इंटरव्यू : आई एम कलाम रहेगी हमेशा स्पेशल, बोले राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित अभिनेता हर्ष मायर
5 अगस्त 2022 को फिल्म "आई एम कलाम" को रिलीज हुए 11 साल पूरे हो गए। इस फिल्म को पहले फिल्म फेस्टीवल में भेजा गया था और फिर 5 अगस्त 2011 को थियेटर में रिलीज किया गया था। इस फिल्म से सिनेमा की दुनिया में कदम रखने वाले हर्ष मायर को उनकी बेहतरीन प्रस्तुति के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इन ग्यारह वर्षों में एक लंबी यात्रा तय कर चुकी है फिल्म "आई एम कलाम"। हर्ष मायर भी फिल्म, टेलीविजन और ओटीटी माध्यम की यात्रा कर चुके हैं। "गुल्लक", "अभय", "हिचकी", "कानपुरिये" जैसी फिल्मों और वेब सीरीज में काम करने वाले अभिनेता हर्ष मायर एक परिपक्व अभिनेता बनकर सामने आए हैं। आई एम कलाम के 11 वर्ष पूरे होने के अवसर पर हर्ष मायर से आउटलुक के मनीष पाण्डेय ने बातचीत की।
साक्षात्कार के मुख्य अंश :
सिनेमा की दुनिया में आपको अब एक दशक से अधिक का समय हो चुका है, क्या अनुभव रहे हैं आपके ?
दुनिया या सिनेमाई दुनिया में अगर गौर से देखें तो तकनीकी चीज़ें ही बदली हैं। मानवीय और सामाजिक चीज़ें बदलने में सदियाँ गुज़र जाती हैं। आज फोन, इंटरनेट, सोशल मीडिया का बोलबाला है। लेकिन मानवीय पक्ष तो आज भी शर्मनाक है। इंसान संसाधन जुटा रहा है और उसकी आत्मा खोखली हो रही है। सिनेमा की दुनिया में टिप टॉप रहने का दबाव है। नेचुरल होते ही आप बाहर हो जाएंगे खेल से। जिस रंग, रूप, कद, काठी के कारण राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार मिला था, उसी रंग को ढकने के लिए मेक अप करवाने की बात शूटिंग पर हो जाती हैं। सिनेमा की दुनिया में, जो पक्ष दिखाकर पैसा बनेगा, वह दिखाई जाती हैं।बाक़ी छिपा ली जाती हैं। शोहरत, दौलत, सम्मान की ख्वाहिश में लोग अपना जमीर गिरवी रख चुके हैं।कुछ लोग हैं, जो सिरफिरे हैं, ईमानदार हैं, वो समय समय पर कहते रहते हैं।इसलिए नही कि क्रांति होगी। बल्कि इसलिए कि जिन्दा महसूस करेंगे।
एक बार फिर संक्षिप्त में "आई एम कलाम" से जुड़ी अपनी यात्रा का वर्णन कीजिए ?
बचपन से मुझे टीवी देखने में मजा आता था। मैं अलग अलग अभिनेताओं की एक्टिंग किया करता था। मिमिक्री के शौक़ को मेरे मामाजी ने पहचाना और मेरा दाखिला एक थियेटर इंस्टीट्यूट में करा दिया। वहां से नाटक की शुरूआत हुई। कुछ समय बाद ऑडिशन देने शुरु किए। नील माधव पंडा अपनी फिल्म की कास्टिंग कर रहे थे। मैंने भी ऑडिशन दिया और मेरा हो गया। "आई एम कलाम" में काम करने से पहले, मैंने अपने जीवन में कोई फिल्म सिनेमाघर में नहीं देखी थी। इस कारण मेरे लिए यह अवसर खास था।फिल्म साल 2009 में बनकर तैयार हो चुकी थी। नील माधव पंडा तमाम राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टीवल में फिल्म को लेकर जा रहे थे। फिल्म तमाम पुरस्कार जीत रही थी। मुझे सिनेमाघर में फिल्म की रिलीज का इंतजार था।इसी बीच मुझे फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त हुआ। फिल्म 2011 में रिलीज हुई। सभी ने फिल्म की तारीफ की। मैं तो खुद को बिग स्क्रीन पर देखकर खुश था।
आपने चाइल्ड आर्टिस्ट के रुप में शुरूआत की, चाइल्ड आर्टिस्ट से जुड़े क्या मुद्दे दिखाई दिए आपको ?
