इंटरव्यू/रामदास अठावले: ‘आबादी के हिसाब से आरक्षण मिले’
एनसीआरबी के आंकड़े दलितों और अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न में भारी इजाफे की गवाही देते हैं। और अब तो फटाफट ‘बुलडोजर’ न्याय के इस दौर में देश के एक प्रमुख दलित नेता तथा केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास अठावले की राय गौरतलब होनी चाहिए। आखिर वे अपने बेबाक अंदाज के लिए जो जाने जाते हैं। राज्यसभा में महाराष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने वाले अठावले से आउटलुक के लिए राजीव नयन चतुर्वेदी ने सामाजिक न्याय, जाति जनगणना, आरक्षण और दलित-अल्पसंख्यकों पर बढ़ते अत्याचार जैसे तमाम मुद्दों पर बातचीत की। मुख्य अंश:
आज सामजिक न्याय की स्थिति क्या है? और क्या करने की जरूरत है?
सामजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के तहत हम गरीबों, वंचितों, शोषितों, दलितों और अनाथ लोगों को न्याय दिलाने का काम करते हैं। एक तरह से देश की करीब 85 फीसदी आबादी हमारे मंत्रालय के तहत आती है। सामाजिक न्याय के अलावा हम आर्थिक न्याय पर भी फोकस करते हैं। आर्थिक वृद्धि के साथ-साथ सामाजिक स्तर पर भी हमें काम करने की जरूरत है, जो हम कर रहे हैं।
ऐसी तीन स्कीम के बारे में बताइए, जिसे लोगों को जानना चाहिए?
हम आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को प्री और पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप देते हैं। यहीं नहीं, ओवरसीज फंड के तहत हम सैकड़ों वंचित छात्रों को सालाना उनकी जरूरत के हिसाब से पैसा देते हैं, ताकि वे विदेश जाकर अच्छी शिक्षा हासिल कर सकें। हमारा मंत्रालय बैकवर्ड क्लास के लिए वेंचर कैपिटल फंड स्कीम चलाता है। इसके तहत हम लाखों का लोन देते हैं। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि एससी कमीशन के तहत हम उन लोगों की शिकायतों का निपटारा भी करते हैं, जिन्हें जाति के आधार पर परेशान किया जाता है।
यह देश विविधताओं से भरा है। सामजिक न्याय मंत्री होने के नाते आप इस विविधता के संरक्षक भी हैं। आपको किस तरह की चुनौतियों से जूझना पड़ता है?
हमें कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। बाबा साहब आंबेडकर ने जो संविधान हमें दिया है, वह लोकतांत्रिक और समावेशी है लेकिन बावजूद उसके धरातल पर बहुत कुछ किया जाना जरूरी है। कानूनी स्तर पर जातिगत भेदभाव को पहले ही खत्म किया जा चुका है। इसके अलावा, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, 1989 के तहत लोगों में डर पैदा करने के लिए कई तरह के कड़े प्रावधान भी उठाए गए हैं, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। जातिगत हिंसा की दैनिक रिपोर्टों से पता चलता है कि भेदभाव अभी समाप्त नहीं हुआ है।
यूपी के चुनाव में मायावती का जो हश्र हुआ है, वह हम सब जानते हैं। अब कहा जा रहा है कि देश से दलित नेताओं का प्रभाव खत्म हो रहा है और इसका सबसे बड़ा कारण भाजपा की हिंदुत्व की पॉलिटिक्स है। आपको क्या लगता है?
दलित नेता घट नहीं रहे हैं। आज के समय दलित अपना नेता खुद चुन रहे हैं क्योंकि वे राजनीतिक रूप से जागरूक हो गए हैं। मायावती को हार का सामना इसलिए करना पड़ा क्योंकि दलित के नाम पर वे कई बार सत्ता में आईं लेकिन उन्होंने किया कुछ भी नहीं। रही बात हिंदुत्व की तो उससे हमें कुछ फर्क नहीं पड़ता है। बिना दलित के समर्थन के कोई भी सत्ता हासिल नहीं कर सकता है। महाराष्ट्र में हमारे समर्थन से भाजपा सत्ता में आई। यूपी में इस बार इतनी कड़ी टक्कर के बावजूद योगी सत्ता में इसलिए आए क्योंकि उन्हें दलितों ने वोट दिया।
एनसीआरबी के आंकड़े के अनुसार देश में अनुसूचित जाति के खिलाफ हिंसा में 10 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। क्या वजह देखते हैं?
