अग्निपथ योजना । इंटरव्यू । डॉ. संतोष मेहरोत्रा: ‘इसके राजनैतिक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं’
“जाने-माने अर्थशास्त्री डॉ. संतोष मेहरोत्रा का मानना है कि सेना या अन्य सरकारी नौकरियों के प्रति युवाओं की चाह कम करना जरूरी है”
ऐसे समय जब पूरे देश में सेना में जवानों की भर्ती की ‘अग्निपथ’ योजना का विरोध हो रहा है, जाने-माने अर्थशास्त्री डॉ. संतोष मेहरोत्रा का मानना है कि सेना या अन्य सरकारी नौकरियों के प्रति युवाओं की चाह कम करना जरूरी है। इसके लिए निजी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर नौकरियां सृजित करनी पड़ेंगी, ऐसी नौकरियां जिनमें पेंशन जैसी सामाजिक सुरक्षा भी हो। जर्मनी के बॉन स्थित आइजेडए इंस्टीट्यूट ऑफ लेबर इकोनॉमिक्स में रिसर्च फेलो और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे डॉ. मेहरोत्रा से आउटलुक के एस.के. सिंह से बातचीत के मुख्य अंशः
अग्निपथ योजना की घोषणा के साथ डेढ़ साल में 10 लाख नौकरियां देने का भी ऐलान किया। अग्निपथ योजना के विरोध को देखते हुए उसमें कई बदलाव भी किए। पूरे घटनाक्रम को आप कैसे देखते हैं?
ये घोषणाएं सोची-समझी नीति के तहत की गईं ताकि देश में सेलिब्रेशन का माहौल बना रहे। हकीकत तो यह है कि नोटबंदी, जीएसटी और लॉकडाउन की तरह अग्निपथ भी अनियोजित तरीके से तैयार की गई योजना है। अब सरकार देख रही है कि इससे चुनावी नुकसान हो सकता है, इसलिए उसने रिटायर्ड अग्निवीरों को अर्धसैनिक बलों और दूसरी जगह नौकरी में प्राथमिकता देने की बात कही है।
व्यापक विरोध का क्या कारण मानते हैं?
कई कारण हैं। एक तो यह कि चार साल बाद युवा क्या करेंगे। दूसरा, युवाओं को पेंशन नहीं मिलेगी। उन्हें स्वास्थ्य सेवा और कैंटीन की सुविधा भी नहीं मिलेगी। भर्तियों की संख्या भी कम कर दी गई है। आने वाले दिनों में सेना में नियमित भर्ती सिर्फ अग्निवीरों की होगी। यह भी एक मुद्दा है।
कहा जा रहा है कि सेना को नौकरी का जरिया नहीं माना जाना चाहिए। आखिर सरकारी नौकरी के पीछे लोग क्यों भागते हैं?
सरकारी नौकरियों में सेवा की शर्तें बेहतर होती हैं। उदाहरण के लिए निजी क्षेत्र के किसी ड्राइवर का वेतन सरकारी ड्राइवर से बहुत कम होता है। सरकारी ड्राइवर को सामाजिक सुरक्षा भी मिलती है। इसलिए सरकारी नौकिरयों की चाह लोगों में अधिक रहती है। हिंदी पट्टी में यह अधिक है क्योंकि यहां निजी क्षेत्र में नई नौकरियां बहुत कम निकलती हैं। दक्षिणी या पश्चिमी राज्यों में ऐसी स्थिति नहीं है।
आपने सामाजिक सुरक्षा की बात कही। अभी कितने कामगारों को यह सुरक्षा मिल रही है?
