इंटरव्यू: विवेक अग्निहोत्री/ ‘मैं तो सिर्फ माध्यम हूं’
द कश्मीर फाइल्स की खूबियों, परेशानियों और तमाम आलोचनाओं पर निर्देशक विवेक अग्रिहोत्री ने आउटलुक के लिए राजीव नयन चतुर्वेदी से बेबाक बातचीत की। प्रमुख अंश:
कैसे आपने सोचा कि इस विषय पर फिल्म बनाई जाए और इसे बनाते वक्त आपका अनुभव कैसा रहा है?
मैंने यह फिल्म बनाने के बारे में कभी नहीं सोचा था और न ही मेरा कोई इरादा था। लेकिन कई बार आप अनजाने में माध्यम बन जाते हैं। कई सारी त्रासदियों पर फिल्म बहुत देर से बनी हैं। यहूदी लोगों के नरसंहार पर फिल्म देर से बनी और जैसे ही वह बनी, लोग उस पर बात करने लगे और वह क्रांति बन गई। वैसे ही द कश्मीर फाइल्स भी एक क्रांति बन गई है। इसके बाद लोग कश्मीरी पंडितों के बारे में बात करने लगे हैं। मैं बस इसका माध्यम बन गया हूं।
आपको किस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा?
आतंकवाद एक व्यवसाय बन गया है और शहरों में इनको जाने-अनजाने में एक वैचारिक समर्थन मिलने लगता है। जब आप इनके पूरे व्यवसाय और सिस्टम का पर्दाफाश करते हैं तो सब लोग आपके पीछे पड़ते हैं। मेरे साथ भी जो कुछ संभव था, वह हुआ। मेरे ऊपर फतवे निकाले गए, धमकियां मिलीं, हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में पीआइएल डाली गई।
इस फिल्म को बनाने के लिए जब आप स्टार-कास्ट कर रहे थे तो क्या उस वक्त किसी ने इस फिल्म को रिजेक्ट भी किया?
जब हमने और पल्लवी जी ने इस फिल्म को बनाने के बारे में सोचा था तो हमें पता था कि एक बहुत बड़ा समुदाय है जो इस फिल्म में काम नहीं करेगा और रोड़े अटकाएगा और ऐसा हुआ भी।
सरकार ने आपको वाई श्रेणी की सुरक्षा दी है। क्या सुरक्षा की मांग आपने की थी?
मेरा सबसे बड़ा दुख यही है कि एक स्वतंत्र देश में एक स्वतंत्र फिल्म बनाने के लिए सरकार को मुझे वाई श्रेणी की सुरक्षा देनी पड़ रही है। मैं ऐसी सुरक्षा के बिल्कुल खिलाफ रहता हूं।
जिस उद्देश्य को लेकर आप इस फिल्म का निर्माण कर रहे थे क्या उसमें आप सफल हुए हैं?
दुर्भाग्य की बात है कि हम इस देश में ऐसी संस्कृति नहीं बना पाए कि जहां लोगों के पास सबको सुनने की क्षमता हो। आप देखेंगे आने वाले समय में कहा जाएगा कि ये ऐसी पहली फिल्म है जिसने भारतीय समाज को सत्य सुनने की आदत डलवाई।
इससे पहले कश्मीर पर कई फिल्में बन चुकी हैं। आपकी फिल्म में क्या खास है?
यह पहली फिल्म है जो पूरी तरह से सत्य पर आधारित हैं। इससे पहले जितनी भी फिल्में बनी जैसे रोज़ा, फिज़़ा, फना, मिशन कश्मीर और हैदर और इसके बाद जो फिल्म आई (शिकारा) उसे मैं फिल्म ही नहीं मानता हूं।
लोग कह रहे हैं इस फिल्म ने सभी लोगों की पीड़ा को नहीं दिखाया गया है। फिल्म पूरी तरह से बायस्ड है। आप क्या कहेंगे?
अभी तक कश्मीर पर 8 फिल्में बन चुकी हैं और सभी फिल्में आतंकवाद को जस्टिफाई करती हैं। इन फिल्मों में हिंदुओं की कोई बात नहीं हुई है। सभी 1990 के पैटर्न में सेट है। अगर एक फिल्म कश्मीरी हिंदुओं पर बन गई तो क्या हुआ? मैं सभी पहलुओं को क्यों दिखाऊं? मैं ठेकेदार नहीं हूं।
शिवसेना के नेता संजय राउत इसे प्रोपेगेंडा बता रहे हैं।
संजय राउत के बारे में क्या कहूं? उन्होंने बाला साहेब पर फिल्म बनाई थी, लेकिन शिवसैनिकों ने ही उस फिल्म को नहीं देखा।
जो लोग इस फिल्म को देख चुके हैं, उनका कहना है कि इस फिल्म में एक समुदाय की नकारात्मक छवि पेश की गई है। इसपर आपका क्या कहना है?
इस फिल्म से चिढ़ दो लोगों को हो रही है। एक, वे लोग जो सिनेमाघर के अंदर जाकर इसे देख रहे हैं और दूसरे वे जो सिनेमाघर के बाहर बैठे हैं। जो सिनेमाघर गए नहीं वे इसलिए रो रहे हैं क्योंकि उन्होंने फिल्म देखी नहीं है और यही लोग हिंदुओं के खिलाफ हमेशा जहर फैलाते आए हैं। वो चाहते हैं मैं भी वैसा करूं लेकिन ऐसा मैं कर नहीं सकता हूं। उस वक्त जो कश्मीर में हिंदुओं के साथ घटित हुआ मैंने वही दिखाया है, जो पूरी तरह से सत्य है। हमारा काम किसी की बुराई और अच्छाई करना नहीं है। फिल्म में एक शब्द किसी वर्ग के खिलाफ नहीं है।