इंटरव्यू । लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी/महामंडलेश्वर किन्नर अखाड़ाः “एक बार हमें सीने से लगाकर तो देखिए”
बचपन में शारीरिक शोषण हुआ फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। आइपीसी की धारा 377 हटने के बाद आए कुछ बदलावों को लेकर वे आशान्वित तो हैं लेकिन संतुष्ट नहीं। वे चाहती हैं कि किन्नरों के प्रति धारणा में सच में बदलाव आए। मैं हिजड़ा मैं लक्ष्मी नाम से किताब लिखी और समाजसेवा के बाद किन्नर अखाड़े की स्थापना कर इस समुदाय की धर्म में पुनर्स्थापना की कोशिश की है। अखाड़े की महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने आउटलुक के लिए राजीव नयन चतुर्वेदी से विस्तृत बात की। संपादित अंशः
आप किन्नर अखाड़ा से जुड़ी हैं, यह अखाड़ा इस समुदाय के लिए क्या करता है?
धर्म में हमारी मान्यता ‘उपदेवता’ की थी। लेकिन हमें भीख मांगने और शरीर बेचने को मजबूर किया गया। धर्म में किन्नरों का वजूद या अस्तित्व खत्म किया जा चुका था, उसे फिर से स्थापित करने का काम किन्नर अखाड़ा कर रहा है। हमने अभी मात्र तीन कुंभ किए हैं- 2016 में उज्जैन, 2019 में प्रयागराज और 2021 में हरिद्वार। हमारे अनेक महामंडलेश्वर मंदिर बना रहे हैं और धर्म का कार्य कर रहे हैं। कम शब्दों में कहूं, तो हम किन्नरों के प्रति समान दृष्टिकोण बनाने का काम कर रहे हैं।
किन्नर अखाड़ा दूसरे से अलग कैसे है?
हमारा अखाड़ा सिर्फ किन्नरों के लिए नहीं है। इसमें मर्द और औरतें दोनों शामिल हैं। हम यहां किसी का तिरस्कार नहीं करते। हमारे यहां महामंडलेश्वर औरत भी होती है और मर्द भी।
ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो सनातन धर्म में किन्नर समुदाय को कैसे देखा जाता रहा है?
सनातन धर्म ने किन्नरों को उपदेवताओं की श्रेणी में रखा है। रामायण में भी हमारी गाथाएं शामिल हैं। धर्म संस्थापना में शिखंडी के योगदान को खारिज नहीं किया जा सकता। सखियों और माइयों ने राम जी को बचपन से प्यार दिया। रामचरितमानस में लिखा है, “देव दनुज किन्नर नर श्रेणी, सादर मज्जहिं सकल त्रिवेणी।” धर्म में किन्नरों का बहुत बड़ा स्थान है।
पहले किन्नरों की समाज में स्वीकार्यता ज्यादा थी, अचानक ऐसा क्या हुआ जिससे किन्नर समाज धीरे-धीरे गर्त में चला गया?
आक्रांताओं ने जब आक्रमण किया उस वक्त उनके हरम संभालने के लिए कोई नहीं था। उस वक्त उन्होंने किन्नरों का उपयोग हरम की सुरक्षा के लिए किया। कितने किन्नर जबरन धर्मान्तरित भी हुए। इसके बाद से किन्नरों का पतन हो गया और वे सिर्फ ‘हिजड़ा’ बन कर रह गए।
पहली बार आपने खुद की पहचान के बारे में कैसे जाना?
मैंने कभी नहीं पहचाना। मैं हमेशा खुद को छोटा बच्चा समझती थी। जब समाज मुझे हिजड़ा, छक्का और मामू कहने लगा, तब मुझे लगा कि मैं इनके जैसी नहीं हूं। फिर मैंने खुद ही अपने अस्तित्व को तलाशा और दुनिया को बताया कि मैं क्या हूं।
बचपन कैसे गुजरा, किन चुनौतियों का आपको सामना करना पड़ा?
बचपन में शारीरिक शोषण हुआ, तिरस्कार भी मिला। लेकिन मेरे माता-पिता ने मैं जैसी थी वैसा ही स्वीकार किया। आज मैं जो भी हूं उनकी वजह से ही हूं। मेरी मां कहती थीं, “देसी घी का लड्डू टेढ़ा भी सही रहता है।” मुझसे ज्यादा संघर्ष मेरे माता-पिता ने किया।
सभी की जिंदगी में ऐसा वक्त आता है, जब टूटने का अहसास होता है। आपके जीवन का वह पल कौन सा था?
