“आप और भाजपा दोनों जनता की आंखों में धूल झोंक रही है”
दिल्ली में विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। चुनाव में कांग्रेस के मुद्दे, रणनीति और अंदरूनी कलह, केजरीवाल सरकार के कामकाज को लेकर कांग्रेस के नवनियुक्त चुनाव प्रभारी कीर्ति आजाद से चंदन कुमार ने बातचीत की। मुख्य अंशः
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस किन मुद्दों को लेकर जनता के बीच जाएगी?
अभी जब सभी बैठेंगे, तो एजेंडा तय होगा। जहां तक फिलहाल बात है, तो हाल में अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित करने का जुमला दिया गया। हमारी सरकार आई, तो उसे पूरा करेगी। कनवर्जन और डेवलपमेंट शुल्क भी नहीं लिया जाएगा। अनधिकृत कॉलोनियों के नाम पर ये लोग जनता की आंखों में धूल झोंक रहे हैं। सबसे पहली बात है कि इन्होंने चुनाव से दो महीने पहले घोषणा की। फिर कहते हैं कि संसद में पास करा देंगे। डीडीए का कहना है कि इन सभी का सर्वे होने में तीन से चार महीने लगेंगे। तब तक चुनाव आ जाएंगे। जब चुनाव खत्म हो जाएगा, तो यह भी खत्म हो जाएगा। फिर अगले चुनाव में इस मुद्दे को उठाएंगे। केंद्र में लगभग 6 साल से भाजपा की सरकार है और दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार को लगभग पौने पांच साल हो गए। तो चुनाव के पहले ये लुभावने सपने क्यों दिखाते हैं?
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन सुधरा, लेकिन उसके बाद अंदरूनी कलह जो सामने आई, उसका कितना असर पड़ेगा?
पहली बात तो कोई अंदरूनी कलह नहीं है। अगर है, तो अंदरूनी कलह नेताओं के बीच होती है, जो वोट देने वाला होता है, वह कार्यकर्ता होता है। वही जाकर वोट देता है।
मुख्य मुद्दा बिजली-पानी को बता रही आप सरकार। इस पर आपका क्या कहना है?
देखिए न पानी कहां है? कहां मिल रहा है पानी? 24 घंटे बिजली किसके समय आई? शीला दीक्षित के समय आई। ये लोग अभी दिल्ली में कुछ भी करके उसका ढिंढोरा पीटते हैं। सबसे पहले तो ये बताएं कि जो लोग दिल्ली में रहते हैं, उनका सम्मान करना कब सिखेंगे। कभी तो अरविंद केजरीवाल कहते हैं कि पूर्वांचली 500 रुपये का टिकट लेकर आते हैं और लाखों रुपये का इलाज कराकर चले जाते हैं। मनोज तिवारी कहते हैं कि दिल्ली में अपराध करने वाले 80 फीसदी बाहरी हैं। तो भाई मनोज तिवारी जी आप क्या हैं? इस तरह से उनका अपमान करना उचित नहीं है।
ऐसा नहीं लगता है कि कांग्रेस दिल्ली में चुनावी तैयारियों को लेकर देर से जगी?
ऐसा नहीं है कि देर से शुरू हुआ। कार्यकर्ता तो काम कर रहे हैं और हमारे प्रभारी चाको साहब लगातार बैठक कर रहे थे। अलग-अलग जिलों में जा रहे थे।
हरियाणा में हुड्डा साहब को देर से कमान सौंपी गई, अगर यह फैसला पहले लिया गया होता, तो नतीजे अलग हो सकते थे। क्या ऐसा दिल्ली में भी नहीं लगता है आपको?
कोई देर नहीं हुई। शीला दीक्षित जी के निधन के बाद उनका रिप्लेसमेंट ढूंढ़ना भी बड़ी चुनौती है। आखिर उनके जैसे कद के नेता को तलाशना बड़ी बात है।