'2018 में एक करोड़ लोगों ने गंवाई नौकरी'
रोजगार की स्थिति को लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं। केंद्र सरकार एक तरफ यह मानने को तैयार नहीं है कि बेरोजगारी दर बढ़ गई है। वहीं, अलग-अलग आंकड़े साफ तौर पर बढ़ती बेरोजगारी की तस्वीर पेश कर रहे हैं। रोजगार पर सर्वेक्षण करने वाली संस्था सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी प्राइवेट लिमिटेड (सीएमआइई) के अनुसार, देश में बेरोजगारी दर गंभीर स्थिति में पहुंच गई है। इस पूरे मामले पर आउटलुक के एसोसिएट एडिटर प्रशांत श्रीवास्तव की सीएमआइई के मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ महेश व्यास से हुई बातचीत के अंश,
फरवरी में बेरोजगारी दर 7.2 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई, ऐसे में किन कारणों से रोजगार के अवसर नहीं बढ़ रहे हैं?
देश में लगातार बेरोजगारी दर बढ़ रही है। इसकी तीन प्रमुख वजहें हैं। पहली बात यह है कि 2011-12 से लगातार निवेश की दर में गिरावट आ रही है। 2011-12 में जहां निवेश अनुपात 34.3 फीसदी था, आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार वह 2018-19 में घटकर 32.3 फीसदी पर आ गया है। दूसरी वजह नवंबर 2016 में लिया गया नोटबंदी का फैसला था। इस कारण कारोबारियों के सामने नकदी की समस्या आ गई और उनकी निवेश की योजना अटक गई। नोटबंदी के अचानक फैसले से उद्योग जगत अभी उबर ही रहा था कि अचानक गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) को लागू कर दिया गया। जीएसटी का सबसे ज्यादा असर छोटे और मझोले कारोबारियों पर हुआ, जो देश में सबसे ज्यादा रोजगार प्रदान करते हैं। ऐसे में बड़ी संख्या में नौकरियां चली गईं। उसी का असर है कि बेरोजगारी दर बढ़ रही है।
इन वजहों से कितनी नौकरियां गई हैं, ऐसा कोई आकलन आपने किया है?
साल 2018 में एक करोड़ से ज्यादा लोगों को अपनी नौकरियां गंवानी पड़ी थीं। इसके लिए हमने सबसे प्रामाणिक सर्वेक्षण किया था। हम लोगों के घर में जाकर सर्वेक्षण करते हैं। हम रोजगार की स्थिति को समझने के लिए 1.75 लाख परिवारों के पास गए। इसमें 5.50 लाख वयस्क लोग थे, जिनसे हमने उनकी रोजगार की स्थिति जानने की कोशिश की। यह सर्वेक्षण पूरे चार महीने किया गया। औसतन हर महीने एक लाख लोगों तक हम पहुंचे, जिसके आधार पर यह आंकड़ा समाने आया।
जब भी बढ़ती बेरोजगारी की बात होती है तो केंद्र सरकार स्व-रोजगार की बात करती है, साथ ही मुद्रा लोन के आंकड़ों की दुहाई देती है। इस पर आपका क्या कहना है?
हमारे सर्वेक्षण में स्व-रोजगार करने वाले लोगों को भी शामिल किया जाता है, जिसमें मुद्रा लोन लेने वाले लोग भी शामिल हैं। ऐसे में बेरोजगारी दर के जो आंकड़े सामने आ रहे हैं, उसमें सभी पहलू शामिल हैं। क्या आपको लगता है कि तस्वीर पेश करने के लिए यह चीजें पर्याप्त नहीं हैं?
क्या आपको लगता है कि मोदी सरकार रोजगार के मुद्दे को सही तरीके से नहीं सुलझा पाई?
यह कहना बहुत आसान है कि सरकार ने पर्याप्त कदम नहीं उठाए। बेरोजगारी एक समग्र आर्थिक समस्या है, जिसे अकेले सरकार द्वारा दूर नहीं किया जा सकता है। लेकिन सरकार ऐसी परिस्थितियां तैयार कर सकती है, जिससे रोजगार के अवसर ज्यादा से ज्यादा पैदा हों। आंकड़ों से साफ है कि सरकार द्वारा इस दिशा में उठाए गए कदम पर्याप्त नहीं थे।
ताजा सर्वेक्षण में आपने श्रमिकों की घटती भागीदारी का खुलासा किया है, यह कितनी चिंता का विषय है?
श्रमिकों की भागीदारी घटने का सीधा मतलब है कि जो लोग नौकरी पाने की उम्र में पहुंच गए हैं, वह नौकरियां नहीं ढूंढ़ रहे हैं। यह एक गंभीर मसला है। अगर कोई व्यक्ति नौकरी करने की उम्र में पहुंचकर नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर रहा है, तो इसका मतलब है कि लोगों को लग रहा है कि उन्हें अब नौकरी ढूंढ़ने पर नहीं मिलेगी। उसे इस बात की निराशा हो गई है कि नौकरी ढूंढ़ने का कोई फायदा नहीं है। जब हम बेरोजगारी दर का आकलन करते हैं, तो उसमें उन सभी लोगों को शामिल किया जाता है, जो श्रम बाजार में प्रवेश कर चुके हैं। अब अगर कोई व्यक्ति श्रम बाजार में आएगा ही नहीं, तो उसका आकलन नहीं हो सकेगा। यह स्थिति अच्छी नहीं है।
सीएमआइई के आंकड़ों पर कहा जाता है, यह ओपिनियन या एक्जिट पोल जैसे हैं, ऐसे में इन पर भरोसा नहीं किया जा सकता है?
देखिए, हम घरों में जाकर सर्वेक्षण करते हैं। हमारा सैंपल साइज काफी बड़ा होता है। इसके अलावा हम सर्वेक्षण में तकनीक का भी बेहतर इस्तेमाल करते हैं। पूरा सर्वेक्षण फुल टाइम र्मचारियों के द्वारा किया जाता है। साथ ही कर्मचारियों को जीपीएस युक्त उपकरण भी दिए जाते हैं। जिस तरह सरकार सर्वेक्षण करती है हम उसी तरह करते हैं, बस अंतर यह है कि हमारा सैंपल साइज बड़ा होता है। साथ ही सर्वेक्षण का काम तेजी से किया जाता है। रोजगार की स्थिति जानने के लिए इससे बेहतर पद्धति नहीं हो सकती है।