इंटरव्यू : समाज की नजर में ट्रैवलिंग आज भी पैसों और समय की बर्बादी है, बोले ट्रैवल ब्लॉगर संजय शेफर्ड
कोरोना महामारी के कारण ट्रैवलिंग बिजनेस पर बहुत बुरा असर पड़ा है। श्रीलंका जैसे खूबसूरत और पर्यटन पर आश्रित देश की अर्थव्यवस्था इसी कोरोना महामारी के असर के कारण चरमरा गई। देशभर के होटल, कैफे, एडवेंचर स्पोर्ट्स के कारोबार को धक्का लगा है। मगर धीरे धीरे जीवन सामान्य हो रहा है। कोविड 19 के बाद फिर से लोगों में ट्रैवलिंग को लेकर जुनून पैदा हो गया है। लोग घूमने निकल रहे हैं। यह शुभ संकेत है। ट्रैवलिंग का अर्ध इतना सीमित नहीं है, जितना हमें दिखाई पड़ता है। ट्रैवलिंग अपने आप में जीवन अनुभवों का खजाना है। जीवन की बहुमूल्य शिक्षा एक इंसान को सही मायने में ट्रैवलिंग से ही हासिल हो सकती है। हमारे आस पास ऐसे कई जुनूनी लोग हैं, जिन्होंने ट्रैवलिंग को नए अर्थ दिए हैं। इनके लिए ट्रैवलिंग केवल टाइमपास नहीं बल्कि इनकी शख्सियत का अभिन्न अंग है। एक ऐसे ही जुनूनी, जुझारू, जिंदादिल ट्रैवलर हैं संजय शेफर्ड। संजय एक ट्रैवलर हैं और उन्हें दुनिया के उन चुनिंदा ट्रैवल ब्लॉगर की सूची में शामिल किया जाता है, जो कठिनतम परिस्थितियों में काम करते हुए, अपने पैशन को जी रहे हैं। संजय ट्रैवल लेखक, ब्लॉगर के साथ ही एक संवेदनशील कवि भी हैं। संजय शेफर्ड से उनके जीवन, ट्रैवलिंग पैशन ओर भारत में पर्यटन की संभावनाओं के विषय में बातचीत की आउटलुक से मनीष पाण्डेय ने।
साक्षात्कार से मुख्य अंश :
ट्रैवलिंग की शुरूआत कैसे हुई?
घूमना हमेशा से मेरी स्मृतियों का हिस्सा रहा है पर वास्तविक जीवन में यह काफी देर से शुरू हुआ। पढ़ाई लिखाई और वर्षों तक नौकरी करने के बाद एक दिन ख्याल आया कि चलो अब अपने मन का करते हैं। अपना बैकपैक तैयार किया और बिना पैसे के हिमालय यात्रा पर निकल गया। बात नवंबर 2016 की है, यह यात्रा जितनी चुनौतीपूर्ण थी, उतनी ही रोमांचक भी। तक़रीबन 52 दिन और 53 रातों के अनुभवों ने मुझे घूमना सिखाया और तब से लेकर अब तक घूम रहा हूं।
ट्रैवलिंग के दौरान कभी ऐसा हुआ कि जान पर बन आई हो?
जब आप यात्रा पर होते हैं तो निःसंदेह चुनौतियां आती हैं। यह चुनौतियों कभी-कभीऐसा रुप ले लेती हैं कि जान पर बन आती है। मेरे लिए यात्रा का मतलब ही घुमक्कड़ी रहा है। स्पीति और लेह यात्रा के दौरान तीन बार ऐसा हुआ कि लगा अब बचना मुश्किल है। स्पीति घाटी में जब फंसा तो बचने का कोई उपाय नहीं था तब मैं 7 किलो आलू खाकर 21 दिनों तक जिन्दा रहा और 22वें दिन एयरलिफ्ट किया गया।
जीवन में विकास करने के लिए ट्रैवलिंग क्यों जरूरी है?
मुझे ऐसा लगता है कि इस दुनिया के समस्त जीव चलने के लिए पैदा हुए हैं। खैर, इंसान तो सामाजिक प्राणी है जिसकी दिलचस्पी सदैव से ही घूमने, टहलने तथा दुनिया की विविधतापूर्ण संस्कृतियों को जानने की रही है। इस ब्रह्मांड के सारे आविष्कार घुमक्कड़ प्रवृति के लोगों ने ही किए हैं। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि यात्राओं ने विकास के कई द्वार खोले हैं, जीवन को गति दी है।
ट्रैवलिंग को लेकर समाज और युवाओं में क्या भ्रांतियां हैं?
घूमने को लेकर अभी भी लोगों का नजरिया पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है। समाज के एक बहुत बड़े तबके को अभी भी यही लगता है कि यह एक तरह का फिजूल का काम है, पैसे की बर्बादी है। हालांकि पिछले कुछ सालों में ट्रेवलिंग को लेकर युवाओं में उत्सुकता बढ़ी है और लोग बाहर निकल रहे हैं।
ट्रैवल राइटिंग में कितना स्कोप है, किन बातों को ध्यान में रखकर सफल ट्रैवल लेखक बन सकते हैं?
