“21वीं सदी की मांग पूरी करेगी नई शिक्षा नीति”
नई शिक्षा नीति-2020 का उद्देश्य भारत को एक ज्ञान आधारित समाज के रूप में विकसित करना और उसे सुपरपावर बनाना है। इसे हासिल करने के लिए नई शिक्षा नीति में क्या अहम प्रावधान किए गए हैं, इस पर शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ से प्रकाश कुमार ने बात की। प्रमुख अंश:
हमें नई शिक्षा नीति की क्या जरूरत थी, जबकि अभी पहले की नीतियों के एजेंडे पर ही अमल नहीं हो पाया है?
नई शिक्षा नीति-2020 पुरानी नीतियों के उन अधूरे एजेंडों को भी पूरा करेगी, जिसमें उनका उद्देश्य सबको और बिना किसी भेदभाव के शिक्षा देना था। पिछली शिक्षा नीति 1986 में आई थी, जिसे 1992 में संशोधित किया गया था। संशोधन के बाद शिक्षा का अधिकार एक मूल अधिकार बन गया। इसके लिए नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 बनाया गया। नई शिक्षा नीति-2020, इक्कीसवीं सदी की पहली शिक्षा नीति है, जिसे 2030 के विकास एजेंडे को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। इसका उद्देश्य भारत को एक ज्ञान आधारित समाज में विकसित कर दुनिया में सुपरपावर बनाना है। इसके लिए स्कूल और कॉलेज की शिक्षा को कहीं ज्यादा समावेशी बनाया गया है। नई नीति को 21वीं सदी की जरूरतों को देखते हुए काफी लचीली और बहु-विषयक शिक्षा प्रणाली के लिए तैयार किया गया है। इसके जरिए हर छात्र की विशेष क्षमता का सदुपयोग किया जा सकेगा।
10+2 की जगह 5+3+3+4 वाला पाठ्यक्रम क्यों अपनाया गया?
नए पाठ्यक्रम को इस तरह तैयार किया गया है कि उससे बच्चे की बुद्धि का विकास हो सके। नीति में कम उम्र से ही बच्चे की इस आधार पर परवरिश करने पर जोर है। इसी कारण 10+2 की जगह 5+3+3+4 वाला पाठ्यक्रम लाया गया है। इसके तहत 3-8, 8-11, 11-14 और 14-18 वर्ष की उम्र के आधार पर पाठ्यक्रम तैयार किया गया है। इस बदलाव से 3-6 वर्ष की उम्र के बच्चे स्कूली शिक्षा से जुड़ जाएंगे। यह पद्धति पूरी दुनिया में लागू है और माना जाता है कि इससे बच्चों का बेहतर विकास होता है।
देश भर के स्कूलों में लाखों शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं, ऐसे में 5+3+3+4 प्रणाली कैसे लागू होगी?
नई शिक्षा नीति में शिक्षकों को केंद्र में रखकर मूलभूत बदलाव करने की बात कही गई है। इसके तहत ऐसी चयन प्रक्रिया अपनाई जाएगी, जिससे सभी स्तर पर सबसे अच्छे लोग शिक्षक चयनित हों। इस पूरी प्रक्रिया में शिक्षक के जीवनयापन, सम्मान, प्रतिष्ठा और स्वायत्तता का भी ध्यान रखा जाएगा। नई व्यवस्था में पढ़ाई की गुणवत्ता और शिक्षकों की जवाबदेही पर भी जोर रहेगा। ऐसे क्षेत्रों में जहां काफी कम साक्षरता है, छात्रों के मुकाबले शिक्षकों का अनुपात कम है। वहां जल्द से जल्द शिक्षकों की नियुक्ति की जाएगी। शिक्षकों की जरूरतों को समझने के लिए हम तकनीक का इस्तेमाल करेंगे। इसके जरिए प्रत्येक राज्य अगले 20 साल में विषय के आधार पर शिक्षकों की जरूरत का आकलन करेगा। उसी आधार पर नियुक्तियां की जाएंगी।
स्कूल में अध्यापन का माध्यम क्या होगा?
ज्यादातर विकसित देशों में शुरुआती स्कूली शिक्षा बच्चों की मातृभाषा में दी जाती है। इसका फायदा यह होता है कि बच्चे के साथ-साथ माता-पिता भी उसकी पढ़ाई में सहभागिता करते हैं। शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 में कहा गया है कि बच्चों को समझाने और व्यावहारिक ज्ञान देने का तरीका उसकी मातृभाषा में होना चाहिए। नई शिक्षा नीति कहती है, आठवीं कक्षा या हो सके तो उससे आगे की कक्षा में भी पढ़ाई का माध्यम मातृभाषा, स्थानीय भाषा या क्षेत्रीय भाषा होनी चाहिए। अगर ऐसा करना संभव नहीं है तो पांचवीं कक्षा तक हर हाल में कोशिश होनी चाहिए कि समझाने का माध्यम मातृभाषा ही हो। यह व्यवस्था सरकारी और निजी दोनों स्कूलों के लिए होगी। इस आधार पर केंद्र और राज्य सरकारें बड़े पैमाने पर क्षेत्रीय भाषाएं जानने वाले शिक्षकों की नियुक्ति कर सकेंगी। इसके लिए अलग-अलग राज्य आपस में शिक्षकों की भर्ती के लिए समझौते भी कर सकते हैं। इस तरह त्रिभाषी फॉर्मूले के आधार उनकी जरूरतें पूरी हो सकेंगी।
बोर्ड परीक्षाओं के लिए नया तरीका क्या होगा?
