इंटरव्यू : अनुज भाटी -बेटी फाउंडेशन "समाज सेवा से समाज निर्माण तक"
वर्ष 2016 में एक साधारण युवा ने असाधारण सोच के साथ ‘बेटी फाउंडेशन’ की नींव रखी — नाम था अनुज भाटी। दिल्ली की सड़कों पर भीख माँगती, कूड़े में प्लास्टिक बीनती बच्चियों को देखकर उनके भीतर एक आग जली — कि कुछ करना होगा, कुछ बदलना होगा।आज ‘बेटी फाउंडेशन’ सिर्फ एक संस्था नहीं, बल्कि हज़ारों ज़िंदगियों की उम्मीद बन चुकी है। 476 से अधिक निर्धन और अनाथ बेटियों का सम्मानजनक विवाह, सैकड़ों स्ट्रीट चिल्ड्रेन की शिक्षा, बाल विवाह और यौन शोषण पर ज़मीनी हस्तक्षेप, और हर शनिवार फ्री लीगल गाइडेंस जैसे अभियान इस संस्था को विशेष बनाते हैं।अनुज भाटी की टीम आज दिल्ली, नोएडा और गुरुग्राम में सक्रिय है — जहाँ वे बेटियों को सिर्फ सुरक्षा ही नहीं, सम्मान से जीने का हक़ दिला रहे हैं।लेखक वीरेंद्र कुमार ने अनुज भाटी से उनके सफर के बारे में बातचीत की।
मुख्य साक्षात्कार से संपादित अंश
बेटी फाउंडेशन की शुरुआत आपने किस सोच और अनुभव के साथ की थी? कब और कैसे इस सामाजिक यात्रा की शुरुआत हुई?
बेटी फाउंडेशन की शुरुआत वर्ष 2016 में एक सामाजिक संकल्प के साथ हुई थी। हमारा उद्देश्य था — महिलाओं को सम्मान और बेटियों को सुरक्षा देना, नारे में नहीं, ज़मीन पर। शुरुआती दिनों में हमने दिल्ली में महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर काम करना शुरू किया — खासकर बालिकाओं की सुरक्षा, यौन शोषण की रोकथाम और महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में।धीरे-धीरे यह यात्रा एक आंदोलन बन गई — और आज यह फाउंडेशन न केवल शिक्षा और विवाह जैसे मुद्दों पर काम कर रहा है, बल्कि समाज की उस अनदेखी परत को छू रहा है, जहाँ ज़रूरत है सहारे की, संवेदना की और सक्रिय सहभागिता की।
आपके फाउंडेशन ने अब तक कितनी शादियाँ करवाई हैं? यह किस-किस सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय है, और आपका कार्यक्षेत्र किन जिलों या राज्यों में फैला है?
अब तक बेटी फाउंडेशन के माध्यम से 476 से अधिक शादियाँ करवाई जा चुकी हैं। ये वे परिवार होते हैं जो बेटियों का रिश्ता तो तय कर लेते हैं, लेकिन आर्थिक या सामाजिक कारणों से विवाह नहीं करवा पाते। इनमें अनाथ, दिव्यांग और निर्धन बेटियाँ होती हैं — कोई सुन नहीं सकती, कोई बोल नहीं पाती, किसी के हाथ नहीं हैं, तो किसी के पाँव नहीं।हम पहले साल में एक बार विवाह समारोह आयोजित करते थे, लेकिन अब हर साल दिल्ली, गुरुग्राम और नोएडा सहित तीन राज्यों में कई बार ऐसे सामूहिक विवाह होते हैं। हर क्षेत्र के लिए अलग-अलग टीमें बनाई गई हैं, जो ज़मीनी स्तर पर चयन से लेकर विवाह तक की पूरी प्रक्रिया को सुनिश्चित करती हैं — सम्मान, गरिमा और समर्पण के साथ।हम केवल शादियाँ नहीं कराते, बल्कि इन बेटियों को नया जीवन देने की कोशिश करते हैं — एक ऐसा जीवन, जिसमें वे सिर उठाकर जी सकें।
बालिका शिक्षा, बाल विवाह और यौन शोषण जैसे मुद्दों पर आप किस तरह काम करते हैं? इन विषयों पर समाज से संवाद कैसे स्थापित करते हैं?