दुख की बात यह है कि आजादी के 75 साल बाद भी सिर्फ 9 फीसदी श्रमबल के पास सामाजिक सुरक्षा है। बाकी 91 फीसदी असंगठित क्षेत्र में हैं। सेना में भी चार साल बाद 75 फीसदी अग्निवीरों में से अधिकतर को असंगठित क्षेत्र में ही जाना पड़ेगा। अभी सेना की भर्ती के लिए आने वाले 122 आवेदकों में से सिर्फ एक की भर्ती होती है। जो 121 रह जाते हैं उनमें अधिकतर असंगठित क्षेत्र में ही जाते हैं। उनके पास कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं होती है। जबकि सरकार सही नीति बनाए तो दस वर्षों में 91 फीसदी को सामाजिक सुरक्षा संभव है। 2020 में सामाजिक सुरक्षा संहिता जारी की गई थी, पर राज्यों ने नियम अधिसूचित नहीं किए और यह लागू नहीं हो पाया।
आंदोलन को लेकर आपकी क्या राय है?
आंदोलन तेजी से फैला है और करीब दर्जन भर राज्यों में पहुंच गया। यानी असंतोष देश के बड़े हिस्से में है। सरकार ने योजना में कुछ संशोधन किए हैं। युवाओं को लग सकता है कि अगर आंदोलन लंबा चला तो उसमें और बदलाव हो सकते हैं। युवाओं को लगता है कि अगर किसान आंदोलन एक साल चला तो उनका आंदोलन क्यों नहीं।
कोई समाधान नजर आ रहा है?
विपक्षी दलों के साथ अनेक रिटायर्ड जनरल भी कह रहे हैं कि सरकार योजना को स्थगित करे और इसे नए रूप में लाए। लेकिन फिलहाल ऐसा लगता नहीं। सरकार को भी लगेगा कि अगर वह झुकी तो कृषि कानूनों की तरह इसे भी वापस लेना पड़ेगा। इसके राजनीतिक परिणाम भी सरकार को भुगतने पड़ सकते हैं। जैसे बिहार में नीतीश कुमार की जदयू और भाजपा के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है।
भविष्य में ऐसा न हो, इसके लिए सरकार को क्या करना चाहिए?
सरकारी नौकरियां कम हो रही हैं तो निजी क्षेत्र में उसकी भरपाई बहुत जरूरी है। इसके लिए सरकार को कदम उठाने चाहिए। असंगठित क्षेत्र में श्रमिकों को पेंशन की व्यवस्था हो तो सरकारी नौकरियों पर निर्भरता कम होगी।
कहा तो यह भी जा रहा है कि अग्निपथ योजना से निकलने वाले अग्निवीरों को सुरक्षा एजेंसियों में आसानी से नौकरी मिल जाएगी...
हां, चर्चा तो है। लेकिन अगर जवानों को सुरक्षा गार्ड को नौकरी मिलती भी है तो बहुत हुआ तो 15,000 रुपये हर महीने मिल जाएंगे। उन्हें पेंशन या कोई अन्य सामाजिक सुरक्षा भी नहीं मिलती है।
आने वाले दिनों में अग्निपथ योजना के आप क्या फायदे देखते हैं?
सबसे बड़ा फायदा यह है कि सरकार को पैसे की बचत होगी। अभी रक्षा बजट का 54 फीसदी वेतन और पेंशन में जाता है। इसलिए रक्षा उपकरणों और हथियारों के लिए ज्यादा खर्च की गुंजाइश नहीं बचती है। यह कहा भी जा रहा है कि कई सालों से उपकरणों और हथियारों की पर्याप्त खरीद नहीं हो रही है। इसके अलावा, चार साल बाद जो युवा बाहर आएंगे उनमें अनुशासन तो होगा ही, वे तकनीकी रूप से प्रशिक्षित होंगे। अग्निपथ योजना में सरकार आइटीआइ से भी भर्तियां करेगी। इस लिहाज से देखा जाए तो बाहर आने पर उन्हें स्किल्ड नौकरियां मिल सकती हैं।
और इसके नुकसान?
डर यह है कि जो 75 फीसदी जवान बाहर हों, उनमें से अनेक को उम्मीद के मुताबिक रोजगार नहीं मिला तो वे असामाजिक तत्व बन सकते हैं। वे हथियार चलाना तो जानते ही होंगे। यह बहुत बड़ा खतरा होगा।