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04 August 2022

कामयाब भारतवंशी/इंटरव्यू: अपनी जिंदगी बेहतर करने में रुचि ज्यादा

“ब्रिटेन में भारतवंशी ऋषि सुनक प्रधानमंत्री बनने की कगार पर खड़े हैं। पिछले एक दशक में पूरी दुनिया की राजनीति में भारतीयों का दबदबा बढ़ा है। इन्हीं सब मुद्दों पर ब्रिटेन के बकिंघमशायर के एग्जिक्यूटिव काउंसलर शरद झा से आउटलुक के लिए पत्रकार और लेखक अनुरंजन झा ने बातचीत की। संपादित अंशः”

ब्रिटेन की राजनीति में हैं, भारतवंशी हैं, यहां क्या सोच कर आए थे और अपनी यात्रा को कैसे देखते हैं?

मैं यह सोचकर ब्रिटेन आया था कि बिजनेस करना है, एंटरप्रेन्योर बनना है। उस रास्ते पर चला भी और संघर्ष भी किया। अपना बिजनेस स्थापित किया और धीरे-धीरे राजनीति में आ गया। फिर बस यह होता चला गया।

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ब्रिटेन की राजनीति में आप्रवासियों को जगह बनाने में कितनी मुश्किल होती है? 

आम जनजीवन में पहले के मुकाबले अब आसानी है लेकिन अगर राजनीति की बात करें तो वाकई बहुत मुश्किल है। आसान तो कतई नहीं है। मैं जिस इलाके से आता हूं वहां 99 फीसदी अंग्रेज हैं, मैं सातवीं बार में चुना गया। यहां की राजनीति में एक बात है जो अच्छी है कि काफी काम करना पड़ता है। मुझसे भी यहां के स्थानीय पार्टी नेताओं ने बहुत काम कराया। फिर उनको लगा कि टिकट देना चाहिए तब जाकर कंजर्वेटिव पार्टी ने अपना उम्मीदवार बनाया। मैं जीता, इस इलाके में मैं पहला एशियाई हूं जो काउंसलर बना। साथ ही, इंग्लैंड में भारतीय मूल के लोग बंटे हुए हैं, पंजाबियों और गुजरातियों की कई इलाकों में अच्छी पकड़ है। वे बहुत साल से काम कर रहे हैं इसलिए उनकी जगह बन गई है। बिहार के लोगों के साथ ऐसा नहीं है। वे यहां भी बंटे हुए हैं और उनको दूसरे राज्यों से आए लोगों की जितनी मदद मिलनी चाहिए, उतनी नहीं मिलती। थोड़ी गोपनीयता भी बनाकर रखनी होती है, वरना अपने ही बीच से कोई आपका आइडिया लेकर निकल जाता है। इसलिए थोड़ी मुश्किल है।

ब्रिटेन की राजनीति भारत की राजनीति से किस तरह अलग है? ब्रिटेन के राजनीतिक माहौल में बिहार की पृष्ठभूमि का आपको फायदा मिलता है?

जैसे बिहार या यूपी में जातिवाद की राजनीति है, ठीक उसी तरह यहां ब्रिटेन में भी बाहरी राज्यों से आए लोगों के बीच जातिवाद की भावना बैठी हुई है। वे भले ही ब्रिटेन आ गए हैं, यहां के नागरिक हो गए हैं लेकिन उनके अंदर से जातिवाद नहीं गया। सच पूछिए तो कई बार हमको लगता है कि बिहार से ज्यादा जातिवाद की राजनीति इंडियन के बीच यहां है। हां, यह तय है कि जो अंग्रेज हैं उनका विजन क्लीयर है, उनको अपने लिए काम करने वाला चाहिए बस। इसलिए यहां की राजनीति में बिना काम किए आप सर्वाइव नहीं कर सकते हैं।

पिछले कुछ साल में दुनिया भर की राजनीति में भारतीयों की पकड़ बढ़ी है, जो पहले कैरेबियन देशों तक सीमित थी। अब अमेरिका-यूरोप-कनाडा-ऑस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड तक फैली है। इसे कैसे देखते हैं?

अमेरिका में जितनी संस्थाएं हैं, जिनके जरिए भारतीय मूल के लोग राजनीति में प्रवेश करते हैं, उनमें जातिवाद नहीं है। यहां ब्रिटेन में ये संस्थाएं अलग-अलग क्षेत्रवाद में बंटी हुई हैं। मॉरीशस, सूरीनाम जैसे देशों में मूलत: भोजपुरी भाषी हैं लेकिन उन सबको अगर बड़े परिदृश्य में देखें, तो निश्चित तौर पर भारत का दबदबा बढ़ा है। यह दबदबा और ज्यादा हो सकता है, अगर ब्रिटेन या यूरोप के दूसरे देशों में ये सारी संस्थाएं एकजुट होकर काम करने लगें। इसके बाद परिस्थितियां और बेहतर हो सकती हैं, फिर हम बिहार के लोग या भारत के लोग हर जगह दिख सकते हैं।

ब्रिटेन या यूरोप के दूसरे देशों का नजरिया पिछले 8 साल में भारत के प्रति बदला है?

