क्या है 'ऑपरेशन लोटस' जिसके बूते कर्नाटक में सरकार बना सकती है भाजपा
कर्नाटक में त्रिशंकु विधानसभा होने के बाद यह स्थिति अभी स्पष्ट नहीं है कि किसकी सरकार बनेगी। बीजेपी को 104 सीटें मिली है लेकिन सरकार बनाने के लिए जरूरी 112 के आंकड़े से अभी वह दूर है। कांग्रेस-जेडीएस ने भी मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश किया है। भाजपा भी दावे में पीछे नहीं है। फिलहाल सबकी निगाहें राज्यपाल वजुभाई वाला पर टिकी हैं कि वह किसे आमंत्रित करते हैं। लेकिन कर्नाटक के इतिहास में इस तरह की स्थिति होने पर एक बार भाजपा सरकार बना चुकी है।
जेडी(एस) के एचडी कुमारस्वामी ने भाजपा पर जेडीएस के विधायकों को 'खरीदने' के लिए पैसे ऑफर करने का आरोप लगाया है। इससे पहले भी भाजपा पर ऐसे आरोप लगे थे, 2008 के विधानसभा चुनाव में।
'ऑपरेशन लोटस'
2008 में कुल 224 सीटों में से बीजेपी 110 सीटें हासिल कर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी लेकिन बहुमत के जादुई आंकड़े (113) से तीन सीटें पीछे रह गई थी। उस वक्त इस विधानसभा की तर्ज पर ही कांग्रेस को 79 सीटें मिली थीं, जबकि जेडीएस 28 सीटों पर सिमट गई थी। उस परिस्थिति से निपटने के लिए और बहुमत पाने के लिए बीजेपी ने 'ऑपरेशन लोटस' फॉर्मूले को बनाया। हालांकि शुरुआत में 'ऑपरेशन लोटस' भाजपा के चुनाव प्रचार का हिस्सा था, जिसमें घर-घर जाकर भाजपा की नीतियों के बारे में बात करना शामिल था। लेकिन बाद में इसका नाम जोड़-तोड़ करके सरकार बनाने से जुड़ गया और इसे 'ऑपरेशन लोटस' फॉर्मूला कहा जाने लगा।
इस फॉर्मूले के तहत कहा जाता है कि उस दौरान मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने धन-बल के दम पर विपक्षी कांग्रेस और जेडीएस विधायकों को तोड़ा। इस दौरान 2008-13 के बीच में इन दोनों दलों के करीब 20 विधायकों ने इस्तीफा देकर उपचुनाव लड़ा। नतीजतन बीजेपी को अपेक्षित बहुमत मिल गया।
लेकिन इस बार स्थितियां थोड़ी अलग हैं क्योंकि कांग्रेस और जेडीएस ने हाथ मिला लिया है। नतीजतन हॉर्स ट्रेडिंग की स्थितियों से इनकार नहीं किया जा सकता। भाजपा फिर से ऑपरेशन लोटस का सहारा लेगी या नहीं ये देखना बाकी है हालांकि उस पर खरीद-फरोख्त करने के आरोप लगने शुरू हो गए हैं।
भाजपा के पास दूसरा विकल्प
एक अन्य रणनीति बीजेपी के लिए यह हो सकती है कि जब राज्यपाल उन्हें सरकार बनाने की इजाजत दे और संख्याबल साबित करने का आदेश दे, उसके बाद सदन में विश्वासमत के दौरान कांग्रेस और जेडीएस के कुछ विधायक अनुपस्थित रहें। हालांकि, यह आसान नहीं होगा और ऐसी उम्मीद है कि कांग्रेस और जेडीएस दोनों ही अपने सदस्यों के लिए व्हिप जारी करेगी। इससे संवैधानिक संकट पैदा होगा और पूरा मामला कोर्ट में जाएगा। हालांकि, इससे बीजेपी को नई रणनीति के लिए कुछ राहत जरुर मिल सकती है।