हमारा मानना है कि “एक बच्चे को शिक्षित करना, एक अपराध को कम करना है।” शिक्षा ही वह साधन है जिससे समाज में सकारात्मक बदलाव की नींव रखी जा सकती है। यही सोच हमारे हर अभियान का मूल है।आज हमारे साथ 200 से अधिक ऐसे स्ट्रीट बच्चे जुड़े हैं, जो कभी ट्रैफिक सिगनल्स पर भीख माँगते थे या कूड़े में प्लास्टिक बीनते थे। अब वे नियमित रूप से पढ़ाई करते हैं। हम उनकी शिक्षा के साथ-साथ उनकी हाइजीन, स्वास्थ्य और भोजन की व्यवस्था भी करते हैं — ताकि उनका समग्र विकास हो सके।
बाल विवाह जैसी कुप्रथा आज भी राजस्थान और अन्य क्षेत्रों में आम बात मानी जाती है। विशेष रूप से स्ट्रीट बच्चियों के माता-पिता उन्हें जल्दी ब्याह देना चाहते हैं। हम ऐसे मामलों में काउंसलिंग करते हैं, परिवारों को समझाते हैं, और स्थानीय प्रशासन तथा स्कूलों के साथ मिलकर एक समन्वय प्रणाली बनाते हैं।
हमारी टीम केवल शिक्षा ही नहीं, बल्कि घरेलू हिंसा, यौन शोषण, और महिला अधिकारों पर भी सक्रिय रूप से कार्य करती है। प्रत्येक शनिवार को हमारी टीम वकीलों के साथ बैठकर फ्री लीगल गाइडेंस देती है, केस स्टडी करती है और ज़मीनी स्तर पर इन समस्याओं का समाधान निकालने की कोशिश करती है।हमने समाज से संवाद बनाने के लिए जागरूकता शिविर, रोड शो, और लोकल लेवल एक्टिविज़्म को अपनाया है — क्योंकि हमारा मानना है कि बदलाव केवल बोलने से नहीं, चलकर लोगों के बीच जाने से आता है।
अब तक के अभियान में कोई ऐसी घटना या अनुभव जो आपको आज भी प्रेरित करता हो — क्या आप हमारे पाठकों से साझा करना चाहेंगे?
हर बच्चा जो हमारे पास आता है — वह अपने साथ एक अधूरी कहानी लेकर आता है। लेकिन जब वह पढ़ने लगता है, मुस्कराने लगता है, और खुद को अपना मानने लगता है — तो वही हमारे लिए सबसे बड़ी प्रेरणा बन जाता है।मुझे आज भी एक बच्ची याद है — अनाथ, गूंगी और बहरी। उसके पास कोई नहीं था, कोई उसे देखने वाला नहीं था। लेकिन आज वह हमारे साथ रहती है, हम उसका पालन-पोषण करते हैं। उसकी चुप्पी भी अब एक भाषा बन गई है — संवेदना की भाषा।ऐसे बच्चों के साथ काम करना एक अलग ही सौभाग्य है। वे हमें सिखाते हैं कि जीवन की असली खुशी दूसरों को जीने लायक बनाने में है। यही अनुभव हर दिन हमें और ज़्यादा समर्पण के साथ काम करने की शक्ति देता है।
युवाओं और खासकर लड़कियों के लिए आपका क्या संदेश है? और उन्हें सामाजिक कार्यों से कैसे जोड़ा जा सकता है?
मैं सभी बेटियों से कहना चाहता हूँ कि वे सबसे पहले सुरक्षित रहना सीखें — इसके लिए सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग ज़रूरी है। साथ ही, उन्हें संस्कार और पारिवारिक मूल्यों की शिक्षा भी लेनी चाहिए — चाहे वे संयुक्त परिवार में हों या एकल परिवार में, समन्वय और समझ ही उन्हें ख़ुश रखेगा।बेटियाँ छोटी-छोटी चीज़ों में ख़ुश रहना सीखें, क्योंकि वही जीवन की सच्ची सुंदरता है। और सबसे ज़रूरी बात — वे समाज से जुड़ें। अपने समय का एक हिस्सा समाज के लिए निकालें। चाहे वह किसी ज़रूरतमंद की मदद हो, किसी बच्ची को पढ़ाना हो या किसी सामाजिक पहल में योगदान — हर छोटी कोशिश समाज को बेहतर बनाती है।हमारी बेटियाँ सिर्फ अपने लिए नहीं, समाज के लिए भी प्रेरणा बन सकती हैं।