डोर-टू-डोर स्क्रीनिंग से रोकेंगे संक्रमण, कोटा में फंसे बच्चों पर कुछ नहीं कह सकता: मंगल पांडे
जनसंख्या के लिहाज से देश के तीसरे सबसे बड़े राज्य बिहार में भी कोरोना संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ रही है। 26 अप्रैल तक सूबे में संक्रमितों की संख्या बढ़कर 274 हो गई है जबकि 2 लोगों की मौत इस वायरस हो चुकी है। राज्य के कई जिलों में कोविड-19 के मामलों में वृद्धि हुई है। मुंगेर में सबसे ज्यादा मामले सामने आए हैं। वहीं, राज्य के सबसे ज्यादा छात्र राजस्थान के कोटा में फंसे हुए हैं। इन सभी पहलुओं पर राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे से आउटलुक के नीरज झा ने खास बातचीत की है। प्रस्तुत है अंश...
अन्य राज्यों की तरह बिहार में भी कोरोना संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ रही हैं। यह राज्य के लिए कितनी बड़ी चुनौती है?
देखिए, राज्य पूरा तैयार है। लगातार टेस्टिंग की जा रही है, इसलिए मामले बढ़ रहे हैं। सबसे प्रमुख बात मैं आपको बताना चाहूंगा कि राज्य में डोर-टू-डोर स्क्रीनिंग की जा रही है। अन्य माध्यमों से भी संक्रमितों की पहचान की जा रही है। यदि किसी में कोरोना के लक्षणों का पता चलता है तो उसे तुरंत क्वरेंटाइन और आइसोलेट करके उपचार किया जा रहा है। राज्य में अभी तक 3 करोड़ से ज्यादा लोगों की स्क्रीनिंग की जा चुकी है, जिसमें से 1,300 से अधिक सैंपल लिए गए। स्क्रीनिंग के लिए आंगनबाड़ी, एएनएम और आशा कार्यकर्ता काम कर रहे हैं। स्क्रीनिंग करने की प्रक्रिया कुछ प्रश्नों के साथ तय किया गया है। जैसे-
1. घर में लोगों की संख्या कितनी है?
2. क्या किसी को सर्दी, खांसी और बुखार है?
3. क्या विगत एक महीने में कोई विदेश या अन्य राज्य से आया है?
4. क्या घर में कोई बुजुर्ग व्यक्ति है?
5. क्या किसी भी सदस्य को कोई अन्य स्वास्थ्य संबंधी परेशानी है?
यदि कोई परिवार अपनी परेशानी बताता है तो उसकी डॉक्टरों के द्वारा स्क्रीनिंग कराई जा रही है। राज्य में अब तक 16 हजार से ज्यादा टेस्टिंग किए जा चुके हैं, जो अन्य राज्यों के मुकाबले काफी बेहतर है।
कोविड-19 जांच को लेकर राज्य की क्या तैयारी है?
राज्य में अभी 6 टेस्टिंग सेंटर काम कर रहे हैं। सूबे के सभी जिलों को इन टेस्टिंग सेंटरों के साथ संबद्ध किया गया है। राज्यों के सभी 38 जिलों को 6भागों में बांटा गया है। उत्तर बिहार के सैंपल मुजफ्फरपुर और दरभंगा भेजा जा रहा है। बाकी सैंपल्स पटना के टेस्टिंग सेंटरों में आ रहे हैं। लगातार टेस्टिंग करने की क्षमता बढ़ाई जा रही है। बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह से तैयार है। अभी तक कोई गंभीर मामला नहीं आया है। धीरे-धीरे सभी स्वस्थ हो रहे हैं। राज्य में पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट (पीपीई) किट पर्याप्त है। आपूर्ति सुचारु रूप से लगातार की जा रही है। पीपीई किट के साथ-साथ टेस्टिंग किट भी स्टॉक में है। केंद्र की तरफ से लगातार उपलब्ध कराए जा रहे हैं। हर राज्य को इसकी जरूरत है। केंद्र के अलावा राज्य विभिन्न कंपनियों से अपनी जरूरतों को भी पूरा क रही है।
राज्य की आधी से ज्यादा आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। यहां इस वायरस के फैलने का कितना खतरा है?
इन्हीं खतरों को देखते हुए राज्य और केंद्र सरकार की तरफ से लॉकडाउन किया गया है। लोगों से भी राज्यों ने अपील की है कि वो इसका पालन करें। सभी को मास्क और गमछा लगा कर ही किसी जरूरी काम से बाहर निकलने को कहा गया है। आगे की स्थिति पर सरकार नजर बनाई हुई है।
कोटा में बिहार के करीब 10,000 हजार बच्चे फंसे हुए है। इनको लाने के लिए सरकार क्या योजना बना रही है?
देखिए, मैं स्वास्थ्य मंत्री हूं। इसलिए, मैं स्वास्थ्य से संबंधित सवालों का ही जवाब दे पाउंगा। इस मामले पर कोई टिप्पणी नहीं करूंगा।
क्या इन बच्चों के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी राज्य की नहीं है?
