इंटरव्यू - सोहम शाह : " हिन्दी सिनेमा को आगे बढ़ना है तो स्क्रिप्ट पर बहुत ध्यान देना होगा"
सोहम शाह हिंदी सिनेमा में चर्चित नाम बनकर उभरे हैं। सोहम शाह ने महारानी, तुम्बाड़, दहाड़, तलवार जैसी फिल्मों और वेब सीरीज में अपने शानदार अभिनय ने एक अलग पहचान बनाई है। वेब सीरीज महारानी और दहाड़ में उनका काम सराहनीय है। सोहम शाह ने अभिनय की कोई पारंपरिक ट्रेनिंग नहीं ली और न ही उनका कोई फिल्मी बैकग्राउंड है। बावजूद इसके सोहम शाह की कामयाबी लोगों को प्रेरणा दे रही है। सोहम शाह से उनके जीवन और फिल्मी करियर के बारे में आउटलुक से मनीष पाण्डेय ने बातचीत की।
साक्षात्कार से मुख्य अंश :
आपने किन परिस्थितियों में अपनी शुरुआत की ?
मेरा जन्म राजस्थान के श्रीगंगानगर में हुआ। मुझे बचपन से ही सिनेमा का शौक था। सिनेमाघर में फिल्म देखने का अलग ही क्रेज था। मुझ पर शाहरुख खान की फिल्म दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे का गहरा प्रभाव पड़ा। एक नई दुनिया खुल गई थी सामने। मन में इच्छा हुई कि कुछ ऐसा ही काम मैं भी करूं। लेकिन मैं जिस परिवार से आता हूं, वहां आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। जिम्मेदारियां बहुत थीं। इस कारण अभिनय मेरी पहली प्राथमिकता नहीं था। मैं बिजनेस करता था। बिजनेस में ही मेरा जीवन बीत रहा था।
अभिनय की तरफ आना किस तरह से हुआ ?
मैंने न कभी रंगमंच किया और न ही किसी एक्टिंग स्कूल से पढ़ाई की। जवानी तक मैंने कभी एक्टिंग नहीं की थी।मैं तो बिजनेस में व्यस्त था। जब मेरी आर्थिक स्थिति ठीक हुई तो मन में विचार आया कि अब अपने सपने को पूरा करना चाहिए। तब मैं मुंबई आया और मैंने अभिनय की दुनिया को खोजना, खंगालना शुरू किया। मुम्बई एक बड़ी दुनिया है, जहां हजारों लोग अपने सपने को सच करने आते हैं। यदि आप अनजान हो, अपरिपक्व हो तो आपका संघर्ष लंबा होता है। मैंने जीतोड़ मेहनत और लगन से काम किया। इसका नतीजा यह निकला कि देर से सही,मुझे पहचान मिली।
मुंबई में काम पाने के लिए किन चुनौतियों का सामना किया?
मुम्बई में मेरी यात्रा काफी संघर्षपूर्ण रही है। जब आप गैर फिल्मी पृष्ठभूमि से आते हैं तो आपको कई स्तर पर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। यह तो मेरा नसीब था कि मैं कर गया। अन्यथा यहां बेहद प्रतिभावान कलाकार संघर्ष करते हुए खत्म हो जाते हैं, उन्हें एक अवसर तक नहीं मिलता। मैं एक तरफ अपनी एक्टिंग की क्राफ्ट को निखारने का काम कर रहा था तो दूसरी तरफ मुंबई में टिके रहने के लिए काम ढूंढता था। दोनों में संतुलन बनाना कठिन था। मैं सात आठ साल तक तनावपूर्ण स्थिति में रहा।बार बार विचार आता था कि सब छोड़कर वापस चला जाऊं। मुझे लगता था कि मैं सही दिशा में प्रयास कर रहा हूं लेकिन कोई मुझे काम नहीं दे रहा था। दो साल तक मेरे पास कोई काम नहीं था।मगर मेरे आगे अन्य कोई विकल्प भी नहीं था। वापस जाने का मतलब होता कि सपने की मौत। उन्हीं दिनों मैं तुम्बाड़ नाम की फिल्म बना रहा था। मुझे इस फिल्म पर बहुत भरोसा था। नसीब से यह फिल्म सफल रही और मेरे लिए रास्ते खुल गए।
अपनी अभी तक की यात्रा को किस तरह देखते हैं?
मैं अपनी यात्रा को लेकर संतुष्ट हूं। मैंने कई बार कहा है कि मैं मुंबई खाली हाथ आया था। मुझे अभिनय का कुछ ज्ञान नहीं था। फिर भी आज मुझे पसंद किया गया है। मुझे काम मिला है और मेरी सराहना हुई है। इसके लिए मैं स्वयं को सौभाग्यशाली मानता हूं। मैंने देखा है कि लोग प्रतिभाशाली होने के बावजूद काम हासिल नहीं कर पाते। काम मिलता है तो उन्हें दर्शक स्वीकार नहीं करते। अपने आस पास की स्थिति को देखने और समझने के बाद, मुझ में काम के प्रति संतोष है।
आने वाले समय में किस तरह का काम करना चाहेंगे?
मैं कॉमेडी फिल्मों में काम करना चाहता हूं। मुझे कॉमेडी फिल्में बहुत पसन्द हैं। मैं चाहता हूं कि कॉमेडी फिल्मों में भी अपना प्रभाव छोड़ पाऊं। इसके अतिरिक्त मैं एक्शन फिल्में करना चाहता हूं।यह तमन्ना लम्बे समय से मेरे अंदर है। मुझे लगता है कि अब वह समय आ गया है कि मैं अपने सपनों को खुलकर जी सकूंगा।
एक अभिनेता के तौर पर आप के सामने आज किस तरह की चुनौतियां हैं?
आज सबसे बड़ी चुनौती है एक अच्छी स्क्रिप्ट का मिलना। पहले के जमाने में लेखक बहुत फोकस के साथ लिखते थे। उन्हें किरदार, भाषा, कहानी की गहरी समझ होती थी।यही कारण है कि उन फिल्मों का असर आज पचास साल बाद भी कम नहीं हुआ है। आज के लेखकों में भटकाव बहुत है। वह दर्शकों को कमतर आंकते हैं।इस कारण कहानियों में दम नहीं होता और बड़े स्टार,बड़े बजट, खूब सारी मार्केटिंग के बावजूद फिल्म पिट जाती है। यदि आपको अच्छी स्क्रिप्ट मिल जाती है तो आपका पचास प्रतिशत काम हो जाता है। हिन्दी सिनेमा में इस दिशा में काम किए जाने की जरूरत है।