जाट हिंसा: हरियाणा में जितनी सेना तैनात थी उससे पाक से लड़ाई हो सकती थी
प्रकाश सिंह ने आउटलुक को दिए सााक्षात्कार में कहा कि दंगों में सबसे ज्यादा आठ जिले प्रभावित हुए। इन हर एक जिलों में करीब 300 से 400 लोगों ने कमेटी से मुलाकात की। हमने करीब 2200 बयान दर्ज किए। शिकायतों के आधार पर अधिकारियों से भी चर्चा की गई। राेहतक में आईबी की टीम से भी बातचीत की गई। प्रकाश सिंह के अनुसार हरियाणा में जाट समुदाय को आरक्षण देेने का वहीं के कुछ अन्य समुदायों ने जमकर विरोध किया। एेसे विरोध के बीच हिंसा और उग्र हुई। सैनी समुदाय ने तो यहां तक जाटों की तुलना बंदर से कर डाली। आरक्षण पर समुदायों का अापस का ऐसा विरोध काफी लंबे समय से चला आ रहा था। इस साल फरवरी में इस विरोध ने काफी हिंसक रुप ले लिया। एक भाजपा सांसद ने तो अन्य समुदाय के लोगों को जाटों के खिलाफ खड़ा कर दिया। जाट सरकार से अपने लिए आरक्षण की मांग पर हिंसा पर उतारु थे वहीं वह दूसरेे समुदाय भी इस मसले पर उनसे उलझ्ा रहेे थेे। राजपूूत भी जाट आरक्षण के खिलाफ थे। प्रकाश सिंह के अनुसार दंगों में जाटों ने सरकार के साथ साथ गैर जाट समुदायों पर भी अपना गुस्सा उतारा। उनकी दुकानों को निशाना बनाया।
हिंसक भीड़ ने सैनी और पंजाबी समुदाय पर ज्यादा गुस्सा उतारा। भिवानी में राजपूत और जाट आपस में भिड़ गए। सेना की भूमिका पर भी कमेटी ने सवाल उठाए। कुछ लोगों ने कमेटी से कहा कि सेना ने सही ढंग से काम नहीं किया। पाकिस्तान के साथ एक छोटे युद़ध में जितनी सेना लगार्इ्र जा सकती है, उतने जवान हरियाणा में उतार दिए गए थे। कहीं कहीं तो एसपी और डीएसपी की मौजूदगी में हिंसा हुई। मुुरथल सामूहिक बलात्कार पर प्रकाश सिंह ने कहा कि इस पर जाट समुदाय की किसी ग्रामीण्ा महिला ने कोई शिकायत नहीं की। हालांकि हमने मुरथल की बजाय दंगों की वजह पर ज्यादा ध्यान केंद्रित किया। एक घटना अहम है। एक डिप्टी एसपी ने जुरासिक पार्क नामक एक जगह मेंं दंगाईयों को उत्पाद मचाने की खुली छूट दे दी। इस पर रिपोर्ट में काफी गौर किया गया। दंगों पर प्रशासन पूरी तरह फेल रहा। वह सजग और सतर्क रहता तो इतना जान माल का नुकसान नहीं होता। चंडीगढ़ से कुछ वरिष्ठ अधिकारियों को जो सहायक सचिव स्तर के थे, उन्हें दंगों को रोकने रोहतक भेजा गया। इन्हें डीएम के अधिकार दिए गए। यह एक असहज स्थिति है।
प्रकाश सिंह कहते हैं कि किसी भी प्रकार की हिंसा को रोकने में स्थानीय प्रशासन सबसे ज्यादा कारगर होता है। सेना और अन्य पदस्थ अधिकारी तो बाद के विकल्प हैं। राज्य सरकार के आला अधिकारी अगर और सजग होते तो हालात पर एक हद तक काबू पाया जा सकता था।
करीब 71 दिन में तैयार हुई इस जांच रिपोर्ट में पुलिस महकमे के प्रशासनिक अधिकारियों की दंगों में भूमिका पर सवाल उठाए गए । साथ ही हरियाणा पुलिस को किसी भी चुनौती का सामना करने में नाकाबिल करार दिया गया है। रिपोर्ट में प्रकाश सिंह ने पुलिस सुधार के उपाय तुरंत प्रभाव से करने की सलाह सरकार को दी है।