इंटरव्यू राजकुमार राव: यहां बाहरी कोई नहीं
अभिनेता-स्टार राजकुमार राव ने इस साल बॉलीवुड में एक दशक पूरा कर लिया है। 2010 में दिबाकर बनर्जी की फिल्म लव, सेक्स और धोखा की सफलता के बाद 36 साल के इस हरियाणवी प्रतिभा ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। शाहिद (2013), अलीगढ़ (2015), न्यूटन (2017) और स्त्री (2018) के बाद अब वे अमेजन प्राइम वीडियो पर निर्देशक हंसल मेहता की अगली फिल्म छलांग में आ रहे हैं। गिरिधर झा के साथ उन्होंने अपनी सफलता और कंटेंट आधारित हिंदी फिल्मों पर बात की। संपादित अंश:
आने वाली अगली फिल्म छलांग में आप फिजिकल ट्रेनिंग टीचर बने हैं। इस चरित्र से खुद को कितना जोड़ पाते हैं?
मैं हरियाणा में ही बड़ा हुआ और अपने जीवन में इस तरह के लोग देखे हैं। इसलिए मेरे पास इससे जुड़े कुछ संदर्भ थे। कुछ मैंने वहां से लिया, कुछ मेरी कल्पना थी और बाकी ढेर-सी बातें स्क्रिप्ट में थीं। उनके जैसे पीटी टीचर हमारे जिंदगी में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। वे हमारे जीवन में फिटनेस की नींव रखते हैं और हमें इसका महत्व समझाते हैं। बेशक, पढ़ाई महत्वपूर्ण है, लेकिन खेल भी उतना ही जरूरी है।
यह एक अंडरडॉग या उपेक्षित व्यक्ति के सफल होने की कहानी है। अपने करिअर में आप ऐसे ही सफल हुए हैं?
लोग बेहतर तरीके से इसका निर्णय कर पाएंगे। लेकिन हां, मैं भी गुड़गांव जैसे छोटे शहर से अभिनेता बनने का सपना लेकर आया था, जो आसान नहीं था। मुझे नहीं पता कि आप इसके लिए मुझे अंडरडॉग मानेंगे या नहीं। लेकिन आज यहां होना और दिवाली पर रिलीज होने वाली अपनी फिल्म के बारे में बात करना, एक तरह से, मुझे लगता है, हां, ऐसा है।
हंसल मेहता के साथ आपने जितनी फिल्में की हैं, छलांग उनमें अलग दिखाई देती है...
बिलकुल! अभी तक हमने कई सारे ड्रामा, बाॅयोपिक, सामाजिक मुद्दों पर फिल्में बनाईं लेकिन यह हमारे लिए भी अलग है। हरियाणा के एक छोटे शहर की यह एक हल्की-फुल्की कहानी है। हम दोनों के लिए ही यह अलग तरह का मोड़ है।
हंसल मेहता के साथ आपकी अधिकांश फिल्में संजीदा किस्म की रही है। उनके साथ आपका तालमेल कैसा है?
हमारे बीच सहज तालमेल है और हम एक-दूसरे को बहुत अच्छी तरह समझते हैं। अब हमें एक दूसरे को समझने के लिए बहुत शब्दों की जरूरत नहीं होती, जो बताता है कि हमें एक-दूसरे पर बहुत भरोसा है। एक अभिनेता और निर्देशक के बीच यह बहुत महत्वपूर्ण है। तभी आप कुछ रोमांचक बना सकते हैं, जिस पर आप गर्व करें। हम हमेशा एक जैसा सोचते हैं।
शाहिद से अलीगढ़ तक, आपने उनकी फिल्मों में कुछ विशेष भूमिकाएं निभाई हैं...
उनके साथ मेरे सभी किरदार खास हैं। ये ऐसे पात्र हैं, जिनके बारे में 50 साल बाद जब लोग हमारी फिल्मोग्राफी के बारे में बात करेंगे, तो वे निश्चित रूप से उन सभी को याद करेंगे। चाहे वह शाहिद हो, अलीगढ़ या सिटी लाइट्स (2014), बोस: डेड/अलाइव (2017) या ओमेर्टा (2018)। ये किरदार मेरे दिल के बहुत करीब हैं और उन्होंने मुझे पहचान दी है। शाहिद से मेरे लिए बहुत कुछ बदल गया।
फिल्म उद्योग में आपने एक दशक पूरा कर लिया है। यह आपके लिए बड़ी छलांग नहीं है?
