एक्सक्लुसिव इंटरव्यू- बाबा रामदेव ने पतंजलि आयुर्वेदिक उत्पादों को बनाया है हंसी का पात्र: आईएमए अध्यक्ष
भारत में आधुनिक चिकित्सा के डॉक्टरों के राष्ट्रीय स्वैच्छिक संगठन इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने कोविड -19 के इलाज के लिए बाबा रामदेव द्वारा एक आयुर्वेदिक दवा कोरोनिल विकसित करने के दावे का कड़ा विरोध किया है। आउटलुक के साथ एक साक्षात्कार में आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ जे ए जयलाल ने आरोप लगाया कि रामदेव का दावा झूठ का पुलिंदा है और इस तरह के समारोह में स्वास्थ्य मंत्री की उपस्थिति समाज में गलत संदेश देगी। अंश:
आपको क्यों लगता है कि बाबा रामदेव और उनके पतंजलि आयुर्वेद द्वारा कोविड -19 के इलाज के लिए एक आयुर्वेदिक दवा विकसित करने का दावा भ्रामक है?
सबसे पहले यह एक समारोह में घोषणा की गई थी कि यह पोस्ट कोविड -19 जटिलताओं के उपचार, रोकथाम में उपयोगी पहली साक्ष्य-आधारित दवा है। इस तरह के झूठे दावे, विशेष रूप से इस महामारी के समय में गंभीर चिंता का कारण है। एक आम व्यक्ति यह विश्वास करना शुरू कर देगा कि कोरोनिल उसका इलाज करेगा। इससे भारत में केवल मृत्यु दर में वृद्धि होगी। हमने प्रतिक्रिया नहीं दी थी जब बाबा रामदेव ने दावा किया था कि यह एक इम्युनिटी बूस्टर है।
इसके अलावा, विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमाणन के लिए दावा भ्रामक है क्योंकि डब्ल्यूएचओ ने कभी भी दवा की प्रभावशीलता और चिकित्सीय मूल्य को प्रमाणित नहीं किया है।
लेकिन कंपनी ने जयपुर के एक अस्पताल में 95 एसिम्प्टोमेटिक रोगियों पर अच्छी तरह से नैदानिक परीक्षण किया है और इसका परिणाम एक मेडिकल जर्नल में प्रकाशित हुआ है। क्या आपको क्लिनिकल ट्रायल की वास्तविकता पर संदेह है?
जर्नल में प्रकाशित पेपर को लेकर कई सारी दिक्कतें हैं। पेपर ही कहता है कि यह 95 एसिम्प्टोमेटिक रोगियों पर किया गया एक पायलट अध्ययन है। यदि यह एक पायलट अध्ययन है तो सबूत-आधारित दवा होने का दावा नहीं किया जा सकता है। एक देश में जहां बहुत सारे कोविड -19 पॉजिटिव मरीज़ हैं केवल 95 एसिम्प्टोमेटिक रोगियों को लिया गया है। जहां 50 को एक प्लेसबो मिला, जबकि 45 लोगों को दवा दी गई।
नहीं, मेरा सवाल यह है कि अगर नमूना आकार छोटा है, तो क्या आपको परीक्षण की विधि में कोई दोष मिला है?
हाँ। एक एसिम्प्टोमेटिक रोगी कोविड -19 संक्रमण से पांच से सात दिनों के भीतर किसी भी दवा का सेवन किए बिना ठीक हो जाता है। प्रकाशित पेपर यह नहीं बताता है कि जब कोई व्यक्ति ट्रायल के लिए स्वयंसेवक बना तब कबसे उसके भीतर कब संक्रमण पैदा था। उदाहरण के लिए मान लें कि यदि किसी व्यक्ति ने संक्रमण विकसित होने के चार दिन बाद और दूसरा व्यक्ति परीक्षण में पहले दिन शामिल हुआ, तो परिणाम अलग-अलग होना तय है।
पेपर के साथ दूसरी समस्या यह है कि शोधकर्ताओं में से एक पतंजलि ही है। यह दवा का निर्माता है, अनुसंधान का प्रायोजक है, और फिर शोध पत्र का एक हिस्सा भी है। बाबा रामदेव के दावे ने पतंजलि आयुर्वेदिक उत्पादों को इस देश में हंसी का पात्र बना दिया है।
ट्रायल रिजल्ट पेपर से यह भी पता चलता है कि उपचार समूह में शामिल 45 लोग प्लेसबो समूह में शामिल 50 रोगियों की तुलना में उच्च-संवेदनशीलता सी-रिएक्टिव प्रोटीन (hs-CRP), IL-6 और टीएनएफ-α के सीरम स्तर में महत्वपूर्ण गिरावट को दर्शाते हैं। क्या यह दवा का लाभ नहीं दिखाता है?
