आम आदमी के हक में बेमिसाल गठबंधन सरकारें
नरेंद्र मोदी की अगुआई में मौजूदा एनडीए सरकार को हर अदालती मोर्चे पर कड़ी टक्कर देने वाले वरिष्ठ कांग्रेस नेता, पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल इसे क्रीमीलेयर, क्रोनी कैपिटलिस्ट सरकार बताते हैं। बकौल उनके, मोदी को आम आदमी के बदले कुछ खास की फिक्र है। उनकी हाल में आई किताब शेड्स ऑफ ट्रुथ में गठबंधन की वकालत की गई है। उनसे आउटलुक के संपादक हरवीर सिंह और एसोसिएट एडिटर प्रशांत श्रीवास्तव ने राजनीति, अर्थ नीति, कानूनी पेचोखम पर विस्तृत बातचीत की। प्रमुख अंशः
विजय माल्या के मामले में सरकार से लेकर सीबीआइ तक पर सवाल उठे हैं। सरकार से कहां चूक हुई और क्या सरकार चुनावों से पहले माल्या को भारत लाने में सफल हो पाएगी?
यहां चूक का सवाल ही नहीं है। विजय माल्या के जरिए खुद यह बात सामने आई है कि सरकार को सब मालूम था। सीबीआइ ने लुकआउट नोटिस को कमजोर किया। उससे साफ है कि सरकार की इन मामलों में भूमिका रही है। मुद्दा यह नहीं है कि माल्या, नीरव मोदी कैसे गए। सवाल यह है कि यह कैसे और क्यों हुआ। जहां तक माल्या को वापस लाने का सवाल है तो यह ब्रिटेन की कोर्ट पर निर्भर करेगा कि वह क्या फैसला लेती है। प्रत्यर्पण मामले में मेरी विशेषज्ञता नहीं है।
सरकार चुनावी साल में पहुंची है, अगर यूपीए-2 के अंतिम साल और मौजूदा सरकार के अंतिम साल की तुलना करें, तो क्या देखते हैं?
इस सरकार की जो स्थिति है, मैं समझता हूं कि इतनी खराब स्थिति हिंदुस्तान में किसी सरकार की नहीं हुई थी। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि ऐसा कोई वर्ग और समुदाय नहीं है, जो इस सरकार से खुश है। किसान की पैदावार ज्यादा होती है तो उसे उचित दाम नहीं मिलता है। उपज कम होती है तो वैसे ही किसान मारा जाता है और वह आत्महत्या करता है। छोटे व्यापारी को कोई कर्ज नहीं मिल रहा है। वे मुद्रा योजना की बात करते हैं कि हमने इतना लोन दिया है, सब कोरा बकवास है, जमीनी हकीकत कुछ और है। ये उज्ज्वला योजना की बात करते हैं और कहते हैं कि लाभार्थियों को पहला सिलेंडर फ्री में दिया, पर गरीब आदमी को उसकी भी किस्त चुकानी पड़ती है। पहले सिलेंडर के बाद उसे 800 रुपये चुकाने पड़ते हैं जबकि यूपीए के समय एलपीजी सिलेंडर की कीमत 400 रुपये थी।
पेट्रोल और डीजल की कीमतें अपने उच्चतम स्तर पर हैं, इसकी वजह से आम लोगों में नाराजगी भी बढ़ रही है, फिर भी सरकार कीमतें कम करने का कदम नहीं उठा रही है, चुनावी साल में वह ऐसा जोखिम क्यों ले रही है?