अपने करिअर में मैंने छोटी-छोटी छलांग मारी है। मुझे लगता है, हिंदी सिनेमा में अभिनेता बनने का मेरा फैसला बड़ी छलांग थी। अब मैं अपनी हर फिल्म के साथ एक छोटी छलांग मार रहा हूं। अपने साथ-साथ दर्शकों के लिए भी रोमांचक काम करने की कोशिश कर रहा हूं और एक अभिनेता के रूप में खुद को आगे बढ़ा रहा हूं।
हरियाणा से लेकर बॉलीवुड तक आपकी यात्रा कैसी रही? कभी आपको बाहरी होने का एहसास हुआ?
यहां बहुत सारे अभिनेता हैं, जो बाहरी हैं लेकिन ये लोग अद्भुत काम कर रहे हैं। मुझे लगता है, आप अपना काम जानते हैं, उसे अच्छी तरह करते हैं और लोग आपको देखना चाहते हैं, तो कुछ भी आपको रोक नहीं सकता। यहां अवसरों की कमी नहीं है। यहां सभी लोगों के लिए जगह है। बाहर से आए व्यक्ति को कुछ समय लग सकता है क्योंकि आप यहां किसी को जानते नहीं हैं। आपको इस पर कायम रहना है और हार नहीं मानना है।
लव सेक्स और धोखा (2010) से पहले आपका संघर्ष किस तरह का रहा?
2008 में फिल्म ऐंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया से यहां आने के बाद मैंने बहुत संघर्ष किया। दो साल मैं हर दिन निर्देशकों, कास्टिंग डायरेक्टरों से मिलने की कोशिश करता था। उन्हें अपना काम दिखाता था और उन्हें इस बात के लिए राजी करने की कोशिश करता था कि वे लोग मुझे अपनी अगली फिल्म के ऑडिशन के लिए बुलाएं। वे दो साल लगातार संघर्ष के साल थे। बिना पैसे के वे कठिन दिन थे। समय पर खाना नहीं मिलता था लेकिन मेरे पास कभी कोई दूसरी योजना नहीं थी। मैंने तय कर लिया था कि मैं यहां क्यों आया था, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि इसमें कितना वक्त लगेगा।
कंटेंट के लिहाज से पिछला दशक हिंदी सिनेमा के लिए सुनहरा दौर रहा है। आपको लगता है, आप सही समय पर पहुंचे?
निश्चित रूप से। बहुत सारे वरिष्ठ अभिनेताओं को भी यही लगता है कि हम सही समय पर आए जब नई पीढ़ी के बहुत सारे फिल्मकार ऐसे पात्र लिख रहे थे जो जड़ से जुड़े, अनगढ़ और यथार्थवादी हों। निश्चित रूप से मैं सही समय पर आया, वरना मुझे नहीं पता कि क्या हुआ होता। जब मैं आया, तब तक इंडस्ट्री कंटेंट और चरित्रों द्वारा चलने वाली फिल्मों की तरफ ज्यादा रुख करने लगी थी और मुझे यही करना पसंद था। लीड रोल हो या न हो, मुझे खुद के लिए नहीं बल्कि कैमरे के सामने किरदार निभाना पसंद है।
इस अवधि में, छोटे बजट की फिल्मों ने 100 करोड़ रुपये से ज्यादा का कारोबार किया है। पहले ऐसा नहीं था। आपको इसका क्या कारण लगता है?
