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08 August 2019

अनुच्छेद 370 पर फैसले का यह सही वक्त

केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को खत्म करने पर आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या है?

यह वाकई एक ऐतिहासिक फैसला है। इस फैसले के कई पहलू हैं, पहला कि अनुच्छेद 370 खत्म होने से 35ए भी खत्म हो जाएगा। दूसरे, दो केंद्रशासित प्रदेशों, विधानसभा के साथ जम्मू-कश्मीर और बिना विधानसभा के लद्दाख को मंजूरी देना है। सबसे बुनियादी बात यह है कि यह बाकी तमाम राज्यों की तरह जम्मू-कश्मीर में बसने, वहां बिजनेस करने, निवेश, उद्योग लगाने, अकादमिक संस्थान खोलने का अधिकार देता है, जिससे पिछले 70 वर्षों से वंचित रखा गया था। यह मेरे हिसाब से बड़ा और बुनियादी बदलाव होने वाला है।

इसके बाद अब जो होने वाला है, उसे किस तरह से संभाला जाता है, वह काफी महत्वपूर्ण होगा। अगर सभी चीजों को ठीक से संभाला जाता है, तो भविष्य के लिहाज से लोगों को और अधिक सुरक्षित माहौल मुहैया कराना चाहिए। एक बार जब ऐसा होता है, तो जिंदगी आसान बन जाती है। जैसे, एक आम कश्मीरी क्या चाहता है? वह अपने लिए आजीविका चाहता है। अपने बच्चों और परिवार के लिए खुशहाली और तरक्की चाहता है। हमें इन सबकी उम्मीद है और यह अच्छी तरह से चीजों को मैनेज करके हो सकता है।

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आपने सुरक्षा का सवाल उठाया। पिछले कई दिनों से भारी संख्या में सुरक्षा बलों को तैनात किया गया, 38 हजार सैनिकों को वहां भेजा गया। क्या इस कदम ने अफवाहों को बल दिया?क्या सरकार ने जल्दीबाजी में या सोच-समझकर यह फैसला लिया?

मेरे हिसाब से यह एकमात्र ऐसा फैसला है, जिसके बारे में हम पिछले 65 वर्षों से सोच रहे थे। तो ऐसा नहीं है कि इसे जल्दबाजी में किया गया है। यह भाजपा के मेनिफेस्टो में भी था। यह सब उसका भी हिस्सा है। देश के अलग-अलग हिस्सों से केंद्रीय बलों को वहां भेजा गया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हालात काबू से बाहर न हो पाएं। जहां तक कश्मीर की बात है, तो वहां काफी सारे सुरक्षा बल हैं और पाकिस्तान का भी मसला है, तो हालात काबू से न निकलें इसलिए पहले उन्होंने सेना को वहां भेजा और फिर यह फैसला लिया। आप कई जानकारों से सुन रहे होंगे कि यह सही तरीके से फैसला नहीं लिया गया, लेकिन इसे कैबिनेट के फैसले के घंटे भर के भीतर देश की संसद में पेश किया गया।

दो पूर्व मुख्यमंत्रियों उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती को घर में नजरबंद कर दिया गया। क्या आपको लगता है कि स्थानीय नेताओं को विश्वास में लिया जाना चाहिए था?

यह जजमेंट का मामला है। आप फैसले पर नहीं, लेकिन फैसले लेने की प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे हैं। ठीक है। अगर इस लिहाज से देखें तो यह जजमेंट का मामला है। अगर पहले कम्युनिकेट किया जाता तो उनकी तरफ से कड़ी प्रतिक्रिया आती और वह नुकसान पहुंचाने वाला हो सकता था। तात्कालिक लाभ के लिहाज से बड़ा जोखिम हो सकता था।

दबी जुबान यह चर्चा चल रही है कि इस फैसले से व्यापक उथल-पुथल, प्रदर्शन वाले 1990 के दशक जैसे हालात पैदा हो जाएंगे?

एक अच्छे इन्‍फॉर्मेशन कैंपेन की जरूरत है, जो जम्मू-कश्मीर के लोगों को बता सके कि यह किस तरह से उनके लिए फायदेमंद है। ऐसा नहीं है कि वे नहीं जानते हैं, बस उन्हें इसके फायदे को याद दिलाने की जरूरत है। सभी तरह की अफवाहों, प्रोपेगेंडा मशीनरी को चाहे वह सीमा पार या अंदर से हो, उसे रोकने की जरूरत है। कूटनीतिक स्तर पर प्रयास की भी जरूरत है। दुनिया को यह संदेश देने की जरूरत है कि यह फैसला क्यों लिया गया और कैसे यहां के लोगों के लिए हितकारी साबित होगा। इस फैसले के लाभकारी पहलुओं को बताने की जरूरत है और टाइमिंग के लिहाज से यह इस फैसले का एक अच्छा वक्त है। संसद सत्र चल रहा है, इसलिए ऐसा नहीं है कि इस फैसले के लिए दूसरे उपायों का सहारा लिया गया है। दूसरी बात कि हाल में हमने सुना कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने अमेरिकी राष्ट्रपति से मुलाकात की और यह मुद्दा भी उछला। लगभग महीने भर के बाद संयुक्त राष्ट्र की बैठक है, तो यह मेरे लिहाज से उपयुक्त समय है।

पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने कहा है कि सरकार सभी संभावित विकल्पों पर विचार कर रही है। पाकिस्तान इसे अंतरराष्ट्रीय विवाद बताता है और सीमा पार से हिंसा चलती रहती है, इस लिहाज से भारत उससे क्या उम्मीद कर सकता है?  

पाकिस्तान इसे अवैध कैसे कह सकता है? क्या पाकिस्तान ने खुद कभी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की वैधता की परवाह की? क्या उसने किसी तरह के विशेष दर्जे को बरकरार रखा? क्या उसने अनुच्छेद 35 और वहां के कानूनों का ख्याल रखा? उन्होंने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को गिलगित-बालतिस्तान में बांट दिया। क्या उन्होंने इसका सम्मान किया? तो वे जो चाहें सोच सकते हैं या कर सकते हैं। भारत सरकार ऐसी किसी भी चीज के लिए अच्छी तरह से तैयार है।

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TAGS: Interview, Lieutenant General (Retired), Subrata Saha, on Article 370
OUTLOOK 08 August, 2019
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