अगर हम ब्रिटेन या यूरोप के छोटे-बड़े देशों की बात करें तो निश्चित तौर पर उनका विश्वास भारत के प्रति बढ़ा है। अतंरराष्ट्रीय मामलों में जहां किसी मतभेद की संभावना दिखती है, भारत तटस्थ रहता है। यह बड़ी बात है कि अब भारत किसी के दबाव में आता नहीं दिखता। यह हम जैसे लोग ब्रिटेन में रहकर देख पाते हैं। इन यूरोपीय देशों को भारत से संबंध बेहतर बनाए रखने की एक बड़ी वजह सस्ता और काबिल मैनपावर है, जो उन्हें भारत से मिलता है। अब भारत को एक कदम आगे बढ़कर एंटरप्रेन्योरशिप की तरफ ज्यादा ध्यान देना चाहिए। जब हम वैश्विक भागीदारी की बात करते हैं तब हमारी आर्थिक ताकत बहुत मायने रखती है।

विदेशों में, भारतवंशियों के खासकर अमेरिका और यूरोप में बड़े राजनीतिक पदों पर पहुंचने से भारत को वाकई कोई लाभ है या यह सिर्फ एक भावनात्मक मुद्दा है?

जैसे ही हम भारतीय कहीं भी ऐसे पदों पर जाते हैं, तो ज्यादातर परिस्थितियों में देखा जाता है कि वे सेफ साइड देखने लगते हैं। हम पीछे की चीजें छोड़ देना चाहते हैं। हमें पद मिल गया, वाहवाही हो गई, देश में लोग कूद-फांद करने लगे और बस हमारा काम हो गया। स्पष्ट तौर पर कहूं तो जितना लाभ किसी भारतवंशी के किसी दूसरे देश में सत्ता में बड़े पदों पर पहुंचने से मिलना चाहिए, वह नहीं मिलता। जो थोड़ा-बहुत लाभ मिलता है, तो वह उस समुदाय को मिल पाता है, जहां से वह भारतवंशी आता है। बाकी पूरे भारत के लोगों के बारे में सत्ता पर आसीन वह व्यक्ति कुछ सोचे, उनके लिए कुछ करे और उनको अपने देश से जोड़े ऐसा होता कम ही दिखता है। ब्रिटेन में कितने ही भारतीय मूल के सांसद हैं लेकिन वे भारत के लिए कुछ करने के बजाए अपनी जिंदगी को बेहतर करने में ज्यादा व्यस्त हैं। इसकी बड़ी वजह यह भी है कि जिस पद तक वे पहुंचते हैं, उसमें उनके समुदाय का कुछ खास योगदान नहीं होता। जो होता है, वह उनकी व्यक्तिगत मेहनत होती है। शायद यही वजह है कि समुदाय कहीं पीछे छूट जाता है। यह विडंबना है लेकिन इसमें बहुत हद तक सच्चाई है। इसके लिए खास तौर पर कई किस्म के प्रोजेक्ट्स बनाकर काम करना होगा तभी इसका लाभ होता दिखेगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत की छवि क्या विदेशों में मजबूत हुई है?

निश्चित तौर पर। जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने उसके बाद उन्होंने लगातार विदेश यात्राएं कीं। उनकी यात्राओं पर भारत में अलग-अलग तरीके से सवाल भी उठे लेकिन सच यह है कि उनकी ऐसी ही कई यात्राओं का लाभ भारत को मिल रहा है। नरेंद्र मोदी की छवि पूरे यूरोप में अच्छी है। उनकी यात्राओं की वजह से ही भारत की छवि बेहतर हुई है। कुछ समुदाय ऐसे हैं, जिनके मन में उनको लेकर कुछ आशंकाएं हैं। लेकिन इस तरह की आशंकाएं तो भारत में भी एक वर्ग में हैं। कुल मिलाकर मोदी की यात्राओं से लाभ हुआ है और भारत की छवि विदेश में मजबूत हुई है। इस बात में किसी को शक या दो राय नहीं है।

ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री बनने की कितनी संभावना है?

वे मजबूत दावेदार हैं, लेकिन राह आसान नहीं है क्योंकि वोट देने वाले तो अंग्रेज ही हैं। अगर उनमें जरा सी भी यह भावना आ गई कि सुनक तो भारतवंशी है, तो जीत की उम्मीद कम हो जाएगी।

भारत के नौजवानों को क्या कहना चाहेंगे?

भारत मजबूत हो रहा है। इस मजबूती का फायदा उठाना चाहिए। आप न सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया में अपनी धाक जमा सकते हैं। सिर्फ सरकारी नौकरियों के भरोसे के दायरे से बाहर निकलिए, एंटरप्रेन्योर बनने की ओर कदम बढ़ाइए। मंजिल आसान हो जाएगी। हम जैसे लोग सलाह देने और मदद करने के लिए तैयार हैं।

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TAGS: Anuranjan Jha, Conversation, Sharad Jha, Executive Counselor of Buckinghamshire, UK
OUTLOOK 04 August, 2022
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