सरकार के पास पैसा ही नहीं है। कीमतें कम कहां से करेंगे। इसी एक्साइज ड्यूटी से केंद्र और राज्यों के पास पैसा जाता है। एक्सपोर्ट बढ़ नहीं रहा है। विदेशी मुद्रा भंडार भी घट गया है। अमेरिकी इकोनॉमी मजूबत हो गई है। इसलिए विदेशी निवेशक पैसा नहीं लगा रहे हैं। लंबी अवधि के लिए निवेश नहीं हो रहा है। एनपीए ने बैंकों की बैलेंसशीट बिगाड़ दी है। हालत यह है कि मार्केट में कोई न तो क्रेडिट देने को तैयार है। न ही इतनी डिमांड है कि कोई बैंक से कर्ज मांगे। आज देश की स्थिति बदतर हो गई है। बड़ा सवाल तो यह है कि आगे देश कैसे चलेगा।
पर मोदी सरकार का दावा है कि उसने गरीबों से लेकर सभी वर्गों के जीवन स्तर में सुधार किया है और इकोनॉमी की सेहत भी अच्छी है।
जो सवाल सामने खड़े हैं, उस पर न तो हमारे वित्त मंत्री कुछ बोलते हैं और न ही प्रधानमंत्री। 2014 के पहले उन्होंने ‘अच्छे दिन’ का जो नारा दिया था, उसे भूल गए। इस समय बहस यह होनी चाहिए कि इन चार सालों में आपने क्या किया। आज आम आदमी 90 रुपये से ज्यादा कीमत में पेट्रोल खरीद रहा है। किसान डीजल की कीमतों से परेशान है। केंद्र सरकार की कोई भी स्कीम सफल नहीं हुई, ऊपर से नोटबंदी और जीएसटी ने सब बिगाड़ दिया। मेरे संसदीय क्षेत्र रहे चांदनी चौक में किसी भी कारोबारी से पूछिए वह जीएसटी से परेशान है। लोगों में भारी रोष है। इस सरकार ने क्या दिया नोटबंदी, जीएसटी! एक फैसला बता दो, जिससे देश में भारी परिवर्तन हुआ है। हां, एक बात जरूर है कि आम लोगों के जीवन में भले ही अच्छे दिन नहीं आए उनके जरूर आ गए हैं।
क्या इस बार आप चांदनी चौक से चुनाव लड़ेंगे, आगामी लोकसभा चुनाव में आप कैसे परिणाम की उम्मीद कर रहे हैं।
क्यों चुनाव नहीं लड़ेंगे? जहां तक लोकसभा चुनावों के परिणामों की बात है तो मैं कोई अमित शाह नहीं हूं, जो पहले से जान लेते हैं कि कितनी सीटें मिलेंगी। उनके पास कोई गुप्त विद्या है जिसकी हमें जानकारी नहीं है। हालांकि जैसा में देख रहा हूं और महसूस कर रहा हूं, उससे साफ है कि हवा में बदलाव का रुख है।
यूपीए सरकार पर क्रोनी कैपिटलिज्म के आरोप लगे थे, इस पर आपका क्या कहना है?
हमने ऐसा क्या किया, कर तो यह सरकार रही है, जो पूरी तरह क्रोनी कैपिटलिज्म को ही आगे बढ़ा रही है। एनपीए प्रॉब्लम दूर करने के नाम पर यह सरकार एक-दो कॉरपोरेट घरानों को ही सारे एसेट बैकडोर से दे रही है। बैंकरप्सी कोड पूरी तरह से एक बड़ा घोटाला है। स्टील और पॉवर सेक्टर सहित दूसरे क्षेत्र की जो भी कंपनियां बैंकरप्सी कानून के तहत अपने मामले बैंकों से सुलझा रही हैं, वहां 65-85 फीसदी तक हेयर कट दिया जा रहा है। इस तरह से थोड़ी सी कीमत में देश के बहुमूल्य एसेट कुछ कॉरपोरेट घराने को बेचे जा रहे हैं। साथ ही बैकडोर में कॉरपोरेट घरानों ने ऐसे समझौते किए हैं कि विदेशी कंपनियों के हाथ में एसेट जाने का भी खतरा बढ़ गया है। इससे बड़ा क्रोनी कैपिटलिज्म और क्या हो सकता है। हमने तो इकोनॉमी रिवाइव करने के लिए ज्यादा से ज्यादा कर्ज दिलाए। जिससे सेंटीमेंट न बिगड़े। ये सरकार पूरी तरह से क्रीमीलेयर सरकार है साथ ही इसकी सोच भी क्रीमीलेयर की है।
आपने इस सरकार पर बड़ा आरोप लगाते हुए कहा है कि ये क्रीमी लेयर सरकार है, इसका क्या मतलब है?
