इंटरव्यू: साक्षी तंवर बोलीं, "माई का किरदार था बहुत चुनौतीपूर्ण और डिमांडिंग"
लगभग एक साल के अंतराल के बाद फेमस टीवी सोप अभिनेत्री साक्षी तंवर नेटफ्लिक्स पर 15 अप्रैल को आने वाली वेब सीरीज 'माई' के जरिये वापसी करने जा रही हैं। तंवर इस क्राइम थ्रिलर वेब सीरीज में एक 'मां' की अहम भूमिका में नजर आएंगी। आउटलुक के लिए राजीव नयन चतुर्वेदी से बात करते हुए वो कहती हैं कि 'माई' सीरीज में उनका किरदार बहुत चुनौतीपूर्ण था और यहां उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला है।
साक्षात्कार के प्रमुख अंश:
इतने लंबे ब्रेक के बाद आप फिर से वापसी कर रही हैं। मैं आपसे जानना चाहता हूँ कि वो क्या वजह थी जिसके वजह से आपने 'माई' को साइन किया?
दो साल का ब्रेक कोविड-19 के वजह से हो गया था और रही बात माई को साइन करने की तो मुझे इसकी स्क्रिप्ट पढ़ने के बाद लगा कि इसमें मैं बहुत कुछ कर सकती हूँ। सीरीज में मेरा किरदार (शील) बहुत चुनौतीपूर्ण था और यही मुझे पसंद आया।
माई में 'शील' का किरदार निभाते वक्त आपको किस तरह की चुनौतियों का सामना पड़ा था?
इस सीरीज में सिर्फ चुनौतियां ही थी। मात्र एक दो सीन ऐसे थे, जो नॉर्मल थे। इसके अलावा हर सीन चुनौतीपूर्ण था। मेरे लिए यह मेंटली और फिजिकली बहुत डिमांडिंग रहा है। मुझे इस किरदार को निभाने के लिए स्कूटी चलानी सीखनी पड़ी, साइन लैंग्वेज़ सीखनी पड़ी और नर्स की ट्रेनिंग भी करनी पड़ी थी।
माई एक क्राइम और सस्पेंस थ्रिलर है। हालांकि इससे पहले भी ऐसी फिल्में और सीरीज आ चुकी हैं। माई में ऐसा क्या खास है?
ऐसा हो सकता है कि ट्रेलर देखने के बाद लोगों को इसका अंतर समझ में ना आए। लेकिन जब लोग इस सीरीज को देखेंगे तो उन्हें पता चल जाएगा कि यह बाकियों से बहुत अलग है।
दर्शकों को यह सीरीज क्यों देखना चाहिए?
क्योंकि इसका कास्ट और क्राफ्ट दमदार है। इसकी कहानी बहुत पावरफुल है। इस सीरीज में क्राइम, सस्पेंस, थ्रिल, मिस्ट्री जैसे सभी इमोशन्स देखने को मिलते हैं।
चूंकि आपके पास ओटीटी प्रोडक्शन और ट्रेडिशनल मीडियम में भी कार्य करने का अनुभव है। आप दोनों में कैसा अंतर देखती हैं?
टेलीविजन में अगर कोई व्यक्ति कॉमेडी कर रहा है तो वह कॉमेडी ही करता है, लेकिन ओटीटी के साथ ऐसा नहीं है। यहाँ एक्सप्लोर और एक्सपेरिमेंट करने का भरपूर मौका है और शायद यही वजह है कि यहां हम इतने ज्यादा टैलेंट को निकलते देख पा रहे हैं। अगर यहां पुराने और मझे हुए कलाकर भी आतें है तो खुद को चैलेंज करते हैं लेकिन यह हम ट्रेडिशनल मीडियम में नहीं देख पाते हैं।
आपके पास टेलीविजन, बड़ा पर्दा और ओटीटी पर कार्य करने का अनुभव है। मैं जानता चाहता हूँ कि एक दिन में सबसे ज्यादा शूट किस माध्यम में करना पड़ता है?
मेरे हिसाब से छोटा पर्दा तेजी माँगता है। यहाँ दिन भर में हमें 8-10 सीन करने होते हैं और गलती की कोई गुंजाइश नहीं रहती है। दूसरी तरफ, बड़ा पर्दा डिटेलिंग मांगता है और यहां आपको ज्यादा वक्त मिल सकता है लेकिन ओटीटी इन दोनों का संयोजन हैं। यहां गति और डिटेलिंग दोनों की ज़रूरत है।
आप छोटे पर्दे, बड़े पर्दे और ओटीटी पर कार्य कर चुकी हैं। व्यक्तिगत रूप से आपका दिल किसके लिए धड़कता है?
दरअसल सबकुछ मेरे साथ एक फेज में हुआ। जब मैं टेलीविजन पर कार्य करती थी तो सिर्फ वहीं काम किया और उसे एन्जॉय भी किया। आज जो कुछ भी मैं हूं, टेलीविजन के वजह से ही हूँ। लेकिन पुरानी चीजों को छोड़ आज की बात करें तो मुझे ओटीटी पसंद हैं क्योंकि यहाँ आपको ज्यादा स्वतंत्रता मिलती है।
आपके घर में हमेशा से पढ़ाई का माहौल रहा है। आप भी एक वक्त पर सिविल सेवा की तैयारी करती थी। सिनेमा में आने का ख्याल कहाँ से आया?
मेरा झुकाव हमेशा से एकेडमिक्स के तरफ रहा है। सिनेमा में मैं तुक्के से आई हूं। साल 1992 में मेरी एक कॉलेज की दोस्त दूरदर्शन-दिल्ली पर एक शो एंकर कर रही थीं। एक दिन उनकी को-एक्टर नहीं आईं तो उन्होंने मुझे एंकरिंग के लिए बुलाया। मैं गई और शो एंकर की, जिसके एवज में मुझे 500 रुपये मिल गए। इसके बाद मैं यह शो हर हफ्ते करने लगी। कुछ दिनों बाद मेरी बुआ, जो थियेटर करती थीं उन्होंने मुझे दूरदर्शन पर एक शो 'दस्तूर' में एक्टिंग करने को कहा। मैं यहां एक्टिंग की और अभी तक यह सफर चल रहा है।
माई के बाद आगे हम आपको किस अवतार में देख सकते हैं?
अभी मैं कुछ नहीं कर रही हूं। जो होगा मैं आपलोगों से बता दूंगी।