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24 August 2023

इंटरव्यू । कुमुद मिश्रा: ‘प्रतिभा को प्रस्तुति में बदल पाना सच्चा संघर्ष’

कुमुद मिश्रा हिंदी सिनेमा के उन अभिनेताओं में हैं जिन्हें देर से अवसर मिले, मगर उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने अपने फिल्मी करियर में जितना प्रभाव संवेदनशील फिल्मों से छोड़ा, उतना ही बेहतरीन काम कमर्शियल फिल्म में किया। पिछले दिनों कुमुद मिश्रा लस्ट स्टोरीज 2 में नजर आए। कुमुद मिश्रा से उनके अभिनय सफर और जीवन के बारे में गिरिधर झा ने बातचीत की। मुख्य अंश:

फिल्मों और अभिनय में आपकी रुचि कैसे पैदा हुई?

मेरे पिताजी फौज में थे लेकिन फौज में जाने से पहले वे रामलीला में अभिनय करते थे। फौज में रहते हुए भी पिताजी सांस्कृतिक गतिविधियों में शामिल रहते थे। मुझे लगता है, पिताजी से ही मुझे कलात्मक और रचनात्मक गुण मिले हैं। जब मैं छोटा था तो मैंने एक कार्यक्रम में फिल्म शोले का गीत ‘ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे’ गाया। यह मेरी मंच पर शुरुआत थी। जब मेरा मिलिट्री स्कूल बेलगाम में दाखिला हुआ, तो मेरे सामने एक नई दुनिया खुल गई। स्कूल में हर साल हिंदी और अंग्रेजी के नाटक होते थे, जिनमें मैं हिस्सा लिया करता था। स्कूली शिक्षा पूरी होने तक मैं बहुत से नाटक कर चुका था। मुझे अभिनय की दुनिया रास आने लगी थी। जिस साल मैंने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की परीक्षा दी, उसी साल मैंने एसएसबी का इंटरव्यू भी दिया। मैं अपने पिता को यह साबित करना चाहता था कि मैं नालायक नहीं हूं। मैं अभिनय को चुन रहा हूं तो इसके पीछे अभिनय से मेरा लगाव है, न कि कोई कमजोरी। मैंने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से अभिनय के गुर सीखे और फिर कई वर्षों तक थियेटर किया। इस यात्रा ने मुझे एक इंसान और अभिनेता के रूप में परिपक्व बनाया। फिर कुछ ऐसा घटनाक्रम चला कि मैं फिल्मों में अभिनय करने लगा और देखते ही देखते मुझे फिल्मी दुनिया में प्यार मिलने लगा।

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अपने फिल्मी करियर पर नजर डालते हैं तो क्या महसूस होता है?

मैं बहुत ही कृतज्ञ और संतुष्ट महसूस करता हूं। मुझे प्रसन्नता है कि मैं सार्थक फिल्मों का हिस्सा बन सका। रॉकस्टार, एम एस धोनी: द अनटोल्ड स्टोरी, रांझणा, जॉली एलएलबी 2, आर्टिकल 15, मुल्क जैसी फिल्मों ने मुझे जो प्यार और सम्मान दिया है, उसके लिए मैं हर क्षण शुक्रगुजार रहता हूं। इस देश में मुझे बहुत प्यार मिला है। मेरी फिल्मों को, मेरे किरदारों को लोगों ने अपना माना है। यह मेरे लिए सौभाग्य की तरह है।

आपने अभिनय, रंगकर्म की शुरुआत काफी पहले कर दी थी मगर हिंदी सिनेमा में आपको उचित अवसर बहुत देर से मिले। इस संघर्ष यात्रा के बारे में बताएं?

