उपराष्ट्रपति धनखड़ ने फिर कहा- संसद ही सर्वोच्च है
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्रों को संबोधित किया। इस संबोधन के दौरान कहा कि भारत की संसद ही सर्वोच्च है। उन्होंने लोकतंत्र की ताकत और संवैधानिक संस्थाओं के महत्व पर प्रकाश डाला, साथ ही इस बात को भी रेखांकित किया कि संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों का हर शब्द राष्ट्रहित से प्रेरित होता है।
अपने संबोधन में उपराष्ट्रपति ने संसद को लोकतंत्र का मंदिर बताया और कहा कि यह देश के लोगों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करती है। उन्होंने कहा, "संसद सर्वोच्च है और जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि ही परम स्वामी हैं। देश के हित में निर्णय लेना उनकी जिम्मेदारी है।" धनखड़ ने छात्रों से लोकतांत्रिक मूल्यों को समझने और संवैधानिक ढांचे के प्रति सम्मान विकसित करने की अपील की।
उन्होंने संवैधानिक पदाधिकारियों की भूमिका पर भी जोर दिया। उपराष्ट्रपति ने कहा कि ऐसे पदों पर बैठे लोगों की कथनी और करनी राष्ट्रहित को ध्यान में रखकर ही होती है। उन्होंने युवाओं को देश के विकास में सक्रिय भूमिका निभाने और संवैधानिक संस्थाओं में आस्था बनाए रखने का संदेश दिया।
धनखड़ ने यह भी कहा कि भारत का लोकतंत्र दुनिया के लिए एक मिसाल है और इसे और मजबूत करने के लिए युवाओं को जागरूक और सक्रिय रहना होगा। शिक्षा के महत्व पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय न केवल ज्ञान के केंद्र हैं, बल्कि समाज को दिशा देने वाले विचारों के स्रोत भी हैं। इस अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति और अन्य गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे। उपराष्ट्रपति के इस संबोधन को छात्रों और शिक्षकों ने उत्साहपूर्वक सुना। धनखड़ के इस बयान को संसद और लोकतांत्रिक मूल्यों की सर्वोच्चता को रेखांकित करने वाला माना जा रहा है, जो मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में भी महत्वपूर्ण है।
इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 142 को लागू करने के शीर्ष न्यायालय के फैसले का जिक्र करते हुए धनखड़ ने गुरुवार को कहा कि यह लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ एक परमाणु मिसाइल बन गया है, जो न्यायपालिका के लिए चौबीसों घंटे उपलब्ध है। अनुच्छेद 142 सर्वोच्च न्यायालय को किसी भी मामले में “पूर्ण न्याय” सुनिश्चित करने के लिए व्यापक शक्तियां प्रदान करता है।