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21 October 2025

इंटरव्यू: यह किताब ने अर्जित की

30 लाख रुपये की रॉयल्टी को कुछ मार्केटिंग गिमिक मान रहे हैं, कुछ सोची समझी रणनीति?

रॉयल्टी तो हमेशा किताब के बिकने से मिलती है। मैंने हिंदवी के कार्यक्रम ‘संगत’ के अपने इंटरव्यू (जो अप्रैल 2025 के अंत में रिकॉर्ड/शूट हुआ था) में ही संभावना व्यक्त की थी कि इस साल की शुरुआत से ही जिस तेजी से विनोद कुमार शुक्ल की दीवार में एक खिड़की रहती थी बिक रही है, मेरा आकलन है कि इस वित्त वर्ष में उनकी रॉयल्टी 30-50 लाख रुपये बन सकती है। और देखिए, यही हुआ। हमें मालूम था कि जब हम छमाही रॉयल्टी सार्वजनिक करेंगे तब लोग इस तरह के आरोप लगाएंगे, हमने भले ही रॉयल्टी का प्रतीकात्मक चेक 20 सितंबर को हिंद युग्म उत्सव कार्यक्रम में दिया लेकिन यह रकम 17 सितंबर को ही उनके खाते में भेजी जा चुकी थी। यह रॉयल्टी कोई सम्मान, पुरस्कार या अनुदानस्वरूप नहीं प्रदान की गई। यह उनकी किताबों ने अर्जित की है।

यह किताब 29 साल पहले छपी थी। इतने साल बाद आप कैसे इसे इस स्तर पर ले जा पाए?

इस तरह की परिघटना के मूल कारणों को ठीक-ठीक तरीके से बता पाना तो असंभव है, लेकिन मुझे लगता है इसके पीछे हिंद युग्म की पाठक-जुटान की 10 साला मेहनत है। अगर हम 2012-13 से शुरू करें, तो इसकी शुरुआत किशोर चौधरी और दिव्य प्रकाश दुबे से शुरू होती है और निखिल सचान, अनु सिंह चौधरी, सत्य व्यास, नीलोत्पल मृणाल और मानव कौल जैसे लेखकों से होते हुए अतुल कुमार राय और राहगीर जैसे लेखकों तक पहुंचती है। इन लेखकों की किताबों ने अपने-अपने स्तर पर हिंदी किताबों को टटका पाठक दिए, जो एक विस्फोट के रूप में विनोद कुमार शुक्ल को मिले। दिव्य प्रकाश दुबे, नीलोत्पल मृणाल और सत्य व्यास को हिंद युग्म ने 2019 में ही लखपति लेखक घोषित किया था। इस साल में ही इन लेखकों की किताबों की बिक्री की सम्मिलित प्रतियां एक लाख से ऊपर पहुंच गई थीं। जब दीवार में एक खिड़की रहती थी दिसंबर 2023 में हिंद युग्म से प्रकाशित हुई, तो हिंद युग्म ने अपने इन्हीं लाखों पाठकों के बीच इस किताब को पुश करना शुरू किया। शुरू में इसकी बिक्री गति भी सामान्य किताब की तरह थी, लेकिन जैसे-जैसे पाठकों ने पढ़ना शुरू किया, माउथ पब्लिसिटी से यह हिट हो गई। इसमें सोशल मीडिया, यूट्यूब, इंस्टाग्राम, शॉटर्स, रील्स, बुकयूट्यूबर, बुकइंस्टाग्राम का भी बहुत अहम रोल है।

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दीवार में... की खासियत क्या मानते हैं?

यह एक अतिसाधारण जीवन का असाधारण चित्रण विनोद कुमार शुक्ल ने किया है। यह चित्रण हर दौर में उतना ही प्रासंगिक और ललचाऊ रहेगा। उस किताब की यही विशेषता इसे एक कल्ट बनाती है और यह किताब लंबे, बहुत लंबे समय तक पाठकों के बीच जीवित रहेगी।

आप सभी लेखकों के साथ बिक्री डेटा उतनी ही पारदर्शिता से साझा करते हैं, जितना शुक्ल जी के साथ किया गया है?

जी, वित्त वर्ष 20-21 से एक सॉफ्टवेयर के माध्यम से हम अपने सभी लेखकों को उनकी सभी किताबों का लेजर, सेल एनालिसिस भेजते हैं, जिसमें हिंद युग्म से हर खरीद और बिक्री का विवरण होता है। खरीद मतलब हिंद युग्म अमुक किताब की कितनी प्रतियां किस तिथि को छपवाया और बिक्री मतलब किस वितरक, किस पुस्तक विक्रेता, किस पुस्तक मेले इत्यादि में कब और किस माध्यम से बेचा।

आपके यहां से ऐसी भारी या उसके आसपास रॉयल्टी पाने वाले दूसरे लेखक और कौन है?

दिव्य प्रकाश दुबे, मानव कौल और नीलोत्पल मृणाल को बहुत सालों से 20 लाख रुपये से भी अधिक की सालाना रॉयल्टी जाती रही है। बिक्री के आधार पर कम-अधिक होती रहती है।

अंग्रेजी और हिंदी लेखकों में असमानता के पीछे क्या कारण देखते हैं?

यह एक भ्रांति है कि अंग्रेजी का हर लेखक खूब बिकता है या भारी-भरकम रॉयल्टी मिलती है। अंग्रेजी में भी इस तरह की स्थिति में ऊंगलियों पर गिनने लायक लेखक हैं। लेकिन हां, हिंदी और अंग्रेजी में असमानता है। असमानता की एक बड़ी वजह तो यही है कि हिंदी भाषा को समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं है। हिंदी डाउन मार्केट है। इसलिए हिंदी में लिखने का रिस्क लेने वाले लोग कम हैं। लेकिन धीरे-धीरे हिंदी पढ़ना कूल होता जा रहा है। मुझे तो लगता है, इधर 2-3 साल से हिंदी किताबें पढ़ना अंग्रेजी पढ़ने से अधिक ट्रेंडी और कूल हो चला है।

हिंदी साहित्य को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए प्रकाशकों और लेखकों को किन नीतिगत बदलावों की जरूरत है?

यह तो बहुत बड़ा सवाल है। इसका जवाब तो सरकार से मांगना चाहिए। जब हिंदी भाषा की सरकारी नीतियों में बदलाव नहीं होगा। हिंदी माध्यम के स्कूलों की हालत अंग्रेजी से बेहतर या उनके बराबर नहीं होगी, हिंदी साहित्य की स्थिति (कम से कम बाजार के स्तर पर) कैसे बेहतर हो पाएगी!

साहित्य की दुनिया में भरोसे और ईमानदारी को मजबूत करने के लिए आप और क्या कदम उठाने वाले हैं?

जल्द ही अपने लेखकों को डैशबोर्ड देने वाले हैं जिस पर हर लेखक अपनी किताबों की बिक्री का नियमित अपडेट होने वाला डाटा देख पाएगा। अपनी किताबों की स्थिति को समझने के लिए उसे इंतजार नहीं करना पड़ेगा।

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TAGS: Interview, Shailesh Bharatwasi, Akansha Pare Kashiv
OUTLOOK 21 October, 2025
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