मैं चिदंबरम व जेटली को जेल भिजवाऊंगा: जेठमलानी
आपका भारतीय जनता पार्टी से बहुत अजीबो-गरीब संबंध रहे हैं। कभी आप उसके मंत्री बन जाते हैं तो कभी उससे बाहर हो जाते हैं। ऐसा क्यों?
मैं अपने विवेक से काम करता हूं। जब जनता पार्टी टूटी और भाजपा बनी तो मैं उसका पहला उपाध्यक्ष था। तब अरुण जेटली सरीखे युवाओं को कोई जानता भी नहीं था। मैं उसका वफादार रहा। दुनिया मानती है कि मैं कितना बड़ा वकील हूं। जब भाजपा की सरकार बनी तो मैं मंत्री नहीं बनना चाहता था पर नुस्ली वाडिया सरीखे कुछ दोस्तों ने अटल बिहारी वाजपेयी से मुझे मंत्री बनाने को कहा। कायदे से उन्हें मुझे कानून मंत्री बनाना चाहिए था पर उन्होंने मुझे शहरी विकास मंत्री बना दिया।
तभी आप उनसे नाराज रहने लगे?
नहीं, मुझे यह मंत्रालय बहुत पसंद आने लगा। वहां बहुत घपले थे। मैंने आदेश जारी कर दिया कि 10 रुपये देकर कोई भी फाइल देख सकता है। यह आदेश जारी होते ही सरकार घबरा गई। ब्रजेश मिश्रा मेरे पास आए और बोले कि आपने यह क्या कर दिया। हमने तो अभी सूचना के अधिकार का कानून ही नहीं बनाया है। मैंने उनसे कहा कि मैं संविधान का छात्र, अध्यापक और लेखक हूं। मुझे इस बारे में कुछ मत कहिए। इसके लिए कानून बनाने की जरुरत नहीं है। मेरी स्थिति बेशर्म बिल्लियों के बीच फंसे शेर जैसी हो गई। मैंने वहां क्रांतिकारी कदम उठाए।
अचानक आप कानून मंत्री कैसे बना दिए गए?
जब मैं कानून मंत्री बनना चाहता था तब तो बनाया नहीं फिर अचानक मेरा मंत्रालय बदल दिया गया। यह प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार था और मेरा अधिकार यह कि लेने से इंकार करना था। जब मैं मंत्री बना और मैंने फाइलें देखी तो पता चला कि एक छोटे से शहर के अनुभवहीन युवा वकील को सुप्रीम कोर्ट में सरकारी वकील नियुक्त कर दिया गया था। मैंने विधि सचिवों से पूछा तो उन्होंने बताया कि यह सारा काम सोली सोराबजी का है वही कानून मंत्रालय चलाते हैं। पूर्व मंत्री थंबी दुरई पर भ्रष्टाचार के आरोप थे। मैंने पहला काम उस नियुक्ति को रद्द करने का किया।
आपको इस मंत्रालय से हटाया क्यों गया?
अटल बिहारी वाजपेयी ने मुझे फोन करके कहा कि महाराष्ट्र सरकार शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे को गिरफ्तार करना चाहती है। वे हमारे सहयोगी व मेरे मित्र भी थे। अटलजी ने कहा कि आप इस मसले में मदद कीजिए। मैंने बयान दिया कि सात साल पुराने मामले में उन्हें गिरक्रतार नहीं किया जा सकता है। खासतौर से तब जबकि वे इस बीच फरार न हुए हो। यह बयान आते ही कुछ भाजपा नेता सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश के पास गए और उन पर मेरे खिलाफ बयान देने के लिए दबाव डाला। उनका बयान आने पर मुझे बहुत बुरा लगा क्योंकि वह उम्र में मुझसे छोटे थे। प्रतिक्रिया में मैंने बयान जारी किया कि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को पता होना चाहिए कि आज ऐसा कानून मंत्री है जो कि उनसे बेहतर कानून जानता है। मुझे अपनी स्थिति का पता है। अगर उन्हें बयान देना ही है तो खुली अदालत में मेरी मौजूदगी में बयान दे। बस मेरे विरोधी सक्रिय हो गए। अटलजी को जाकर कहा कि कानून मंत्री के कारण सुप्रीम कोर्ट हमारे खिलाफ हो गया है। कानून मंत्री तो प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ बयान देते हैं। उन्होंने अटलजी को मेरे खिलाफ कर दिया। मैं पुणे जा रहा था रास्ते में जसवंत सिंह का फोन आया और उन्होंने दुखी स्वर में कहा कि प्रधानमंत्री ने उनसे कहा है कि मैं अपने पद से इस्तीफा दे दूं। मैंने उनसे कहा कि आप उन्हें बता दें कि मैं रास्ते में पड़ने वाले निकटतम फैक्स से अपना इस्तीफा भेज दूंगा और मैंने ऐसा ही किया।
फिर आप अटल बिहारी वाजपेयी से मिले?
