क्या है पत्थलगढ़ी आंदोलन, जो छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में जोर पकड़ रहा है
छत्तीसगढ़ में आदिवासी इलाके जशपुर, सरगुजा और बस्तर के कुछ हिस्से में पत्थलगढ़ी आंदोलन के बहाने नया बखेड़ा शुरू हो गया है। झारखण्ड से सटे जशपुर से शुरू हुआ पत्थलगढ़ी आंदोलन उग्र होता जा रहा है। आंदोलन को खत्म करने के मकसद से कुछ लोगो ने दो दिन पहले पत्थलगढ़ी को मिटाना चाहा तो मामला संवेदनशील हो गया और आंदोलन से जुड़े लोगों ने दो दिन पहले सरकारी अफसरों को बंधक बना लिया था। पुलिस ने सोमवार को इस मामले में दो आंदोलनकारियों को गिरफ्तार किया है। दोनों ही रिटायर्ड सरकारी अधिकारी हैं। मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह ने पत्थलगढ़ी आंदोलन के बारे में साफ कर दिया है कि कानून के दायरे से बाहर काम करने वाले के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
क्या है पत्थलगढ़ी आंदोलन
आदिवासियों की पुरानी परंपरा है पत्थलगढ़ी। पहले आदिवासी इसका उपयोग अवांछित लोगों को गांव के अंदर घुसने से रोकने के लिए किया करते थे लेकिन बीते कुछ सालों से इसमें काफी तेजी आई है। इसके तहत से गांव का सीमांकन किया जाता है और पत्थर पर लिखकर बाहरी लोगों के प्रवेश को वर्जित बताया जाता है। खूंटी और बंदगांव क्षेत्र में जो पत्थलगढ़ी हो रही है, वह सरना समाज की पत्थलगढ़ी से अलग है। वैसे पत्थलगढ़ी आदिवासी समाज की परंपरा है, लेकिन अब इसी की आड़ में इन दिनों गांव के बाहर पत्थलगढ़ी की जा रही है।
क्यों शुरु हुआ वर्तमान बवाल
गृह मंत्रालय ने नक्सल प्रभावित जिलों की सूची से जशपुर जिले का नाम जैसे ही हटाया, यहां आदिवासियों के हक की आवाज बुलंद करने के लिए पत्थलगढ़ी की प्रथा शुरू हो गई। पत्थलगढ़ी में लिखे शब्दों से सरकार के कान खड़े हो गए हैं। 22 अप्रैल को सुबह 10 बजे से बगीचा विकासखण्ड के बछरांव में तीन गांव के हजारों आदिवासी सर्व आदिवासी समाज के बैनर तले पत्थलगढ़ी स्थापित किया। सिहारडांड, बुटंगा, बछरांव इन तीन गांवों में संविधान की बातों को लिखते हुए जल , जंगल और जमीन पर आदिवासियों के पूर्ण अधिकार नहीं मिलने की बात ग्रामीण आदिवासी कह रहे हैं। इनका कहना है कि हमें पांचवी अनुसूची का लाभ नहीं दिया जा रहा है और पत्थलगढ़ी लगाकर यह गांव आदिवासी ग्रामसभा की सरकार से शासित होंगे। मतलब साफ है कि ये गांव अब गैर आदिवासियों और सरकार के हस्तक्षेप से खुद को मुक्त करने की घोषणा कर चुके हैं।
क्या लिखा गया है पत्थरों में
बछरांव में तो बाकायदा प्रशासन के मना करने के बावजूद युवकों ने पत्थलगढ़ी तैयार कर दिया है। इन आदिवासियों की मानें तो ये डॉक्टर भीमराव आंबेडकर के दिए संवैधानिक अधिकारों की बात लिखकर गैर आदिवासियों को बताना चाहते हैं कि यह इलाका आदिवासियों का है और रूढ़ि प्रथा के अनुसार ग्राम पंचायत के अलावा आदिवासियों की ग्रामसभा से ही सारा शासन किया जाएगा। ये भारतीय संविधान के अनुच्छेद 244 , अनुच्छेद 19 के अलावा सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को आधार बनाकर ग्राम सरकार की स्थापना करना चाहते हैं। इनके द्वारा पत्थलगढ़ी में लिखा गया है कि अनुसूचित क्षेत्रों में केंद्र सरकार या राज्य सरकार की एक इंच जमीन नहीं है। गैर आदिवासी हों या सरकार के अधिकारी आदिवासी गांवों में बिना ग्राम सभा की अनुमति के कोई भी काम नहीं कर सकेंगे। इनके नेता कहते हैं कि अगर किसी ने अनुमति नहीं ली तो उसे बंधक बनाया जाएगा और उसका क्या करना है, इसका फैसला ग्रामसभा में किया जाएगा।
कांग्रेस ने कहा- जनता का सरकार के खिलाफ विद्रोह
प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भूपेश बघेल ने कहा है कि पत्थलगढ़ी की घटनाएं जनविद्रोह के खतरनाक संकेत दे रही हैं। उन्होंने कहा, ‘पत्थलगढ़ी की जो खबरें आ रही हैं वो विचलित करने वाली और डराने वाली है। पत्थलगढ़ी का मतलब यह है कि अब आम जनता विद्रोह करने पर आमादा है और वह अपने गांव में रमन सरकार के अधिकारियों और उनकी पार्टी के नेताओं को घुसने तक नहीं देना चाहती। इसके लिए पिछले 15 वर्षों में रमन सरकार की नीतियां और विकास का उनका मॉडल जिम्मेदार है।‘ भूपेश बघेल ने कहा है कि कमीशनखोरी में डूबी सरकार ने आदिवासियों की कभी चिंता नहीं की और उनके हित में बने क़ानूनों पर भी अमल नहीं किया।
झारखंड में भी है असर
झारखंड में भी पत्थलगढ़ी की समस्या सरकार का सरदर्द बन गई है। झारखंड के आदिवासी बहुल चार जिलों के ग्रामीण इलाकों में हो रही पत्थलगढ़ी की खबरों के बाद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने राज्य सरकार को इस मसले पर कड़ाई बरतने के निर्देश दिए हैं। राज्य के खूंटी, गुमला, लोहरदगा और चाईबासा इलाकों में कुछ आदिवासी संगठन न तो स्कूल चलने दे रहे हैं, ना ही सरकारी अधिकारियों को गांवों में प्रवेश करने दे रहे हैं। आदिवासी ग्राम सभा ने फरमान जारी किया कि पत्थलगढ़ी किए गए गांवों में ना सिर्फ बाहरी लोगों का प्रवेश वर्जित किया गया है बल्कि अब इनकी जद में बच्चों के स्कूल भी आ गए हैं। इसके चलते इन दिनों यहां बच्चों की पढ़ाई भी बंद है। वहीं आदिवासी समाज उद्धारकों की मानें तो ये सब कुछ संविधान के तहत कर रहे हैं। इसमें उन्हें यह अधिकार दिया गया है कि वे गांवों में अपना कानून और विधान लागू कर सकते हैं। स्कूलों में अब ग्रामसभा अनुमोदित पाठ्यक्रम ही पढ़ाए जाएंगे।