कश्मीरी पंडित की मौत पर घाटी के मुस्लिमों ने मनाया मातम
कौल की मौत के बाद पुलवामा जिले के वाईबुग में कश्मीरियत मानो फिर जिंदा हो गई और इसे सबने महसूस भी किया। कई लोगों का कहना है कि कश्मीरियत ही इस अशांत राज्य में बहुसंख्यक मुस्लिमों और अल्पसंख्यक हिंदुओं के बीच एक मजबूत जुड़ाव बनाए हुए है। आतंकवाद की शुरूआत के बाद से कश्मीरी पंडितों को लगातार राज्य से जाने के लिए धमकियां दी जाती रहीं, लेकिन कौल ने कभी घाटी से पलायन करने के बारे में नहीं सोचा और अब 1000 परिवारों वाले इस गांव में लोग उनकी मौत पर गमजदा हैं।
कौल विद्युत विकास विभाग में कार्यरत थे और 1999 में सेवानिवृत्त हुए। लंबी बीमारी के बाद पिछले शुक्रवार को उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके घर में उनकी बेटी रेनू और दामाद विनोद हैं। उनकी मौत की खबर के बाद पड़ोसी उनके घर पर जमा होने लगे, जिसने सुना अफसोस करने चला आया। गांव के प्रमुख गुलाम नबी, निसार अहमद और मोहम्मद अकबर तो कौल की बातें याद करके इस कदर रो रहे थे मानो उनका कोई अजीज इस दुनिया से रूख्सत हो गया हो। अकबर ने कहा, वह मेरे परिवार के भी मुखिया थे। पूरा गांव हर महत्वपूर्ण मसले पर उनकी सलाह लिया करता था और उनका फैसला आखिरी होता था। इस गांव में आठ कश्मीरी पंडितों के परिवार हैं। वर्ष 1990 के बाद आतंकवाद की आंधी ने कई स्थानों पर कश्मीरी पंडितों की जड़ें उखाड़ दीं, लेकिन यहां बसे लोगों ने कभी जम्मू या किसी दूसरी जगह जाने के बारे में नहीं सोचा।
विनोद ने बताया, यह उनका निर्णय था कि वह यह स्थान नहीं छोड़ेंगे। विनोद ने स्वयं भी कभी पलायन नहीं किया। शनिवार को जम्मू में रह रहे राम जी कौल के बेटे और तीन अन्य बेटियों के यहां पहुंचने के बाद पड़ोसी मुस्लिम परिवारों ने अपने घरों के दरवाजे उनके रिश्तेदारों के रूकने के लिए खोल दिए। शनिवार को उनके अंतिम संस्कार में अधिकतर संख्या में मुस्लिम ही जमा हुए और श्मशान पर उनके दाह संस्कार के लिए लकडि़यां एकत्रित करते दिखे।