मैं आज तक उनसे नहीं मिला। कई बार उनकी बीमारी का हाल सुनकर मन तो हुआ कि मिल आऊं पर वे तो किसी को पहचानते ही नहीं। उनकी कैबिनेट में ज्यादातर वही लोग थे जो कि मंत्री बनने के काबिल ही नहीं थे। इसीलिए मैं लखनऊ में उनके खिलाफ चुनाव भी लड़ा।
आप फिर भाजपा में वापिस क्यों आए?
मुझे 2010 में भाजपा में आने के लिए आमंत्रित किया गया था क्योंकि अमित शाह पर हत्या का मुकदमा चल रहा था जो कि नरेंद्र मोदी के मित्र थे। जब मुझे आमंत्रित किया गया तो मैंने अपने पत्र में लिखा कि जहां तक मेरा मामला है आप लोगों को तमाम मामलों में मेरे विचारों का पता है। आपको मेरे विचार बदलने का कोई अधिकार नहीं है। पर मुझे आपके विचार बदलने का अधिकार है। मैं इस शर्त के साथ पार्टी में वापिस लौटा। बस मेरे आते ही साजिश शुरू हो गई।
आप तो नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाए जाने की काफी पैरवी की थी। उन्होंने आपकी कोई मदद नहीं की?
मैंने मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए बहुत पैसा खर्च किया। मुझे विश्वास है कि वे मेरी मदद के बिना प्रधानमंत्री नहीं बन सकते थे। पर प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने मुझे एक फोन तक नहीं किया। वे कृतघ्न हैं। आप मेरे इंटरव्यू में इस शब्द को जरूर दिखाइएगा।
फिर आपने क्या किया?
जैसे ही लोकसभा चुनाव परिणाम आए कुदरतन मेरे मन में विचार कौंधे। मैंने एक लेख लिखा। उसमें मोदी को प्रधानमंत्री बनने के लिए उन्हें बधाई देते हुए कहा कि आपको यह पद दिलवाने में मेरा भी योगदान रहा है। अब मैं भगवान के डिर्पाचर लाउंज में बैठा हूं। मुझे कुछ भी नहीं चाहिए। बस आप लोगों के वादे पूरे कर दीजिएगा। मुझे तो यह लेख लिखने के लिए आकाशवाणी हुई थी। मैने उसी दिन लेख लिखा वरना यह लोग कहते कि इसको मंत्री नहीं बनाया इसलिए ऐसी बातें कर रहा है।
उस लेख का क्या हुआ?
मैंने उसे संडे गार्जियन में भेजा जिसका कि मैं चेयरमैन था। अगले दिन देखा कि लेख की जगह विज्ञापन छपा है। मैंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। तमाम अखबारों में इसे छपवाने की कोशिश की पर कोई भी उसे छापने के लिए तैयार नहीं था। मैंने लेख में अरुण जेटली से सवाल पूछे थे कि आप इनका जवाब दें नहीं तो आपको मैं धोखेबाज मानूंगा। मुझे यह कहते हुए शर्म आती है कि भारतीय प्रेस खरीदा जा चुका है। अंतत: मैंने 13 लाख रुपये देकर इंडियन एक्सप्रेस में विज्ञापन के रूप में अपना लेख छपवाया।
आप अरुण जेटली को अमृतसर से लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाए जाने के भी खिलाफ थे, ऐसा क्यों?
