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25 March 2023

इंटरव्यू/रवीन्द्र भारती: “अपने समय की गवाही देती अभिव्यक्ति”

“रवीन्द्र भारती अपनी मौलिक सृजनशीलता और व्यक्तित्व के जुझारूपन के लिए जाने जाते हैं”

हिंदी के प्रसिद्ध कवि और नाटककार रवीन्द्र भारती अपनी मौलिक सृजनशीलता और व्यक्तित्व के जुझारूपन के लिए जाने जाते हैं। इमरजेंसी में कविता लिखने पर जेल जाने वाले इस रचनाकार का अभी हाल में प्रकाशित कविता संग्रह ‘जगन्नाथ का घोड़ा’ और नाटक ‘हुलहुलिया’ चर्चा के केंद्र में है। हाल में ‘हुलहुलिया’ का मंचन दिल्ली के राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के अभिमंच ऑडिटोरियम में सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ के निर्देशन में हुआ, जिसकी काफी सराहना हुई। इसी मौके पर उनसे भोला तिवारी ने बातचीत की। मुख्य अंशः

राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में आपका नाटक हुआकैसा लगा?

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यह तो दूसरे बताएंगे जिन्होंने ‘हुलहुलिया’ का प्रदर्शन देखा है। दर्शकों की टिप्पणी महत्व रखती है। आपका अभिप्राय नाटक मंचन को लेकर है, तो निश्चय ही यह मेरा पहला नाटक है जिसे स्कूल ने मंचित किया लेकिन उसके द्वारा आयोजित भारत रंग महोत्सव में मेरे कई नाटक प्रदर्शित हो चुके हैं। मसलन ‘कंपनी उस्ताद’, ‘फूकन का सुथला’, ‘जनवासा’ आदि।

हुलहुलिया’ में जिन घुमंतू लोगों को लेकर चिंता की गई हैक्या सचमुच वैसी स्थिति है या नाटक में कुछ नया करने के लिए ऐसी हृदय विदारक स्थिति दिखाई गई है?

इसका उत्तर यहां बैठकर नहीं मिल सकता। बाहर निकलना पड़ेगा, तभी उन जिंदगियों को देख पाएंगे जिन्हें माचिस की एक तीली और चुटकी भर नमक के लिए जूझना पड़ता है। उनके लिए कागज-पत्तर जुगाड़कर रखना दूर की कौड़ी है। नगर के कीर्तन से ढंकी हैं उनकी चीखें। उन चीखों को सुनने, सुनाने की एक छोटी-सी कोशिश है, जिसके बारे में आप काल्पनिक या अतिरेक होने की शंका व्यक्त कर रहे हैं।

रवीन्द्र भारती

रवीन्द्र भारती

हुलहुलिया’ यथार्थवादी नाटक है। यह किस मामले में अगिन तिरिया’ और कंपनी उस्ताद’ से भिन्न हैकथा वस्तु अलग होने के वावजूद क्या नहीं लगता कि एक ही बात हैसफरिंग की बात।

मुझे यह पता नहीं। यह बात कह रहा हूं कि वह बात। सिर्फ इतना जानता हूं कि मेरे चेतन-अवचेतन से आई तकलीफों की यह अभिव्यक्ति है। मुहब्बत, संघर्ष की अभिव्यक्ति है। मेरी कविताएं और नाटक इन्हीं से बुने गए हैं, जो अपने समय की गवाही देते हैं और यह कोई हवा-हवाई बात नहीं है।

नाट्य निर्देशक को नाटक संपदित करने की कितनी छूट मिलनी चाहिए?

निर्देशक नाटक की स्क्रिप्ट को अपने हिसाब से कंसीव करता है। उसे लगता है कि कुछ पंक्तियों को हटा देने से नाटक की धार और तेज हो जाती है और समय तनिक कम हो जाता तो संपादित करना लाजिमी है। करना भी चाहिए। मगर जो समय बचाने के चक्कर में नाटक में जहां-तहां कांट-छांट करते हैं और नाटक के मूल स्वर को ध्यान में नहीं रखते, वे नाटक की आत्मा के साथ खिलवाड़ करते हैं। सौभाग्य है, मेरे नाटकों के जितने भी निर्देशक मिले, विजन वाले मिले, संपन्न रंग-दृष्टि वाले मिले।

आपके बारे में कहा जाता है कि आप नाटक में कविता करते हैं और कविता में नाटक। क्या ऐसा नहीं है?

आपको लगता है ऐसा। आप कह सकते हैं, मेरे लिए नाटक भी कविता का ही अंग है।

अभी पिछले महीने कथक केंद्र ने दर्जन भर से अधिक कविताओं को नृत्य में ढाला। उसे टेलीकास्ट किया। आपने उसे देखा होगा। आपके जगन्नाथ का घोड़ा’ का नृत्य-मंचन किया गया। क्या आपको नहीं लगा कि नृत्य भी कविता का अंग है?

असल बात है कि इसे आप कहां खड़ा होकर देख रहे हैं और इससे कितना सहज हो पाते हैं दूसरे की सहजता के समाने। जब तक दोनों की सहजता एक नहीं होगी, संवाद न हो सकेगा। न कविता हाथ में आएगी न नाटक। दोनों में ही जीवन है। कविता सब कलाओं का मूल है।

ना 

नाटक का एक दृश्य

नाटक लिखते समय कोई खास निर्देशक या नाट्य संस्था आपके दिमाग में रहती है?

नहीं, जीवन रहता है। मैं भी तो लिखने के समय नहीं रहता। मेरे भीतर का रचनाकार रहता है। लिखने के बाद होता है मेरा आना।

आपके नाटक अगिन तिरिया’ को संथाली रंगकर्मियों ने प्रदर्शित किया। उसका अनुवाद संथाली में हुआ था?

हां, इसका अनुवाद हुआ था। संथाली में इसका अनुवाद जीतराई हांसदा ने ही किया। ‘अगिन तिरिया’ को निर्देशित भी उन्होंने ही किया। वे खुद संथाली हैं और उनका ग्रुप जमशेदपुर में ही है। वहीं उसका प्रदर्शन गांव में हुआ। संथाली रंगकर्मी और दर्शक संथाली, यह दिव्य संयोग है। जीतराई राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के स्नातक हैं।

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TAGS: Interview, Ravindara Bharti, Bhola Tiwari, Outlook Hindi
OUTLOOK 25 March, 2023
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