देखिए, ये डिजिटल इंडिया की बात करते हैं। दिल्ली में तो मोबाइल फोन ठीक से चलता नहीं है, गांवों में कैसे फोन चलाएंगे। आज टेलीकॉम इंडस्ट्री की बुरी हालत है। 2004 में कितने सारे टेलीकॉम प्लेयर थे, अब तो सेक्टर में मोनोपोली हो गई है। सर्विस क्वॉलिटी की कोई बात नहीं कर रहा है। आम आदमी को तो इससे कोई फायदा होता नहीं दिखता है। हालांकि इससे कुछ लोगों को जरूर फायदा हो रहा है। टेलीकॉम ही क्या सभी जगहों पर ये हाल है। एक तरह से एलआइसी आम आदमी की लाइफ लाइन है। उसका पैसा कंपनियों को बचाने में लगाया जा रहा है। अभी आइडीबीआइ बैंक को एलआइसी के जरिए बेलआउट दिया जा रहा है। इस कड़ी में एक और कंपनी आइएल ऐंड एफएस को भी एलआइसी के सहारे बेलआउट देने की तैयारी है। ये क्या है किसे फायदा पहुंचाया जा रहा है, इसीलिए मैं कह रहा हूं कि ये क्रीमीलेयर सरकार है और क्रीमीलेयर के बारे में ही सोचती है।
भाजपा सरकार का कहना है कि उसने टेलीकॉम और कोल सेक्टर में नीलामी की प्रक्रिया अपना कर पूरी पारदर्शिता लाई है?
अगर ऐसा है तो इन सेक्टर में कर्ज और एनपीए की समस्या क्यों लगातार बढ़ रही है। टेलीकॉम और कोयला सेक्टर में जो प्रॉब्लम है वह भाजपा का किया धरा है। छोटे से उदाहरण से समझिए कि अगर आज दिल्ली में सरकार कहे कि स्कूल खोलने के लिए जमीन आपको ऑक्शन करके मिलेगी, तो मैं क्यों स्कूल बनाऊंगा। अगर मैं 100 करोड़ में जमीन खरीद कर स्कूल खोलूंगा तो कैसे कमाई करूंगा। इन चीजों में आपको देखना होगा कि कंज्यूमर को कैसे फायदा होगा। टेलीकॉम सेक्टर, कोयला सेक्टर में फायदा तभी होगा जब हम कम कीमत रखेंगे। आप जब इतनी ऊंची कीमत रखेंगे, तो बिजनेस करने वाले की कमाई कहां से होगी। फिर लोन, गैर निष्पादित संपत्तियां (एनपीए) ही बढ़ेंगी। इसकी जिम्मेदार भाजपा सरकार और कैग है, जिसने फैसला दिया है, और आरोप कांग्रेस पर लगाते हैं। सारे बिगड़ते वित्तीय हालत की वजह भाजपा है।
अपनी किताब शेड्स ऑफ ट्रुथ में आपने लिखा है कि भारत में गठबंधन सरकारें ही बेस्ट परफॉर्म करती हैं, क्या ये आगामी चुनावों के परिणामों के संकेत हैं?
देखिए, भारत दुनिया में सबसे अलग देश है। यह गठबंधनों का देश है। यहां संस्कृति, धर्म, जाति, खान-पान हर तरह की अनेक चीजों का गठबंधन होता है। आप पुराना रिकॉर्ड देखेंगे तो केंद्र सरकारों के स्तर पर भी गठबंधन के दौर में ही बेस्ट काम हुए। उदारीकरण की शुरुआत, ड्रीम बजट, स्वर्णिम चतुर्भुज योजना, टेलीकॉम क्रांति, सूचना का अधिकार कानून, सबको खाद्य सुरक्षा कानून, मनरेगा यह सब गठबंधन सरकारों की ही देन हैं।