सबसे पहले आपको बता दें कि पेपर ट्रायल में प्रवेश के समय स्वयंसेवकों के एचएस-सीआरपी, आईएल -6 और टीएनएफ- α के सीरम स्तर के बारे में कुछ नही बताता है। दूसरा 99 प्रतिशत एसिम्प्टोमेटिक रोगियों में इन तीन संकेतकों का सीरम स्तर सामान्य रहता है और उन्हें उपचार की आवश्यकता नहीं होती है। उपचार की आवश्यकता तब होती है जब तीन संकेतक सामान्य सीमा से ऊपर जाते हैं। जहां तक उनकी सीमाओं में बदलाव का सवाल है, यह किसी भी स्वस्थ व्यक्ति में कुछ दिनों के बाद होता रहता है।
कोविड -19 की कई आधुनिक दवाएं अपने दावों पर खरा नहीं उतर पाईं। ऐसे ही उदाहरणों में से एक है रेमेड्सवियर। इसके क्लिनिकल ट्रायल में कोई भारतीय स्वयंसेवक नहीं था लेकिन यह अभी भी हमारे उपचार प्रोटोकॉल में शामिल था। बाद में, डब्ल्यूएचओ के परीक्षण ने पुष्टि की कि यह उपचार में प्रभावी नहीं है। इस बीच, कंपनी ने बड़ा लाभ कमाया। आईएमए ने कभी उनके खिलाफ क्यों नहीं बोला?
आपको बता दें कि आईसीएमआर ने शुरू में कहा था कि कोविड -19 के लिए हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को निवारक दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाना चाहिए। वही आईसीएमआर ने बाद में कहा कि यह एक प्रभावी दवा नहीं है। लेकिन यह एक शोध-आधारित दृष्टिकोण है। अनुसंधान से पता चलता है कि आज के लिए जो सच है वह कल के लिए सच नहीं हो सकता है। जब आगे के शोध बताते हैं कि एक दवा उपचार के लिए उपयोगी नहीं है, तो इसे उपचार से हटा दिया जाता है। लेकिन पायलट अध्ययन के आधार पर गलत और भ्रामक दावा करना गलत है।
इसके अलावा, मैं आपको बता दूं कि किसी भी मंत्री ने रेमेड्सवियर के लॉन्च में भाग नहीं लिया था और यह भी नहीं कहा था कि यह एक अच्छी दवा है। मेरा अनुरोध है कि विज्ञान को एक विज्ञान रहने दें और इसे राजनीति से नहीं जोड़ा जाना चाहिए।
क्या आपको लगता है कि स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने लॉन्च समारोह में भाग लेकर आचार संहिता का उल्लंघन किया है?
हमारे आचार संहिता के अनुसार, एक मेडिकल डॉक्टर गुप्त दवा या एक व्यापार नाम को बढ़ावा नहीं दे सकता है। एक देश में बहुत सारे सामाजिक मुद्दे होते हैं। किसी विशेष निजी एजेंसी के लिए एक विशेष दवा के प्रचार में स्वास्थ्य मंत्री के होने की क्या आवश्यकता थी? वह एक अनुकरणीय व्यक्ति हैं और इस तरह के समारोह में उनकी उपस्थिति समाज को एक गलत संदेश देगी।
हम भी बहुत चिंतित हैं कि बाबा रामदेव ने कहा कि आधुनिक मेडिकल प्रेक्टिशनर मेडिकल आतंकवादी हैं। यह माननीय स्वास्थ्य मंत्री की उपस्थिति में किसी के द्वारा जारी किया जाने वाला बहुत अपमानजनक बयान है।
लेकिन यह आरोप लगाया जाता है कि आधुनिक चिकित्सा हमेशा वैकल्पिक चिकित्सा के फायदों पर सवाल उठाती है क्योंकि आप इसे एक प्रतियोगी के रूप में देखते हैं। आप क्या कहते हैं?
नहीं, हम उनके प्रतिस्पर्धी नहीं हैं। इस देश में आयुर्वेद की अच्छी परंपरा है। लेकिन यह गलत दावा न करें कि आप कोरोनिल लेते हैं और सब कुछ ठीक हो जाएगा। ये गलत संदेश आप लोगों को देने जा रहे हैं।
आप सर्जरी करने के लिए वैकल्पिक चिकित्सा के चिकित्सकों को अनुमति देने पर क्यों आपत्ति जताते हैं?
अगर वे अपनी तकनीक विकसित कर सर्जरी करते हैं तो हमें कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन समस्या यह है कि वे आधुनिक चिकित्सा से एनेस्थीसिया और दवा लेते हैं और फिर दावा करते हैं कि ये उनके अपने तरीके हैं। यही दिक्कत है।
उन्हें शोध करना चाहिए, सबूत-आधारित परिणामों के साथ आना चाहिए और फिर कुछ करना चाहिए। हम आयुर्वेद या पारंपरिक या वैकल्पिक चिकित्सा के किसी भी रूप के खिलाफ नहीं है। हम अपनी सामाजिक चिंता के कारण इसका विरोध कर रहे हैं।
हम वैकल्पिक चिकित्सा में लोगों का समर्थन करने के लिए अपने हाथ बढ़ाने के लिए तैयार हैं। कृपया आयुर्वेद की महिमा को सामने लाएं। हम केवल इन नौटंकी और झूठे दावों के खिलाफ हैं।