सितंबर में उस वक्त शुरू हुई जब निवर्तमान राज्यपाल जाधवपुर विश्वविद्यालय परिसर में छात्रों के आंदोलन से केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो को बचाने के लिए पहुंचे। तनाव की यह खाई अब और गहरी हो गई है, जिसे पाटने के लिए कोई भी पक्ष उत्सुक नहीं है। ममता सरकार का शुरू से ही राज्यपाल के प्रति असहयोगात्मक रवैया रहा है। जब वह राज्य प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक के लिए उत्तर बंगाल गए, तो कोई सामने नहीं आया। धनखड़ को स्थानीय विपक्षी नेताओं के साथ बैठक करनी पड़ी थी।
जब भी राज्यपाल राज्य में अहम संस्थानों का दौरा करते हैं, तो इस तरह का पैटर्न दिखता है। कलकत्ता विश्वविद्यालय में गुरुवार को उनके दौरे के दौरान इसी तरह का वाकया हुआ, जैसा कि उन्होंने विधानसभा भवन में सामना किया।
विश्वविद्यालय पहुंचने पर राज्यपाल सह चांसलर ने कुलपति के कार्यालय और सीनेट के बैठक कक्ष को बंद पाया। उन्हें लेने के लिए कोई मौजूद नहीं था। फिर से, विश्वविद्यालय ने स्पष्टीकरण दिया कि राज्यपाल के कार्यालय को सीनेट की निर्धारित बैठक को रद्द करने के बारे में सूचित कर दिया गया था।
जैसे-जैसे हालात में तनातनी की स्थिति में बढ़ोतरी हो रही है, वैसे-वैसे मीडियाकर्मियों के पास खबरें आ रही हैं। धनखड़ लगातार मीडिया से अपनी परेशानियां साझा कर रहे हैं। उन्हें पैटर्न में कुछ 'षड्यंत्र' का संदेह है। जबकि दोनों पक्ष मामले को भुनाना चाहते हैं, लेकिन राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच विवादित मुद्दा धीरे-धीरे संवैधानिक संकट में तब्दील होता जा रहा है।