मुझे अपने जीवन में सकारात्मक चीजें ही याद रहती हैं। मैं कभी भी पीड़ा की चर्चा नहीं करता। इसका कारण यह है कि जब मैं अपने आसपास के लोगों को देखता हूं तो मुझे अपना संघर्ष बहुत छोटा लगता है। मेरे इर्द-गिर्द लोग जिंदा रहने के लिए मशक्कत कर रहे हैं। मैं वह काम कर रहा हूं जो करना चाहता हूं। फिर मुझे शिकायत करने का, मलाल करने का अधिकार नहीं है। मुझे नहीं मालूम, यह सोच कितनी ठीक है लेकिन मैं इस सोच पर अडिग हूं कि आप अपने मन का काम कर रहे हैं तो आपको खुद को लेकर कोई अफसोस नहीं जताना चाहिए। इससे हटकर मुझे जब भी अफसोस होता है तो इस बात का होता है कि मैं किसी किरदार को शानदार ढंग से निभा सकता था और नहीं निभा पाया। मेरे लिए संघर्ष यही है कि मैं उत्कृष्ट प्रदर्शन करूं। मेरे लिए लोगों की वाहवाही से अधिक महत्वपूर्ण आत्मसंतुष्टि है। लोग ताली बजा रहे हैं और मुझे ही अपना काम पसंद नहीं आ रहा तो उन तालियों का मेरी नजर में कोई मूल्य नहीं है। तब मैं अधिक बेचैन होता हूं। बेहतर जिंदगी, बेहतर संसाधन, सुख-सुविधाएं सभी को चाहिए होते हैं। उन्हें हासिल करने में होने वाला संघर्ष अलग किस्म का होता है। मगर एक कलाकार का सच्चा संघर्ष यही होता है कि वह अपनी प्रतिभा को प्रस्तुति में बदल पाए। मैं आज जो भी थोड़ा बहुत काम कर रहा हूं, उससे मुझे बहुत आनंद मिल रहा है। इसलिए मेरे लिए संघर्ष जैसी कोई स्थिति नहीं है।

कुमुद मिश्रा

ओटीटी प्लेटफॉर्म ने छोटे बजट की फिल्मों के लिए सिनेमा बनाने और रिलीज करने की प्रक्रिया को लोकतांत्रिक बना दिया है। आप इसे कैसे देखते हैं?

ओटीटी प्लेटफॉर्म के आने से छोटी फिल्मों और नए निर्देशकों को बहुत लाभ मिला है। पहले जिस तरह की कहानियों को निर्माता नहीं मिलते थे, वह आज बेधड़क ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हो रही हैं और दर्शकों द्वारा पसंद की जा रही हैं। इतना ही नहीं, पहले छोटी फिल्मों को थियेटर में सही टाइमिंग नहीं मिलती थी और न ही उचित स्क्रीन्स पर फिल्म रिलीज होती थी। मल्टीप्लेक्स और बड़े प्रोडक्शन हाउस के तालमेल के बीच छोटी फिल्में कब लगती थीं और कब उतर जाती थीं, पता ही नहीं चलता था। आज इतना जरूर है कि यदि कोई फिल्म मेहनत से बनाई जाती है तो उसे सही दर्शक मिलते हैं। यह सुकून, यह संतुष्टि तो फिल्म बनाने वाले के हिस्से में आई है और इसका श्रेय ओटीटी प्लेटफॉर्म को जाता है। बावजूद इसके मैं यह कहना चाहूंगा कि असल मजा तो थियेटर में ही है। जब आप समूह में कला को देखते हैं तो उसका आपके मन पर अलग ढंग का असर होता है। इसलिए चाहे आज छोटी फिल्मों को ओटीटी प्लेटफॉर्म पर देखा जा रहा है लेकिन हम सभी सिनेमाप्रेमियों का सामूहिक प्रयास होना चाहिए कि छोटी, बड़ी सभी तरह की फिल्में थियेटर में देखी जाएं। यह सिनेमा और समाज दोनों के लिए ही बेहतर होगा।

आप जिस कुशलता से कमर्शियल और कलात्मक फिल्मों में काम करते हैं, उसमें कितना योगदान आपकी रंगमंच की पृष्ठभूमि का है?

जिस इमारत की बुनियाद मजबूत होती है, वह लंबे समय तक खड़ी रहती है। रंगमंच उसी मजबूत बुनियाद की तरह है, जिस पर अभिनय की इमारत खड़ी होती है। अभिनय को लेकर मेरी जो भी समझ बनी है, वह रंगमंच से ही बनी है। किसी किरदार को मैं जिस तरह देखता हूं, समझता हूं, महसूस करता हूं और फिर निभाने का प्रयास करता हूं, इसका सारा हुनर मैंने रंगमंच की दुनिया से, रंगमंच के अनुभवों से सीखा है। रंगमंच की दुनिया में मुझे ऐसे कई निर्देशक मिले जिन्होंने मुझे जीवन भर के लिए सूत्र दिए। मैं जब भी कहीं अटकता हूं तो ये सूत्र मेरे काम आते हैं। जिस समय उन्होंने सूत्र दिए थे, तब मैं इनकी उपयोगिता से अनभिज्ञ था मगर आज समय-समय पर इन्हीं से मेरी जिंदगी आसान होती है, तो मैं अपने गुरुजनों का आभार व्यक्त करता हूं।

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TAGS: Interview, Kumud Mishra, Giridhar Jha, Outlook Hindi
OUTLOOK 24 August, 2023
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