“शिकायतें हैं, ऐक्शन लेंगे”
नया केबल और डीटीएच नियम टीवी उपभोक्ताओं के लिए एक अबूझ पहेली बन गया है। उपभोक्ता मासिक बिल बढ़ने और अपने ऑपरटेर के रवैए से परेशान हैं। उन्हें समझ में नहीं आ रहा है, कि नया नियम उन्हें फायदा पहुंचाने के लिए बनाया गया है या फिर जेब ढीली करने के लिए। उपभोक्ताओं के इन्हीं मसलों पर आउटलुक के एसोसिएट एडिटर प्रशांत श्रीवास्तव ने ट्राइ के चेयरमैन राम सेवक शर्मा से बातचीत की। प्रमुख अंशः
ट्राइ को टीवी उपभोक्ताओं के लिए नए नियम बनाने की जरूरत क्यों पड़ी ?
मार्च 2017 तक तमिलनाडु को छोड़कर ब्रॉडकॉस्टिंग और केबल सेक्टर में डिजिटलाइजेशन की प्रक्रिया पूरी हो गई। इससे संभावनाएं बनी हैं कि उपभोक्ता को नए दौर में बिना किसी भेदभाव के ज्यादा से ज्यादा फायदा पहुंचाया जा सकता है। एक आदेश में टेलीकॉम ट्रिब्यूनल टीडीसैट (दूरसंचार विवाद समाधान एवं अपील अधिकरण) ने भी कहा था कि मौजूदा नियम और टैरिफ ऑर्डर की पुनर्समीक्षा की जाए। नए नियम में ब्रॉडकास्टर को यह सुविधा मिली है कि वह उपभोक्ता को अ-ला-कार्टे (अपनी इच्छानुसार चैनल का चयन) के आधार पर चैनल की कीमत पेश कर सके। साथ ही यह शर्त रखी गई कि किसी भी चैनल को देखने के लिए मासिक किराया 19 रुपये से ज्यादा नहीं होगा। डिस्ट्रीब्यूशन प्लेटफॉर्म मालिकों को भी इस बात के लिए बाध्य किया गया कि वे 100 एसडी चैनल दिखाने के लिए अधिकतम 130 रुपये मासिक किराए से ज्यादा नहीं लेंगे।
नए नियम बनाने की वजह क्या कंपनियों के गैर प्रतिस्पर्धी तरीके और टैरिफ तय करने के अनुचित तरीके भी जिम्मेदार हैं?
पुराने फ्रेमवर्क में ब्रॉडकास्टर, डिस्ट्रीब्यूशन प्लेटफॉर्म ओनर के बीच पारदर्शिता और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का अभाव था। कई बार ऐसा होता था कि उपभोक्ताओं को किसी खास चैनल को देखने के लिए बहुत ज्यादा पैसे देने पड़ते थे। कई चैनल प्लेटफॉर्म पर होने के बावजूद उपलब्ध नहीं थे। गैर प्रतिस्पर्धी व्यवहार की वजह से नए ब्रॉडकास्टर को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था।
आपका कहना है कि नए नियमों में उपभोक्ता ही सर्वोपरि है, यह कैसे होगा?
नए नियमों के आने से उपभोक्ता पहले से ज्यादा सूचना संपन्न होगा। सही मायने में उपभोक्ता के पास अपना मासिक बिल तय करने का नियंत्रण होगा। ऑपरेटर किस चैनल के लिए कितना पैसा ले रहा है, इसकी जानकारी उसे टीवी पर मिलेगी। पारदर्शिता बढ़ने और टीवी का कंट्रोल उपभोक्ता के पास होने से वह वास्तव में राजा बनेगा।
शिकायत है कि नए नियम के बाद ज्यादा पैसे देकर कम चैनल देखने को मिल रहे हैं, कस्टमर केयर भी रिस्पांस नहीं कर रहे हैं?
नए नियमों की संकल्पना यही है कि उपभोक्ता जितने चैनल देखना चाहता है, उसी का पैसा दे। जबकि मौजूदा नियमों में उसे एक निश्चित रकम पर चैनलों का समूह मिलता है। कई बार इस चक्कर में उसके जरूरत से ज्यादा चैनल का चयन करने से उपभोक्ता का मासिक बिल भी बढ़ता है। जिन छोटे शहरों में केबल नेटवर्क के जरिए उपभोक्ता चैनल देख रहे हैं, उनमें से कुछ क्षेत्रों से बिल महंगा होने की शिकायतें आ रही हैं। पूरा सिस्टम सुचारु रूप से लागू होने के बाद मेट्रो शहरों में उपभोक्ताओं के बिल में 10-15 फीसदी और गैर मेट्रो शहरों में 5-10 फीसदी की कमी आएगी।
फ्री-टू-एयर चैनल में कई ऐसे विकल्प उपभोक्ता को मिल रहे हैं, जो उसकी जरूरत के नहीं हैं। ऐसे विकल्प देने की जरूरत क्या है?
उपभोक्ता के पास चैनल चुनने का विकल्प पूरी तरह से मौजूद है। चाहे वह फ्री-टू-एयर चैनल देख रहा है, या फिर अ-ला-कार्टे या बुके। सभी में उसके पास चैनल चुनने की आजादी है। फ्री-टू-एयर चैनल में भी 130 रुपये में वह कोई भी 100 एसडी चैनल का विकल्प चुन सकता है।
क्या ट्राइ को भी उपभोक्ताओं की तरफ से शिकायतें मिल रही हैं, इसके लिए क्या कदम उठा रहे हैं?
हमें भी उपभोक्ताओं की तरफ से कई सारी शिकायतें और सवाल भी मिल रहे हैं। नए फ्रेमवर्क के बारे में पूछताछ से लेकर कंपनियों के बारे में भी शिकायतें आ रही हैं। उनकी शिकायतों के आधार पर जरूरी कार्रवाई भी हो रही है। हमने अपनी वेबसाइट पर जानकारी देने के अलावा, एक ऐप “माई चैनल सेलेक्शन” को भी डेवलप किया है। साथ ही विज्ञापन और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए भी हम उपभोक्ता को जागरूक कर रहे हैं।