शो बिजनेस में काम सबसे जरूरी है। चाहे बच्चे का मन है या नहीं, चाहे बच्चे को कोई तकलीफ हो मगर उसको काम करना ही पड़ेगा। बच्चों पर बहुत दबाव रहता है। मां बाप पैसों के लालच में चुप रहते हैं। यह दबाव बच्चों के लिए अच्छा नहीं होता। लेकिन जब तक बच्चों के लालची मां बाप, उनकी पेमेंट के लालच में, अपने बच्चे की ख़ुशी से समझौता करते रहेंगे, ये स्थिति कभी नहीं बदलेगी।
वह क्या चीज है, जो आपकी सच्चाई को बचाकर रखती है?
अभिनय में सारा खेल ही चेहरे का है। चेहरे पर जो दिखेगा, जनता उससे ही कनेक्ट करती है। इसलिए चेहरे पर दिखाई दे रहे भाव सबसे जरूरी है । मैं इतना बड़ा एक्टर नहीं हूं कि अंदर से कपट और चापलूसी हो और सामने सरल और सहज दिख जाऊं। इसलिए जो हूँ वही रहता हूँ, रहता आया हूँ, रहूँगा। सच्चाई को बचाना मेरे अभिनय के लिए बहुत जरूरी है।
कोई ऐसा अनुभव साझा कीजिए, जब लगा हो कि एक्टिंग सिर्फ़ मनोरंजन तक सीमित न होकर लोगों को प्रेरणा दे रही है ?
एक वक़्त था, जब अपने प्रिय कलाकारों तक पहुंचना, उनके बारे में जानना, सही जानकारी प्राप्त करना आसान नहीं था। सोशल मीडिया ने यह दूरी खत्म कर दी है। सोशल मीडिया पर लोगों को मेरे लाइफ स्टाइल, पास्ट, प्रेजेंट का पता है। उन्हें लगता है कि जब मुझ जैसा मामूली सा लड़का, फिल्मों तक पहुंचकर नाम कमा सकता है, वो भी अपनी जिंदगी में कुछ अच्छा कर सकते हैं। यह लोगों को मेरी यात्रा से ऊर्जा मिलती है।लेकिन कई बार यह ख़तरनाक भी लगता है। लोग सिर्फ़ मुझे देखकर, घर परिवार से संघर्ष कर के, मुंबई के लिए निकल पड़ते हैं स्ट्रगल करने। उन्होंने मुझे देखकर फिल्मों में काम करने का निर्णय लिया होता है।यह देखे समझे बिना कि उनके अंदर वह हुनर, वह टैलेंट है या नहीं, जो प्रोफ़ेशनल एंटरटेनमेंट फील्ड में चाहिए। इसके बुरे परिणाम होते हैं। यानी हर तरह के अनुभव है मेरे।
वेब शो की दुनिया को किस तरह से देखते हैं ?
दुनिया में हर क्षेत्र में कुछ अच्छा और कुछ बुरा होता है। वेब की दुनिया भी ऐसी ही है। एक तरफ देखें तो आज कई इंडिपेंडेंट निर्देशक वेब शो बनाकर निर्देशक बन गए हैं और अपनी फीचर फिल्म प्लान कर रहे हैं। उनकी कहानियों को मंच मिल रहा है। वेब शो ने एक्टर, एक्ट्रेस, निर्देशक, लेखक बाक़ी तकनीशियन को काम मुहैया कराया है। लेकिन आसानी से पैसा कमाने की भूख ने वेब शो में हिंसा, गाली, अश्लीलता भर दी है। दर्शक यदि इन्हें नकार देंगे तो खुद ही अच्छा कंटेंट बनेगा। यह एक बाजार है। लोग हिंसक, गाली गलौज वाला कॉन्टेंट में रुचि रखते हैं इसलिए सब वैसा ही कुछ बनाकर पैसा कमाना चाहते हैं।