मैंने तो पहले ही प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर उनसे ऐसा न करने की अपील करते हुए कहा था कि यह बुरी तरह से हारेंगे क्योंकि श्रीमान मोदी आपने पंजाब के सिखों के लिए कुछ नहीं किया है पर मैंने किया है। अगर यह उम्मीदवार बनता है तो मैं इसके चुनाव प्रचार में नहीं जाऊंगा। उसे कोई वोट नहीं देगा।
अब आप प्रतिशोध लेने पर उतर आए हैं?
नीतीश कुमार ने बिहार विधानसभा चुनाव में मुझे प्रचार के लिए बुलाया था। मैंने अपने संक्षिप्त भाषण में उन्हें वोट देने की अपील करने के बाद लोगों से कहा कि कालेधन के बारे में मोदी ने आप लोगों को बेवकूफ बनाया, उन्होंने हर किसी के खाते में 15 लाख रुपये आने की बात कही थी और इस काम में मैंने उनका साथ दिया। अब भाजपा प्रमुख अमित शाह इसे चुनावी जुमला बता रहे हैं और प्रधानमंत्री उनका खंडन नहीं कर रहे हैं। बल्कि उन्होंने अमित शाह को दोबारा अध्यक्ष बना दिया। वे धोखेबाज और साजिशकर्ता हैं। भाजपा अध्यक्ष का यह बयान ही इस बात की स्वीकारोक्ति है कि आप लोगों के साथ धोखा किया गया है। मैंने यह धोखा देने में मोदी की मदद की थी। मैं इसके लिए आपसे माफी मांगता हूं ताकि जब मरूं तो मेरी आत्मा पर कोई बोझ न हो और मैं अपराध बोध की भावना से मुक्त रहूं। चुनाव परिणाम सबके सामने हैं।
देश से बाहर गया काला धन वापस लाने के मुद्दे पर यह सरकार कितनी गंभीर है?
यह चाहते ही नहीं हैं कि कुछ हो। जर्मन सरकार ने लिंचिस्टन बैंक के एक कर्मचारी को 475 मिलियन डॉलर की रिश्वत देकर 1400 ऐसे अपराधियों की सूची हासिल की थी। फिर स्विस बैंकों के संघ ने ऐलान किया कि इसमें ज्यादातर नाम भारतीयों के है। सन 2008 में जर्मन चासंलर ने कहा कि हम किसी भी दोस्ताना सरकार को यह जानकारी देने के लिए तैयार है। मगर चाहे तब कांग्रेस की सरकार रही हो या विपक्ष में अरुण जेटली, मोदी किसी ने भी यह पता लगाने की कोशिश नहीं की। दोनों ने ही जर्मनी से नाम देने को नहीं कहा। मैंने सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा दायर कर दिया। किसी ने मेरी कोई मदद नहीं की। उन्होंने भी नहीं जो आज देश पर शासन कर रहे हैं। जिस दिन मोदी सरकार शपथ ग्रहण कर रही थी उसी दिन पिछली सरकार के सालिसीटर जनरल का मुझे एक बंद लिफाफा मिला जो कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर मुझे भेजा गया था। मैंने अदालत से कहा था कि मुझे वह पत्र उपलब्ध करवाए जाएं जो कि काला धन संबंधी जानकारी हासिल करने के लिए भारत द्वारा दूसरे देशों में भेजे गए थे। सरकार यह कहती आई थी कि जर्मन सरकार हमें दस्तावेज नहीं दे रही है। जब मैंने लिफाफा खोला तो मैं अवाक रह गया।
उसमें ऐसा क्या था?
उसमें 17 पत्र थे। हर पत्र के भेजने वाले व उसका पता छिपाया गया था। मगर गलती से एक पत्र में किसी का ईमेल पता छिपाने से रह गया था। मैंने खोज की तो पता चला कि वह तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम की मित्र महिला का था। यह पत्र भारत सरकार द्वारा जर्मन सरकार को नहीं भेजे गए थे बल्कि यह एक सरकारी विभाग द्वारा वहां के सरकारी विभाग को भेजे गए थे जो कि दोहरे कराधान के मामले देखता था। इस विभाग का भ्रष्टाचार संबंधी मामलों से कुछ लेना देना ही नहीं था। इन लोगों ने देश के साथ धोखा किया। चिदंबरम का बेटा फंस चुका है। अगर मैं जिंदा रहा तो यह सुनिश्चित करूंगा कि चिदंबरम व अरुण जेटली जेल जाएं। इन्होंने देश के साथ धोखा किया है। जिस व्यक्ति ने मुझे यह कागज सौंपे थे उसे लगता था कि अरुण जेटली व मेरे संबंध बहुत अच्छे हैं व मैं काला धन बाहर भेजने वालों का पता लगाने में उनकी मदद कर सकूंगा। इन लोगों ने देश के साथ धोखा किया है।
अब आप का लक्ष्य क्या है?