दलितों की स्थिति धीरे-धीरे बदल रही है। आज हजारों दलित उद्योगपति देश की प्रगति में अपना योगदान दे रहे हैं। दलितों को शिक्षा और नौकरी में आरक्षण मिलता है जिससे उनका आर्थिक और सामजिक विकास भी हुआ है। तो यह कहना कि दलित की स्थिति पहले जैसी है, गलत होगा। हालांकि अब भी देश में दलितों पर अत्याचार हो रहा है, जिसे रोका जाना चाहिए। जातिवाद कानून से तो खत्म हो गया है लेकिन मन से खत्म नहीं हुआ है। मुझे उम्मीद है धीरे-धीरे समाज बदलेगा।
जातिवाद को हटाने का सबसे अच्छा तरीका क्या हो सकता है?
अंतरजातीय विवाह! केवल इसी से देश में जातिवाद खत्म हो सकता है। कानूनी और संवैधानिक स्तर पर सरकार सब कुछ कर रही है जो उचित है, लेकिन अब हमें पारिवारिक स्तर पर काम करना होगा। देश में हर साल एक लाख से अधिक अंतरजातीय विवाह होते हैं और यह सुखद आंकड़ा है। अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा देने लिए बाबा साहेब फाउंडेशन के तहत हमारा मंत्रालय ऐसे युगलों को प्रोत्साहन के रूप में 2.5 लाख रुपये भी प्रदान करता है।
विपक्ष कह रहा है कि लाउडस्पीकर विवाद, हनुमान चालीसा विवाद और अब ज्ञानवापी मस्जिद विवाद के जरिये सिर्फ मुसलमानों को प्रताडि़त किया जा रहा है। आपकी क्या राय है?
मेरा पहले से यह मत रहा है कि भारत के मुसलमान बाहर से नहीं आए हैं। आज से करीब ढाई हजार साल पहले पूरा देश बुद्ध को मानता था, लेकिन उसके बाद आदि शंकराचार्य ने फिर से हिंदू धर्म की पुनर्स्थापना की। बाद में जब मुगल आए तो हिंदुओं में से कुछ लोग मुसलमान बने और अंग्रेज आए तो कुछ ईसाई बन गए। कुल मिलाकर बात यह है कि मुसलमान इस देश के ही हैं और उनके साथ बाहरी जैसा व्यवहार नहीं होना चाहिए।
देश में ‘बुलडोजर संस्कृति’ पनप रही है और कोर्ट के बजाय अब नेता ही न्याय करने लगे हैं। आप इसे कैसे देखते हैं?
देखिए मेरे हिसाब से किसी के घर को विद्वेष से नहीं गिराया जा रहा है। चाहे हम दिल्ली की बात करें या यूपी की, जो घर कानूनी रूप से अवैध हैं उसी को तोड़ा जा रहा है। दिल्ली में चार साल पहले से ही अनधिकृत कॉलोनियों को रेगुलराइज किया जा रहा है।
आरक्षण की वर्तमान स्थिति से आप कितना संतुष्ट हैं?
आरक्षण को लेकर हमारा स्टैंड पहले से साफ है कि आबादी के हिसाब सबको आरक्षण मिलना चाहिए। हमारी मांग हमेशा से यह रही है कि प्राइवेट सेक्टर और पदोन्नति में भी आरक्षण का प्रावधान हो। हालांकि, पहले पदोन्नति में आरक्षण हमें मिलता था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खत्म कर दिया। हमारी एससी/एसटी कमेटी फिर से इसकी मांग कर रही है। वर्तमान में अनुसूचित जाति को 15 फीसदी, अनुसूचित जनजाति को 7.5 फीसदी और अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण मिलता है लेकिन उनकी आबादी 77 फीसदी है। यह न्यायसंगत नहीं है।
शरद पवार और उद्धव ठाकरे, आप दोनों लोगों को एनडीए में शामिल होने की बात कर चुके हैं। व्यक्तिगत रूप से आप किसको एनडीए में देखना चाहते हैं?
दोनों में से कोई एक भी अगर हमारे साथ आते हैं तो हम महाराष्ट्र में सरकार बना लेंगे। हालांकि मैं चाहूंगा कि शरद पवार एनडीए में शामिल हो जाएं क्योंकि इससे पूरे देश की भलाई होगी। वे बहुत अनुभवी नेता हैं।