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27 July 2025

प्रथम दृष्टि: न्यू एब्नार्मल

यूनान की पौराणिक कथा के एक पात्र नार्सिसस ने जब अपने चेहरे का अक्स झील के शांत पानी में देखा, तो अपनी खूबसूरती पर इस कदर फिदा हुआ कि सब कुछ भूल कर अपनी छवि को टकटकी लगाए देखता रह गया। खुद से बेइंतहा मुहब्बत करने वालों को उसके नाम से जाना जाता है। हर दौर में खुद पर मुग्ध ‘स्वप्रेमियों’ की बड़ी जमात रही है, लेकिन डिजिटल युग में लगता है, मानो आत्ममुग्ध होने के सारे रिकॉर्ड टूट रहे हैं। तमाम खामियों को छुपाने के औजार और ऐप मनुष्य के हाथ लग गए हैं। उनके माध्यम से वास्तविकता से परे खुद को खुद से बेहतर दिखाने का जुनून दीवानगी की हद तक बढ़ रहा है। अब ‘सीइंग इस बिलिविंग’ यानी जो दिखे वही रुचे, के मायने पूरी तरह बदल गए हैं। जरूरी नहीं कि जो दिखता है, हकीकत में वह वैसा ही हो।

सोशल मीडिया के उफान के दौर में रील और सेल्फी की बढ़ती और सस्ती लोकप्रियता की बदौलत असली और आभासी दुनिया के बीच की दूरियां सिमटने लगी हैं। लोग अपने निजी जीवन की हकीकतों से उलट ‘परफेक्ट’ छवि पेश करने के लिए सारी सीमाएं तोड़ रहे हैं। वे न सिर्फ सोशल मीडिया पर अपनी छद्म छवि दिखाने के लिए तमाम हथकंडे अपना रहे हैं बल्कि नए-नए एप्लीकेशन और फिल्टर के जरिए आभासी दुनिया में खुद को उस रूप में पेश कर रहे हैं, जिसका उनके असली जीवन से कोई वास्ता नहीं है। मनोवैज्ञानिकों की मानें तो हमेशा भ्रम की दुनिया में रहने की ऐसी प्रवृति का जीवन पर नकारात्मक असर होता है, क्योंकि यह उन्हें असल जिंदगी की सच्चाइयों से दूर ले जाती है।

हालांकि खुद को सुंदर और जवां दिखाने की फितरत इंसान में मानव सभ्यता की शुरुआत से ही मौजूद रही है। लोगों के दिल में हमेशा सदाबहार दिखने की इसी ललक को भुनाने के लिए अरबों रुपये की कॉस्मेटिक इंडस्ट्री का जन्म हुआ, जहां ऐसे सपने बेचे गए, जो कभी साकार नहीं हो सकते थे। क्रीम से सांवले को गोरा बनाने का झूठा वादा, तो कभी उम्र रोकने के लिए तथाकथित एंटी-एजिंग कही जाने वाली दवाइयों का बाजार। उम्र ढलना स्वाभाविक प्रक्रिया हो, पर इस बाजार ने इसे रोकने जैसे कई दावे किए। इसके लिए स्टेरॉयड के प्रयोग से लेकर सर्जरी तक का सहारा लिया गया। प्लास्टिक सर्जरी और फेसलिफ्ट से लेकर लिपोसक्शन और बोटॉक्स तक नित नए आविष्कार किए जाते रहे, ताकि लोगों को समाज के स्थापित सौंदर्य मानकों के अनुसार ढाला जा सके। कभी किसी का नाक-नक्श बदल दिया गया, तो किसी की पूरी काया। किसी को महज त्वचा गोरी होने से ही खूबसूरती का लाइसेंस मिला, तो कहीं सुंदर दिखने के लिए जवान होना अनिवार्य बताया गया। ऐसे मापदंडों को आंखें मूंदकर स्वीकार करने वाले यकीनन यह मानने को तैयार नहीं हैं कि हर उम्र की अपनी खूबसूरती होती है और आकर्षक दिखने के लिए किसी खास उम्र का होना या अपनी उम्र छुपाना आवश्यक नहीं है।

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आज बाजार में एंटी-एजिंग दवाइयों और क्रीम का अरबों रुपये का बाजार फल-फूल रहा है। उन्हें बनाने वाले दावा करते हैं कि वे लोगों के हसीं और जवां दिखने के सपने को साकार कर रहे हैं। उनका प्रयोग करने वालों के दिल में हसरत रहती है कि ये दवाइयां वैसा ही जादू दिखाएंगी, जैसा उन्हें बनाने वाले दावा करते हैं। उन्हें उम्मीद रहती है कि उम्र ढलने की प्रक्रिया थमे न भी तो धीमी अवश्य हो जाए।

लेकिन, ऐसी दवाइयां खासकर स्टेरॉयड का प्रयोग अक्सर घातक होता है। पिछले दिनों एक चर्चित अभिनेत्री की असामयिक मौत के बाद खबर आई कि वह एंटी-एजिंग दवाइयों का लंबे समय से प्रयोग कर रही थी। फिल्म और मनोरंजन उद्योग की हस्तियों में हमेशा युवा दिखने का विशेष दवाब होता है। उन्हें लगता है कि अगर परदे पर गलती से भी उनकी झुर्रियां दिख जाएंगी, तो उनके प्रशंसकों की संख्या रातोरात कम हो जाएगी। इसलिए आज कंप्यूटर ग्राफिक्स की मदद से कई बुजुर्ग हो चले अभिनेताओं को परदे पर 24 साल का युवा दिखाया जाता है।

फिल्टर वाली जिंदगी के इस दौर में ऐसा फितूर सिर्फ शारीरिक रूप से सुंदर दिखने या दिखाने का नहीं है। आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दौर में ऐसे ऐप भी उपलब्ध हैं, जिनके माध्यम से हर व्यक्ति मनचाही प्रतिभा हासिल कर सकता है। कोई चैट जीपीटी की मदद से लेखक बनने का ख्वाब पाल सकता है, तो कोई आर्किटेक्ट बनने का। गूगल से लेकर ग्रोक तक अनगिनत माध्यम हैं, जो लोगों की ख्वाहिशों को बस एक कीबोर्ड की कमांड से पूरा करने में समर्थ हैं। इन सबका दूरगामी परिणाम क्या होगा? क्या तकनीक का जादुई डंडा एक दिन मनुष्य की रचनात्मक प्रतिभा को कुंद कर देगा? यह सोचने वाली बात है कि अगर वह ‘न्यू नार्मल’ होगा तो ‘न्यू एब्नार्मल’ क्या होगा?

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TAGS: Reel trending, reel culture, reality vs expectation, the new abnormal
OUTLOOK 27 July, 2025
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