तमिलनाडु बाढ़ राहत या नरेंद्र मोदी का राजनीतिक दांव
जलवायू परिवर्तन का प्रकोप और गलत शहरी योजना का भीषण खामियाजा उठा रही तमिलनाडु की राजधानी चैन्ने में राहत कार्य जोरों से चल रहा है। इस राहत को लेकर हो रही राजनीति पर भी चर्चा जोरों पर हैं। केंद्र ने जो मदद की घोषणा की, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो एक हजार लाख करोड़ रुपये की मदद की घोषणा की, उसने तमिलनाडु सरकार के साथ-साथ कई राज्य सरकारों को परेशान किया है। इस नाराजगी का खुला इजहार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने किया। उन्होंने मोदी सरकार पर दोहरा रवैया अख्तियार करने का आरोप लगाते हुए कहा, पश्चिम बंगाल इतने समय से मदद की मांग कर रहा लेकिन कोई सुनवाई नहीं है। हम अगस्त में नरेंद्र मोदी से मिले थे और बंगाल के 12 बाढ़ से तबाह जिलों के लिए 21,000करोड़ रुपये की राहत राशि की मांग की थी, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। वहीं, तमिलनाडु के लिए सारे दरवाजे खोल दिए हैं।
गौरतलब है कि मोदी सरकार की तमिलनाडु को मुहैया कराई जा रही मदद को राज्य में होने वाले विधानसभा चुनावों से भी जोड़ कर देखा जा रहा है। इसमें बहुत से संगठनों को तमिलनाडु में भी केंद्र सरकार के राहत दखल का पैटर्न वही नजर आ रहा है, जैसे जम्मू-कश्मीर में आई भीषण बाढ़ विभीषिका के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था। कश्मीर की तर्ज पर ही नरेंद्र मोदी ने यहां भी खुद हवाई सर्वे किया और बड़ी राहत राशि की घोषणा की। चैन्ने में राहत कार्य में लगी सामाजिक कार्यकर्ता दीप्ति सुकुमार को इस बात पर भी नाराजगी है कि केंद्र सरकार और उसकी संस्थाओं ने इतनी देर से क्यों सक्रियता दिखाई। केंद्रीय आपदा प्रबंधन से जुड़ी संस्थाओं और मौसम की भविष्यवाणी करने वाली संस्थाओं तक ने सही समय चेताया नहीं। जब चैन्ने एक बार पहले बारिश की भीषण मार में डूब चुकी थी, कायदे से तभी केंद्र सरकार को चेत जाना चाहिए था। सेना भी अगर पहले ही दिन मदद में उतर आती तो बहुत सी जानें बचाई जा सकती थी। चैन्ने के तांबरम इलाके में राहत काम में जुटे शिक्षक सेमल वैलनगनी को आशंका है कि कहीं केंद्र सरकार राहत की राजनीति न कर रही हो। ठीक वैसे ही जैसी उसने कश्मीर बाढ़ के दौरान राज्य सरकार के खिलाफ राजनीति की थी।