मैं ईश्वर से यही कहता हूं कि वह मुझे दो-तीन साल और दे दे ताकि मैं भाजपा का वही हाल कर सकूं जो बिहार में उसके साथ हुआ। (गुस्से में) मोदी अगली बार प्रधानमंत्री नहीं बनेगा। कौन बनेगा? मुझे पता नहीं। पर मोदी और उसके साथी सत्ता से बाहर हो जाएंगे। मैं यह सुनिश्चित करुंगा कि वह दोबारा सत्ता में न आ पाए। इन्होंने न तो भ्रष्टाचार दूर किया और न ही युवाओं को रोजगार उपलब्ध करवाया। पूर्व सैनिकों के साथ भी धोखा किया। इस कैबिनेट में दो ही ईमानदार लोग हैं। सुरेश प्रभु और मनोहर पर्रिकर।
इस उम्र में भी आपको इतनी ऊर्जा कहां से मिलती है?
अपने अच्छे कार्यों और भारत के भाग्य से। मैं सुबह ईश्वर से यही प्रार्थना करता हूं कि वह मुझे कुछ साल और दे दे ताकि मैं अपने अधूरे काम पूरे कर सकूं।
राष्ट्रपति बनने के बारे में आपकी क्या राय है?
इसमें क्या रखा है? मेरे तो क्लर्क भी मंत्रियों के बराबर वेतन पाते हैं। मुझे मोदी या अरुण जेटली से कुछ नहीं चाहिए।
आप देश के सबसे महंगे वकील में गिने जाते हैं। आप इतने पैसे का क्या करते हैं?
यह आपकी गलतफहमी है। मैं दस फीसदी मुकदमों में ही कमाता हूं। जबकि 90 फीसदी मुकदमे मुफ्त में लड़ता हूं। मैं धोखेबाजों से पैसा लेता हूं क्योंकि वे पैसा कमाते हैं। फलते-फूलते हैं और मुझे ऐसा करने का अधिकार भी है।
सुब्रह्मण्यम स्वामी ने जिस तरह से बयानबाजी करके अरुण जेटली के खिलाफ अभियान छेड़ा हुआ है उसे देखकर आपको क्या लगता है। क्या उनके पीछे कोई और है?
स्वामी ने अच्छा-बुरा समय देखा है पर मौजूदा हालात में वह सही नहीं है। उसे आरबीआई गवर्नर राजन सरीखे व्यक्ति पर हमला करने की कोई जरूरत नहीं थी। मुझे नहीं लगता कि वह (स्वामी) कोई बड़ा अर्थशास्त्री है। मैं समझ नहीं पाता कि हमारे ज्यादातर नेताओं ने विदेशों में शिक्षा ली है और अब हमें भारत में विदेशी शिक्षा मिल रही है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में आपकी क्या राय है?
वे देशभक्त हैं मगर कुछ मामलों में उनके अंदर भटकाव है। किसी सीमा तक वे अच्छा सोचते हैं। उनको अपने कामकाज और सोच के तरीके में बहुत बदलाव लाने की जरुरत है। वे देशभक्त तो हैं मगर कई बार गलतियां करते हैं पर मैं उन्हें इसके लिए क्षमा कर देता हूं क्योंकि हर इंसान गलती करता है। मुझे बड़े काम करने है। मुझे बहुत बड़े धोखेबाजों से लडऩा है इसलिए मैं इन लोगों पर अपनी ऊर्जा बरबाद नहीं करना चाहता हूं।
(इंटरव्यूकर्ता टाइम्स एक्सप्रेस न्यूज के प्रमुख हैं और यह इंटव्यू विशेष रूप से आउटलुक हिंदी को उपलब्ध कराया है।)