मेरे माता-पिता ही मेरे सब कुछ थे। जब उनका स्वर्गवास हुआ तो मैं बिल्कुल टूट गई थी।
आप धर्म से जुड़ी हैं, आचार्य महामंडलेश्वर भी हैं। धर्म के भीतर आपका क्या स्थान है, यहां कभी भेदभाव का सामना करना पड़ा?
यहां भी कई लोग ऐसे हैं, जिन्हें हमसे परहेज है। लेकिन जूना अखाड़े के अवधेशानंद जी और हरिगिरि महाराज ने हमें स्वीकार किया। हम जूना अखाड़े के साथ शाही स्नान करते हैं। 2021 के कुंभ में जूना अखाड़े ने प्रस्ताव रखा कि वे लोग हमारे साथ रहना चाहेंगे या नहीं? यह जानकर आश्चर्य होगा कि छोटे-बड़े साधु, नागा, बड़े आचार्य सभी ने कहा ये लोग हमारे हैं।
अपने समुदाय की लड़ाई में आप क्या हासिल करना क्या चाहती हैं?
यह तो बस शुरुआत है। अभी पहला पत्थर रखा गया है। हमारे समुदाय के लिए फिलहाल ट्रांसजेंडर एक्ट है, ट्रांसजेंडर पॉलिसी है, नालसा जजमेंट है, लेकिन समाज के अंदर बदलाव का बिगुल बजना बाकी है। आज भी समाज में हमारे प्रति कहीं-कहीं हीन भावना मौजूद है।
बदलाव की रफ्तार से आप संतुष्ट हैं?
मनुष्य अगर संतुष्ट हो जाएगा तो मोक्ष प्राप्त कर लेगा। सरकार ने बहुत अच्छा काम किया है। समय-समय पर हम भी अपना सुझाव देते रहते हैं। लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है।
ऐसी तीन चीजें, जो अपने समुदाय के लिए आप तुरंत चाहती हों?
पहली, केंद्र सरकार के बजट में किन्नरों के लिए अलग प्रावधान होना चाहिए। दूसरी, जो प्रोजेक्ट चल रहे हैं उन्हें फंड सही समय पर मिले। तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण, देश के सभी जिलाधिकारियों को जागरूक किया जाए क्योंकि ट्रांसजेंडर कार्ड आज भी वही बनाते हैं।
किस वाकये ने आपको इतना प्रभावित किया जिसकी वजह से आपने एक्टिविज्म की राह चुनी?
2000 में मैं एक एचआइवी प्रोग्राम में कमाटीपुरा गई थी। वहां जब सेक्स वर्कर्स से मिली तब पता चला कि 50 और 100 रुपये के लिए उन्हें बदन बेचना पड़ता है। यह सुनकर मैं बहुत उदास हो गई। बस वही पल था जब मुझमें सामाजिक काम करने की इच्छा जागी।
आपको लगता है, धारा 377 हटने के बाद कुछ बदलाव आया?
अभी तो सिर्फ यह हटा है। धारणाएं अब बदलना शुरू हुई हैं। इन सबके अलावा अभी शादी, एडॉप्शन और सिविल यूनियन भी आ जाए तो भारत सच में बदल जाएगा।
मैं हिजड़ा, मैं लक्ष्मी किताब के बाद पाठकों को आपकी दूसरी किताब का इंतजार है, अगली किताब कब और कौन सी आ रही है?
जल्द ही मेरी दूसरी किताब आने वाली है। आजादी के 75 साल का अमृत महोत्सव चल रहा है, अगली किताब में हम 75 ट्रांसजेंडर की कहानी लेकर आ रहे हैं।
अभिभावकों को क्या संदेश देना चाहती हैं?
एक बार को हो सकता है कि आपका बेटा या बेटी आपके साथ न रहे। लेकिन यदि बच्चा ट्रांसजेंडर है, तो वह कभी माता-पिता का साथ नहीं छोड़ता। हमारे समाज में कोई ओल्ड एज होम नहीं है। बच्चा जैसा है, उसे वैसा स्वीकार करना सीखिए। हमारे जैसे बच्चों को बस प्यार की जरूरत है। एक बार हमें सीने से लगा कर तो देखिए।