अपनी बात: ...ताकि बच्चों में जज्बा और स्वाभिमान जगे
मेरा जन्म बहुत ही साधारण परिवार में हुआ। पिताजी क्लर्क थे और मां गृहणी। जमुई के पिछड़े गांव सिकंदरा में नौवीं कक्षा तक एक हाथ में बस्ता दूसरे में बोड़ा थामे, रोज ही उबड़-खाबड़, पथरीले रास्ते को नापता था। संग्रामपुर कस्बे में एक सरकारी स्कूल था जहां, गुरुकुल की तरह झाड़ू भी लगाना पड़ती थी। स्कूल में रोज काम करने को दिया जाता था। घर पर बिजली नहीं थी, इसलिए रोज शाम में टिमटिमाते लालटेन की रोशनी में ही जिंदगी रोशनी करने के ख्वाब बुने। इन्हीं ख्वाबों ने दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय तक पहुंचाया।
मुझे अभी भी याद है, 2001 में मैं जेएनयू की प्रवेश परीक्षा देने गया था। प्रवेश परीक्षा में ऑल इंडिया टॉपर बन गया। मैंने फ्रेंच भाषा में स्नातक करने के लिए प्रवेश ले लिया। वहां स्कॉलरशिप भी थी लेकिन महज, 1200 रुपये। फ्रेंच पढ़ते हुए ही फ्रांस गया। मगर पैसों की तंगी बराबर बनी हुई थी। इसे दूर करने के लिए चार साल तक ऑल इंडिया रेडियो में काम किया। काम के दौरान भी कुछ अधूरा सा लगता था। लगता था कि कुछ और करना है, जो इससे बड़ा हो। काम के साथ ही मैंने यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी। मैं आइएएस बनना चाहत था लेकिन मुझे बिहार कैडर में आइपीएस मिल गया। बिहार के समाज को बचपन से देखा और जिया था। यहां पैदाइश होने के कारण यहां के अपराध विज्ञान और उस पर नियंत्रण के गुर जैसे व्यवहार में थे। मैंने पद संभालते ही क्राइम पर नो कॉम्प्रोमाइज पॉलिसी चलाई। इसके तहत जनता दरबार लगाया। एसपी ऑफिस में त्वरित शिकायतों का तुरंत निपटारा, ऑपरेशन ब्लू नाइट के तहत रात में पेट्रोलिंग, आपरेशन हॉक के तहत अपराधियों पर धावा बोलना और ईव टीजिंग नियंत्रण के साथ ऑपरेशन पिंक ने तो जैसे हर जिले में लोकप्रिय अधिकारी के रूप में ख्ताति दे दी। जनता के बीच इन कामों से पैठ बन गई। इस सबके बाद भी एक कसक रहती थी, स्कूली बच्चों और दिग्भ्रमित युवाओं को देखकर। तो मैंने छात्रों और युवाओं से बात करना शुरू कर दिया। उन लोगों का मनोविज्ञान पहले से पता था। बस उन्हें थोड़ा सा मोटिवेट करना था कि उन्हें कैसे लक्ष्य निर्धारित कर उस पर निगाह बनाए रखना है।
कम्युनिटी पुलिसिंग और कई ऑपरेशन सफलतापूर्वक लॉन्च करने के बाद संतुष्टि मिली कि उचित मार्गदर्शन से कई युवकों ने सफलता पाई। मैंने पाया कि छात्र पढ़ाई से विमुख हो जाते हैं। जब यह देखा, तो ‘ए कप ऑफ कॉफी विद एसपी’ कार्यक्रम शुरू किया। इसके तहत युवाओं को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए न केवल प्रेरित किया गया, बल्कि उन्हें एक अभिभावक के रूप में अपने अनुभवों के साथ समझाया भी। उन्हें बताया कि क्या बात उन्हें सही मार्ग पर ले जाएगी और कौन सा कदम उन्हें भटका देगा। मैंने खुद की झेली पीड़ा भी युवाओं के साथ साझा की। मैं यह बताना नहीं भूलता था कि कैसे पहाड़ी रास्तों और खुरदुरी जमीन लांघते हुए पढ़ने के लिए सरकारी स्कूल पहुंचता था। इससे छात्रों को तो संदेश गया ही लेकिन शिक्षकों को भी उनकी जिम्मेदारी का एहसास होने लगा। किशनगंज में शुरू हुई मुहिम इतनी लोकप्रिय हुई कि जब मेरी पोस्टिंग पूर्वी चंपारण में हुई तो लोगों ने इस मुहिम का नाम ही ‘एसपी की पाठशाला’ दे दिया। यह मुहिम इसलिए भी लोकप्रिय हो गई क्योंकि एसपी का कक्षा लेना गुरु जी के साथ छात्रों को भी अचरज से भर देता था। दरअसल मैं बतौर एसपी नहीं साधारण टीचर बन कर किसी भी स्कूल में पहुंच जाता था। जेब में चॉक, पेंसिल और मार्कर लिए। गुरु जी को प्रणाम करता और बोलता अब आप आराम से कुर्सीं पर बैठिए और कुछ देर छात्र मेरे हवाले कर दीजिए। छात्रों को पढ़ाने में बहुत अच्छा लगता। इससे बच्चों के मन में पुलिस के प्रति बैठा डर खत्म हो गया, दूसरे अभिभावक और शिक्षकों के बीच सांमजस्य भी ठीक हुआ। शिक्षा के साथ-साथ कम्युनिटी पुलिसिंग कॉन्सेप्ट भी धरातल पर उतरा। मैं लगभग आधा दर्जन से अधिक जिलों में पुलिस कप्तान रहा। मुझे गृह मंत्रालय से बेस्ट पुलिसिंग अवॉर्ड भी मिला।
जब भी मैं छात्रों से मिला मुझे हर बार यही लगा कि यह पीढ़ी भोली-भाली, निर्दोष लेकिन दिशाहीन है। अगर इन्हें सही दिशा मिल जाए, तो ये क्या नहीं कर सकती। यही वजह रही कि नए उम्र के बच्चों के अंदर स्वाभिमान, विश्वास और कुछ कर गुजारने का जज्बा पैदा करने के लिए मैंने, ‘लेट्स इन्सपायर जनरेशन’ नाम से एक कार्यक्रम चलाया। इस कार्यक्रम में मैंने अपने साथ समाज के होनहार और सफल युवकों को भी जोड़ा। इस विचार को लेकर चला तो मैं अकेला था, पर फिर कारवां बनता चला गया।
युवाओं को दिशा पता नहीं इसलिए वे थोड़े से प्रयास में ही थक जाते हैं। जब वे किसी रचनात्मक कार्यक्रम का हिस्सा होते हैं, तो उनमें जुनून और जज्बे का संचार होता है। ‘लेट्स इंस्पायर जनरेशन’ उसी का एक हिस्सा है। इसके माध्यम से मैं सामूहिक रूप से उन्हें कई उदाहरणों से अवगत कराता हूं। उनके साथ बातचीत करता हूं। खुद छात्रों का मार्गदर्शन करता हूं।
(डॉ. कुमार आशीष फिलहाल मुजफ्फरपुर में सीनियर रेल एसपी के पद पर कार्यरत हैं।)