आरक्षण के किस नियम को लागू नहीं कर पाई यूपी सरकार, जानें क्या था प्लान
यूपी में पंचायत चुनाव के लिए योगी आदित्यनाथ सरकार की आरक्षण व्यवस्था को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पलट दिया है। पूर्ववर्ती अखिलेश यादव सरकार के फैसले को पलटते हुए योगी सरकार ने 1995 के आधार पर सीटों के आवंटन के लिए आरक्षण की व्यवस्था लागू करने का फैसला किया था। इसे लेकर हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी। सोमवार को कोर्ट ने साल 2015 को आधार बनाकर आरक्षण प्रणाली लागू करने का निर्देश दिया है।
योगी सरकार की आरक्षण सूची में पंचायत की ऐसी सीटें भी शामिल हो गई थीं, जहां बीते 25 साल में कभी आरक्षण लागू नहीं हुआ था। कोर्ट का आदेश आने के बाद अब नए सिरे से आरक्षण प्रणाली लागू होगी। ऐसे में योगी सरकार द्वारा बीते दिनों जारी किए गए आरक्षण की स्थिति का बदलना तय माना जा रहा है।
साल 2015 के पंचायत चुनाव के पहले अखिलेश यादव की सरकार ने पंचायती राज नियमावली में 10वां संशोधन किया था, जिसके तहत ग्राम प्रधान और ग्राम पंचायत सदस्यों के पदों के पहले की आरक्षण प्रणाली को शून्य कर दिया था और नए सिरे से साल 2011 की जनगणना के आधार पर सीटें तय की गई थीं। इस नियमावली के आधार पर साल 2021 की जनगणना होने के बाद 2025 में होने वाले पंचायत चुनाव में इस साल (2021) के और साल 2015 के आरक्षण की स्थिति को शून्य कर दिया जाएगा।
पंचायती राज नियमावली में 11वां संशोधन कर अखिलेश यादव सरकार के फैसले को योगी सरकार ने बदल दिया था। योगी ने 10वां संशोधन समाप्त करते हुए पंचायत की सीटों के लिए आरक्षण प्रणाली लागू करने में साल 1995 को आधार बनाया। इस फॉर्म्युले के तहत साल 1995 से जो सीटें कभी भी आरक्षण के दायरे में नहीं आई थीं, उन्हें भी आरक्षित कर दिया गया था। इस प्रणाली के मुताबिक, पंचायत की जो सीटें 1995 से लेकर साल 2015 तक कभी भी अनुसूचित जनजातियों, अनुसूचित जातियों, पिछड़ा वर्ग और महिलाओं के लिए आरक्षित थीं, उन्हें इस बार उसी वर्ग के लिए आऱक्षित नहीं किया जाएगा।
रोटेशन प्रणाली की सबसे खास बात ये है कि जो भी ग्राम या जिला पंचायत किसी वर्ग के लिए कभी आरक्षित नहीं हुई थीं, उन्हें पहले उसी कैटिगरी के लिए आरक्षित किया जाएगा। लेकिन हाई कोर्ट ने इसे बदलते हुए पुरानी पद्धति से ही सीटों के बंटवारे में आरक्षण व्यवस्था लागू करने के लिए कहा है।
प्रदेश सरकार के 11 फरवरी 2011 के शासनादेश पर हाई कोर्ट में पीआईएल दाखिल की गई थी और दलील दी गई कि इस बार की आरक्षण सूची 1995 के आधार पर जारी की जा रही है, जबकि 2015 को आधार वर्ष बनाकर आरक्षण सूची जारी की जानी चाहिए।