अगर मेरी जानकारी में इस तरह के कोई मामले आते हैं तो उन राज्यों के प्रशासन और सरकार से संपर्क कर स्वास्थ्य सुविधा मुहैय्या कराया जाएगा।
लाखों की तादात में श्रमिक राज्य लौटे हैं। 8,645 व्यक्ति पर एक अस्पताल बेड का गणित बैठता है। इस लचर स्थिति में बिहार कोरोना से कैसे लड़ेगा?
बिल्कुल नहीं, अब राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था पहले जैसी नहीं है। बहुत सुधार किए गए हैं। किसी चुनौती से निपटने के लिए हम पूरी तरह से सक्षम है। कोरोना की लड़ाई में जितनी तैयारी स्वास्थ्य विभाग की तरफ से करनी चाहिए, हमने की है। जो भी मजदूर बाहर से आए हैं, उनके लक्षण को देखते हुए टेस्टिंग की जा रही है। लगातार टेस्टिंग की संख्या को बढ़ाया जा रहा है। लोगों से अपील की गई है कि 18 मार्च से राज्य आने वाले सभी एहतियातन जांच कराएं। डब्ल्यूएचओ ने भी लोगों के राज्य वापस लौटने को लेकर चिंता चाहिर की है। इसलिए हमलोग पूरी सख्ती के साथ कदम उठा रहे हैं। पंचायत के स्कूलों में क्वारंटाइन सेंटर बनाकर स्क्रीनिंग और रहने की व्यवस्था की गई है। जिसकी वजह से मामले अभी नियंत्रण में है। इसके अलावा पूरे राज्य में करीब 7,400 कमरे होटल के रेंट पर लिए गए हैं। जो भी पॉजिटिव पाए जा रहे हैं, उन्हें हॉस्पिटल और डॉक्टरों के निर्देशानुसार यहां पर शिफ्ट किया जा रहा है। उनका उचित उपचार किया जा रहा है। तैयारी के कारण ही मृत्यु दर नगण्य है और 56 लोग स्वस्थ हो चुके हैं।
लेकिन, राज्य में लगातार नए हॉटस्पॉट बनते जा रहे हैं।
ऐसा मैं नहीं मानता हूं। जहां से भी मामले आ रहे हैं, उस इलाके को पूरी तरह से सील किया जा रहा है। मुंगेर में अब तक 65 मामले आए हैं। इसकी क्लोज मौनिटरिंग की जा रही है। सीवान से पिछले 15 दिनों में एक भी मामला नहीं आया हैं। बड़े पैमाने पर टेस्टिंग की जा रही है। जरूरत के मुताबिक क्वारंटाइन और आइसोलेट किया जा रहा है। अभी तक 32 हजार से ज्यादा लोगों को आइसोलेशन और क्वारंटाइन किया गया हैं। तीन हॉस्पिटल कोविड-19 के इलाज के लिए हैं।
कोरोना के अलावा एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के मामले भी आने शुरु हो गए हैं। पिछले साल 200 से ज्यादा बच्चों की मौत हुई थी। इस दोहरी चुनौती पर आपकी क्या तैयारी है?
मौजूदा वायरस के साथ-साथ एईएस की स्थिति पर सरकार लगातार नजर बनाई हुई है। इसी को देखते हुए मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच में अलग से 100 बेड का पीकू हॉस्पिटल बनाया गया है। साथ ही 100 बेड श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (एसकेएमसीएच) में और जोड़ा गया है। मुजफ्फरपुर के अलावा अन्य 11 प्रभावित जिलों का मूल्यांकन पिछले तीन महीने से किया जा रहा है। सभी स्वास्थ्य कर्मियों, पैरामेडिकल स्टाफ को ट्रेनिंग दी जा रही है। इससे निपटने के लिए जिलाधिकारी की तरफ से विशेष तैयारियां की जा रही है। लोगों को जागरूक किया जा रहा है। अन्य विभाग भी अपनी तैयारी कर रही है, ताकि बेहतर इलाज उपलब्ध कराया जा सके। खास तौर से इसके लिए 18 एंबुलेंस का एक जत्था प्रभावित जिलों को भेजा गया है। राज्य सरकार सूबे के स्वास्थ्य प्रणाली को सुदृढ़ करने के सभी प्रयास कर रही हैं। कोशिश है कि किसी भी तरह की परिस्थिति से सामना करने में हम सक्षम हो।
अन्य गंभीर बिमारियों से जुझ रहे लोगों को दिक्कत न हो। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग ने क्या योजना बनाई है?
बिल्कुल, कैंसर, किडनी और अन्य गंभीर बिमारियों के इलाज में कोई बाधा नहीं आए, इसके लिए सरकार प्रतिबद्ध है। इसलिए पटना के इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (आईजीआईएमएस) में कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज की व्यवस्था नहीं की गई है, क्योंकि यहां इन गंभीर बिमारी से पीड़ित मरीजों का इलाज होता है। जिन्हें भी इस तरह की समस्या है वो अपने अनुसार डॉक्टर से इलाज करवा रहे हैं। विभाग और प्रशासन की तरफ से पूरी मदद की जा रही है।