लेखन हमेशा से ही एक जरूरी विषय रहा है पर यात्रा से संबंधित लेखन का दायरा बहुत ही सीमित रहा है। क्योंकि पहले घूमने के साथ कमाई करने के साधन बहुत सीमित थे। परन्तु अब ऐसा नहीं रहा। बढ़ते डिजिटल माध्यमों ने ट्रैवल राइटिंग को एक कैरियर स्कोप के रूप में स्थापित करने का काम किया है। डिजिटल नोमैड, ट्रैवल ब्लॉगर, कल्चरल एडिटर के तौर पर लाखों लोग अपना भविष्य संवार रहे हैं।
हमें अपने जीवन की किसी ऐसी एक घटना के बारे में बताइए, जिसने आप को झकझोर कर रख दिया हो?
यात्रा में दरअसल हम एक साथ तमाम तरह की कहानियों को जीते हैं और इसी के समान्तर एक कहानी हमारी अपनी भी चलती है। यह कहानी ही तमाम तरह की घटनाओं की जड़ है। हरसिल में लामा टॉप ट्रेक के दौरान बिल्कुल ऐसा ही हुआ। दिन में ही रात हो गई और उतरने के दौरान एक ऐसी जगह पर पहुंच गया जो कि भालुओं का गढ़ था। उस दिन उत्तराखंड पुलिस और पर्यटन विभाग की वजह से मेरी जान बच पाई।
आपकी ट्रैवलिंग के कारण क्या आपको कभी समाज, रिश्तेदारों में कुछ ऐसा सुनना पड़ा, जिसने मन पर चोट पहुंचाई हो और आपको दुख पहुंचा हो?
यात्रा घर परिवार और समाज का हिस्सा होकर भी थोड़ी ऊपर की चीज है, इस बात को समझना नितान्त आवश्यक है। जब आप घर से निकलते हैं तो आपको बहुत कुछ सुनना पड़ता है। इन सबकी परवाह करते हुए यात्रा सम्भव नहीं। आपको खुद तय करना होता है कि आपका उद्देश्य क्या है और बेपरवाह निकल जाना होता है। जब लाख रुपये महीने की नौकरी छोड़कर घूमने की ठानी तो मुझे भी बहुत कुछ सुनना पड़ा था। पर वक़्त ने सबको जवाब दे दिया।
जीवन के कठिन दिनों में कैसे हौसला जुटाते हैं?
मैं जीवन को लेकर बहुत ही सहज इंसान हूं। मैं यह मानकर चलता हूं कि मेरे साथ सबकुछ अच्छा नहीं होने वाला। कुछ अच्छा होगा तो कुछ बुरा भी, कुछ बुरा होगा तो कुछ अच्छा भी। सबकुछ अच्छा अच्छा अथवा सबकुछ बुरा बुरा ही नहीं होने वाला है। इसलिए, मैं हर स्थिति के लिए पहले से ही मानसिक रूप से तैयार रहता हूं। मेरे साथ घटी घटनाएं कभी भी मेरे लिए अप्रत्याशित नहीं रहीं।
अपने प्रिय लेखकों, कवियों के बारे में कुछ बताइए?
मेरे प्रिय लेखकों में सबसे पहला नाम रसूल हमज़ातोय का आता है। यह मेरे सबसे प्रिय लेखकों में से एक हैं। इनकी रचना मेरा दागिस्तान ने मेरे जीवन को बदलने का काम किया। प्रिय कवियों में मदन कश्यप, लीलाधर मंडलोई और मंगलेश डबराल आते हैं। मैं इन्हें ही पढ़कर बड़ा हुआ हूं और काफी कुछ सीखा है।
भारत देश में पर्यटन की संभावनाओं को विकसित करने के लिए सरकार द्वारा क्या कदम उठाए जाने चाहिए?
हमारे देश में पर्यटन की संभावनाएं भरी पड़ी हैं। बस जरूरत है लोगों को जागरूक करने और इन पर अच्छे से अमल किये जाने की। हमारे यहां पर्यटन स्थल होने का बोर्ड तो लगा दिया जाता है पर उसके रख रखाव पर समुचित ध्यान नहीं दिया जाता है।जिसकी वजह से वह जगह पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाती है।
आज जो युवा ट्रैवल बिजनेस में करियर बना रहे हैं, उन्हें क्या सलाह देना चाहेंगे?
व्यवसाय के रूप में पर्यटन का हमेशा से ही अपने देश में क्रेज रहा है। इस बात को धार्मिक पर्यटन के नजरिये से भलीभांति समझा जा सकता है। पहले लोग धार्मिक यात्राएं करते थे और सबकुछ अपने आराध्य की तरफ श्रद्धा, विश्वास और आस्था तक ही सीमित था। वर्तमान में ऐसा ट्रेवेलिंग धार्मिक यात्राओं तक ही सीमित नहीं रही। इस क्षेत्र में तरह-तरह के व्यवसायिक आयाम विकसित हो चुके हैं।