मुझे लगता है, अब दर्शकों की समझ विकसित हो रही है। मोबाइल फोन के जरिये हर प्रकार के विश्व सिनेमा तक उनकी पहुंच है और वे दुनिया भर से महान सामग्री देख रहे हैं। वे हमारे उद्योग से भी इसी तरह की सामग्री की उम्मीद कर रहे थे और जब ऐसी फिल्में आईं तो शिफ्ट हुआ। दर्शकों ने इस तरह के बदलाव का स्वागत किया और यही वजह है कि स्त्री या बरेली की बर्फी (2017) या बधाई हो (2018) जैसी फिल्मों ने अच्छा बिजनेस किया। लोग अब अभिनेताओं को परदे पर किरदार निभाते देखना चाहते हैं। बेशक, बड़ी फिल्में हमेशा बनी रहेंगी और मैं भी ऐसी फिल्मों का बहुत बड़ा प्रशंसक हूं, लेकिन अब कंटेंट से चलने वाली फिल्में आ रही हैं।
आपको लगता है, कुछ वर्षों में बॉलीवुड में स्टार सिस्टम वाला आभामंडल हमेशा के लिए खो जायेगा?
मुझे लगता है कि स्टार सिस्टम हमेशा रहेगा। लेकिन मैं महसूस करता हूं कि हमारी कहानियों को ही स्टार होना चाहिए। लोगों को कहानियों में कुछ और निवेश करना चाहिए। फिल्म निर्माताओं को अच्छी स्क्रिप्ट लिखने में अधिक समय और ऊर्जा लगानी चाहिए और दर्शकों को भी अच्छी कहानियों का स्वागत करना चाहिए।
बड़े बैनर अब आपके लिए महत्वपूर्ण हैं या आप अभी भी कंटेंट आधारित फिल्में ही करेंगे?
कंटेंट हमेशा के लिए है। मेरे लिए कहानी और स्क्रिप्ट से बड़ा कुछ नहीं है।
न्यूटन जैसी छोटे बजट की आपकी फिल्म चल जाती है, लेकिन बड़े बैनर की फन्ने खां (2018) फ्लॉप हो जाती है। दोनों विषयों को चुनते समय जाहिर है, आपने एक जैसा ध्यान दिया होगा। आप इसे कैसे देखते हैं?
जो गलत हुआ उससे आपको सीखना होगा और उसे सुधारने की कोशिश करनी होगी। संभव है, आप इसे थोड़ा अलग या बेहतर तरीके से कर सकते थे। मैं हमेशा से सिनेमा का छात्र रहा हूं और कहीं न कहीं समझता हूं कि कोई फिल्म क्यों नहीं चलती। लेकिन फिर भी, आप पहले से नहीं जान सकते कि क्या चीज काम कर जाएगी। सभी लोग ईमानदारी के साथ अच्छी फिल्म बनाने की कोशिश करते हैं लेकिन आखिरकार, तय तो दर्शकों को करना है।
अमेजन प्राइम और नेटफ्लिक्स जैसे ओटीटी खिलाड़ियों का आना आपके जैसे अभिनेता के लिए गेम-चेंजर कैसे साबित हुआ?
यह सिर्फ मेरे बारे में नहीं है। यह सबके बारे में है। ओटीटी बहुत मजबूत मंच है और एक समानांतर उद्योग के रूप में उभरा है। जिस तरह का कंटेंट वह बना रहा है, वह कमाल है। मैं ऐसे कई प्रतिभाशाली अभिनेताओं को जानता हूं, जिन्हें पहले अच्छा काम नहीं मिल रहा था। लेकिन अब, वे इस मंच के माध्यम से दर्शकों से बहुत प्रसिद्धि और प्यार पा रहे हैं। जहां तक कंटेंट की बात है, ओटीटी निश्चित रूप से इसे सीमाओं से परे ले जा रहा है।
एक दशक बाद ऐसी कोई भूमिका जो आप निभाना चाहते हो?
ईमानदारी से कहूं, तो मैंने कभी इस बारे में नहीं सोचा। हर किरदार जो मुझे मिलता है, वह मेरा ड्रीम किरदार है। मैं इसे पूरी शिद्दत से करता हूं। मैं यह नहीं कह सकता कि मुझे किसी खास भूमिका का इंतजार है।
निर्देशक बनने का कोई खयाल?
ऐसा कोई विचार अभी तक मेरे मन में नहीं आया है, लेकिन मैं कभी यह भी नहीं कहता कि कभी नहीं! हो सकता है, किसी दिन मुझे ऐसी कहानी मिले जो मेरे दिल के करीब हो और मुझे महसूस हो कि मैं इस कहानी को कहना चाहता हूं, तो शायद हो भी सकता है। लेकिन यह तो तय है कि इतनी जल्दी नहीं।