भाजपा सांसद की अध्यक्षता वाली समिति ने कहा, ट्रांसजेंडर होना शर्म की बात नहीं
संसद की सामाजिक न्याय व सशक्तिकरण पर बनी स्टैंडिंग कमेटी ने ट्रांसजेंडर समुदाय के सशक्तिकरण व अधिकारों की बात की है। भाजपा सांसद रमेश बैस की अगुआई में बनी समिति ने सिफारिश की है कि ट्रांसजेंडर समुदाय को बगैर सर्जरी और हॉर्मोन में बदलाव के अपना जेंडर चुनने की आज़ादी होनी चाहिए।
शुक्रवार को ट्रांसजेंडर समुदाय (अधिकारों की सुरक्षा) बिल 2016 लोकसभा में पेश किया गया। समिति ने कहा कि बिल में दी गई ट्रांसजेंडर की परिभाषा उनके अधिकारों का उल्लंघन करती है। उसका कहना था कि ट्रांसजेंडर की परिभाषा अवैज्ञानिक है और सिर्फ शारीरिक लक्षणों की तरफ इशारा करती है। समिति ने यह भी सिफारिश की है कि बिल के चैप्टर 1 में उनके खिलाफ होने वाली हिंसा को देखते हुए 'भेदभाव' की परिभाषा भी देनी चाहिए। यह भी सिफारिश की गई है कि केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और सिविल सोसायटी को ट्रांसजेंडर के बारे में जागरुकता पैदा करनी चाहिए।
समिति ने कहा, ''ये बिल ट्रांसजेंडर लोगों में विश्वास पैदा करेगा कि ये एक ऐतिहासिक बदलाव है। हम ट्रांसजेंडर समुदाय को ये बता रहे हैं कि उनके खिलाफ होने वाले भेदभाव की लड़ाई में वह लोग अकेले नहीं हैं। ये साझा संघर्ष है। ट्रांसजेंडर अलग लोग नहीं हैं। ट्रांसजेंडर होना, गे या लेस्बियन होना शर्म की बात नहीं है। शर्म की बात है इंसानों से चिढ़ना और कट्टर होना। धारा 377 के तहत ट्रांसजेंडर को अपराधी मान लिया जाता है। कम से कम बिल में उनकी शादी और पार्टनरशिप संबंधी अधिकारों की बात की जाए।''