ओटीटी स्टारडम/इंटरव्यू/दुर्गेश कुमार: “अचानक लोगों का नजरिया बदल गया है’’
बिहार के मिथिला में जन्मे दुर्गेश कुमार दो दशक तक फिल्मी दुनिया से जुड़े रहने के बावजूद कोई बड़ा मुकाम हासिल न कर पाने की वजह से डिप्रेशन में थे लेकिन आज वे सोशल मीडिया स्टार हैं। उनसे खास बातचीत के संपादित अंश:
पंचायत सीरीज के बाद आपकी किस्मत बदल गई। आप इस इंडस्ट्री से कितने साल से जुड़े हैं?
पंचायत-2 से लोग मुझे पहचानने लगे थे। लेकिन मैं इस इंडस्ट्री में करीब 20 साल से संघर्ष कर रहा हूं। मैंने एनएसडी, एसआरसीसी आदि में करीब 12 साल ट्रेनिंग ली है। इसी बीच मुझे इम्तियाज अली की फिल्म हाईवे में छोटा-सा रोल मिला। इस फिल्म के बाद मैं मुंबई चला गया और काफी संघर्ष के बाद मुझे फ्रीकी अली और सुल्तान में छोटे-मोटे रोल मिले। लेकिन पंचायत से मेरी किस्मत बदल गई।
बिहार के मिथिला से मुंबई तक का सफर कैसे तय किया? क्या सिनेमा आपका पहला प्यार था?
मेरे बड़े भाई और बहन सिनेमा के शौकीन थे। मेरा भाई यूपीएससी की तैयारी कर रहा था और मैं भी वही करना चाहता था। इसी बीच सत्या फिल्म रिलीज हुई। मैंने उसे कई बार देखा और यहीं से मुझे सिनेमा में आने की प्रेरणा मिली।
आपको पिता से कितना सहयोग मिला?
मेरे पिता प्रोफेसर थे। वे काफी खुले विचारों वाले थे। उन्होंने एक ही सवाल पूछा, क्या तुम रोजी-रोटी कमा पाओगे? फिर कहा कि किसी भी फील्ड में जाओ लेकिन मेहनत से मत भागना।
आपके बारे में समाज का नजरिया किस तरह बदला है?
मैंने अभी तक शादी नहीं की है। शुरू में लोग अजीब नजरों से देखते थे। लेकिन अब लोगों का नजरिया बदल गया है। कई हैं, जो अपनी बेटियों की शादी मुझसे करवाना चाहते हैं।
अपने एनएसडी के दौर के बारे में बताएं?
एनएसडी आपको क्राफ्ट सिखाता है। यहां आपको एक्टिंग की ट्रेनिंग दी जाती है। कोई भी व्यक्ति अच्छा अभिनय कर सकता है, लेकिन वह यह नहीं बता सकता कि उसने किसी खास सीन में ऐसा क्या किया है जिससे उसकी एक्टिंग अच्छी हो गई। एनएसडी में आपको अपनी कमियों और खूबियों के बारे में पता चलता है। हमें पता होता है कि हम क्या कर सकते हैं। हमारी डायरेक्टर अनुराधा प्रसाद कहती थीं कि एनएसडी आपको डीटेलिंग सिखाता है।
आपने मैथिली सिनेमा में भी काम किया है?
अगर मुझे मिथिला सिनेमा में काम मिलता है, तो मैं यहां के सभी निर्देशकों के साथ काम करना चाहूंगा। वैसे, मैंने नितिन चंद्रा के साथ जैक्सन हॉल्ट जैसी मैथिली फिल्में की हैं। मैंने पहली सिंदूरदान फिल्म की थी। वह भी मैथिली भाषा में ही बनी है।
क्या ओटीटी संघर्षशील अभिनेताओं के लिए वरदान साबित हुआ है?
जब मैंने थिएटर शुरू किया था, तो यह सोचकर शुरुआत नहीं की थी कि एक दिन ओटीटी आएगा और चमकेगा। मैंने काम करना इसलिए शुरू किया था ताकि मैं अभिनय कर सकूं। जहां भी काम मिला, मैं करता रहा। निश्चित रूप से इसकी पहुंच ज्यादा है।
भविष्य की परियोजनाओं के बारे में बताइए?
मेरी 3-4 फिल्में आने वाली हैं, जिनके नाम गैंग्स ऑफ गाजियाबाद, कर्तव्य, रतनपुरा और अमीरी हैं।