दसवीं और बारहवीं की बोर्ड परीक्षाएं चलती रहेंगी। लेकिन परीक्षा के तरीके और प्रवेश परीक्षाओं को ऐसा बनाया जाएगा, जिससे कोचिंग क्लास की जरूरत नहीं रह जाएगी। छात्र के पास चुनने के लिए ज्यादा विषय होंगे। वे अपनी इच्छा के अनुसार विषय पढ़ सकेंगे। परीक्षा की प्रक्रिया भी आसान हो जाएगी। यह इस तरह होगी कि अगर कोई छात्र स्कूल की पढ़ाई के आधार पर एक सामान्य पढ़ाई भी करेगा तो वह परीक्षाओं में अच्छा प्रदर्शन करेगा। अच्छे नंबर लाने के लिए उसे कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं करना होगा। परीक्षा का दबाव कम करने के लिए छात्र साल में दो बार बोर्ड परीक्षा देगा। एक प्रमुख परीक्षा होगी तो दूसरी जरूरत पड़ने पर सुधार के लिए ली जाएगी। छात्रों और सभी मान्यता प्राप्त बोर्ड के मूल्यांकन के लिए एक राष्ट्रीय मूल्यांकन केंद्र, परख (समग्र विकास के लिए ज्ञान का मूल्यांकन, समीक्षा और विश्लेषण) का गठन किया गया जाएगा जो मानक और दिशानिर्देश तय करेगा। एक राष्ट्रीय टेस्टिंग एजेंसी का भी गठन होगा जो उच्च गुणवत्ता वाला एप्टीट्यूड टेस्ट और विभिन्न विषयों जैसे विज्ञान, भाषा, कला, व्यवसाय, मानविकी के लिए कॉमन प्रवेश परीक्षा लेगी। इस आधार पर विश्वविद्यालयों में साल में दो बार प्रवेश परीक्षाएं ली जाएंगी।
नई शिक्षा नीति में स्कूल पाठ्यक्रमों में अहम बदलाव की बात की गई है, जिसके आधार पर अब भारतीय और स्थानीय परंपराओं और मान्यताओं को ज्यादा तरजीह दी जाएगी...
नई नीति का विजन ही ऐसी शिक्षा प्रणाली विकसित करना है जिसमें भारतीय परंपराओं और मूल्यों को जगह मिले, शिक्षा प्रणाली में इंडिया की जगह भारत की झलक मिले। इसका उद्देश्य ऐसी समतावादी और उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रणाली बनाना है जिससे एक ज्ञान आधारित समाज का निर्माण हो और भारत दुनिया में एक सुपरपावर के रूप में स्थापित हो। राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा समिति की यह जिम्मेदारी होगी कि वह इन मुद्दों को पाठ्यक्रम में शामिल करे। “भारत के ज्ञान” में प्राचीन भारत से लेकर आधुनिक भारत के समय में लोगों के योगदान को शामिल किया जाएगा। हमें यह समझना होगा कि इसकी सफलता भारत के भविष्य की उम्मीदों की दिशा तय करेगी। इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण आदि सब शामिल हैं। इसमें आदिवासियों के ज्ञान से लेकर स्थानीय और परंपरागत तरीकों को भी जगह मिलेगी। इन तरीकों को वैज्ञानिक तरह से समझ कर ही पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा। ये तरीके गणित, ज्योतिष, मनोविज्ञान, योग, कृषि, इंजीनियरिंग, भाषा, साहित्य, खेल, गवर्नेंस, राजनीति, चिकित्सा आदि क्षेत्रों में शामिल होंगे। सभी पाठ्यक्रमों में जरूरी बदलाव शुरुआती स्तर से ही किए जाएंगे। इसमें भारतीय परंपराओं, मान्यताओं और स्थानीयता की झलक होगी। इसमें संस्कृति, धरोहर, रहन-सहन, भाषा, मनोविज्ञान के प्राचीन और समकालीन ज्ञान को भी शामिल किया जाएगा। पाठ्यक्रम में कहानियां, कला, खेल आदि के उदाहरण ऐसे होंगे जिनमें भारतीय परंपराओं और स्थानीयता का तत्व शामिल होगा। इसी तरह आदिवासियों की चिकित्सा पद्धति, उनके वन संरक्षण, पारंपरिक खेती के तरीके, प्राकृतिक कृषि आदि के लिए पाठ्यक्रम बनाए जाएंगे।
वाम दल इस बात का आरोप लगा रहे हैं कि नई शिक्षा नीति-2020 से केंद्रीकरण, सांप्रदायिकता और शिक्षा के व्यवसायीकरण को बढ़ावा मिलेगा।
नई शिक्षा नीति में राज्यों की भूमिका को महत्व दिया गया है। नीति का कोई भी हिस्सा राज्यों की मर्जी के बिना नहीं थोपा जाएगा। नीति का जोर इसी बात पर है कि ऐसी सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली विकसित की जाए जो सबको गुणवत्तापरक शिक्षा दे सके। शिक्षा के व्यवसायीकरण को कैसे रोका जाए, उस पर शिक्षा नीति में एक अलग अध्याय भी शामिल किया गया है। इसके अलावा कई ऐसे प्रावधान किए गए हैं, जिनसे व्यवसायीकरण पर रोक लगेगी। सभी शिक्षण संस्थानाओं का “गैर-लाभकारी” इकाई के रूप में ऑडिट किया जाएगा। अगर कोई संस्थान अतिरिक्त कमाई करता है तो उसे भी शिक्षा के विकास में खर्च करना पड़ेगा। सभी वित्तीय मामलों के लिए पारदर्शी डिसक्लोजर नीति अपनाई जाएगी। नई शिक्षा नीति प्रत्येक भाषा, कला और संस्कृति को समान रूप से विकसित करने पर जोर देती है।