“जनता समझदार हो गई है, सोचकर वोट देगी”
भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र ने पार्टी के शुरुआती दौर से आज तक का सफर देखा है। इस दौरान पार्टी का कल्चर कैसे बदला, नई पीढ़ी के पास कमान पहुंचने से वरिष्ठ नेताओं की स्थिति में क्या बदलाव आया और आगामी चुनावों में क्या संभावनाएं हैं, इस पर उन्होंने आउटलुक के साथ विस्तार से बातचीत की है। आउटलुक के संपादक हरवीर सिंह और एसोसिएट एडिटर प्रशांत श्रीवास्तव से हुई बातचीत के प्रमुख अंश...
आप भाजपा के वरिष्ठतम नेताओं में से एक हैं। आप की पीढ़ी की जगह अब नई पीढ़ी कमान संभाल रही है, इससे पार्टी के कल्चर में किस तरह का बदलाव आया है।
अलग-अलग समय में अलग परिस्थतियों के आधार पर टीम काम करती है। हमारे समय से आज की परिस्थिति अलग है। अब डिजिटल दौर है, उसके अनुसार काम होता है। छोटा सा बच्चा मोबाइल के बारे में जितना जानता है, उतना बाप और बाबा नहीं जानते। लेकिन, इस जेनरेशन गैप का फायदा यह है कि आने वाली पीढ़ी ज्यादा सामाजिक बदलाव करती है। जहां तक हमारी पीढ़ी की बात है तो मैं कह सकता हूं कि उस समय के हिसाब से हमने एक आदर्श संगठन, विपक्ष और सत्ता पक्ष का उदाहरण पेश किया था। आज भी योग्य लोग हैं, छोटी-छोटी स्कीम को डिजिटल आधार पर आम जनता तक पारदर्शी रूप में पहुंचा रहे हैं। भाजपा की सरकार जब भी आई है तो हमने जनकल्याण को ध्यान में रखते हुए काम किया। लेकिन एक बात साफ है कि अलग-अलग दौर की तुलना एक-दूसरे से नहीं की जा सकती है।
भाजपा पार्टी विद डिफरेंस कही जाती थी। यह अंतर अब खत्म होता जा रहा है?
उस समय जब हम पार्टी विद डिफरेंस की बात कहते थे, तब हम बहुत छोटी पार्टी थे। अपनी हर खासियत को पार्टी विद डिफरेंस की पहचान के साथ पेश करते थे ताकि हम लोगों को नजर आ सकें। पर अब पार्टी व्यापक हो गई है। सभी जगह हम दिख रहे हैं। इसके बावजूद हम अभी भी पार्टी विद डिफरेंस हैं, अगर ऐसा नहीं होता तो अब तक पार्टी टूट गई होती। यह ठीक है कि कुछ लोगों के आचरण, व्यवहार में कभी-कभी कुछ कमी लगती है, लेकिन उसे पार्टी का रिफ्लेक्शन नहीं कह सकते। पार्टी का आचरण आज भी वैसा ही है। इसीलिए गरीब से लेकर सक्षम तक सभी लोगों को पार्टी में तरजीह मिलती है। भाजपा में प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देता है कि सामान्य परिवार में जन्म लेने वाला आदमी भी प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और मुख्यमंत्री बन सकता है। इसकी वजह से आम लोगों के मन में यह भावना जगी है कि उनकी आकांक्षाओं को भाजपा ही पूरा कर सकती है।
ऐसा लगता है कि विस्तार के नाम पर पार्टी अपने मूल सिद्धांतों से समझौता कर रही है?
पार्टी का कल्चर अभी भी पहले जैसा ही है। आज की पीढ़ी की जरूरतों को देखते हुए पार्टी अपने मूलभूत सिद्धांत को अपनाते हुए आगे बढ़ रही है। हम बूथ स्तर तक प्रशिक्षण दे रहे हैं, जिससे पार्टी के मूल्यों और सिद्धांतों को जमीनी स्तर तक पहुंचाया जा सके। आम लोगों के साथ जुड़कर सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का व्यावहारिक स्वरूप भी हम विकसित करते हैं। आचरण और व्यवहार को भी पार्टी विद डिफरेंस के रूप में बनाए रखने की कोशिश करते हैं। कठिनाइयां जरूर पैदा होती हैं, लेकिन हमारा काम चल रहा है। लोगों को दिखता है कि उस समय ऐसा था अब ऐसा है, वास्तव में ऐसा नहीं है। हमने पार्टी का बहुत विस्तार किया है। इस क्रम में बहुत से ऐसे लोग आ रहे हैं, जो पार्टी के कल्चर से मेल नहीं खाते हैं। लेकिन समय के साथ धीरे-धीरे वह भी कल्चर के हिसाब से बदल रहे हैं। आज हम दो तिहाई हिस्से में शासन कर रहे हैं। इतने व्यापक विस्तार पर इनकल्चरेशन की प्रक्रिया हो रही है, जो थोड़ा बहुत स्वाभाविक है।
आपने दो तिहाई हिस्से पर शासन की बात की है। ऐसा समय किसी पार्टी को हमेशा नहीं मिलता है। आप जो बदलाव चाहते हैं, उसमें कोई अड़चन नहीं है, फिर भी बीते चार साल के शासन को देखा जाय तो लगता है कि शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर फोकस कम है?
देखिए, हमारे देश में आधारभूत ढांचे का विकास ज्यादा से ज्यादा करने की आवश्यकता है। इसके तहत सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य सब शामिल हैं। ‘सबका साथ, सबका विकास’ का जो मंत्र आया है वह इन्हीं जरूरतों को ध्यान में रखते हुए आया है। पिछले चार साल में हमारा सबसे अहम काम कनेक्टिविटी बढ़ाने पर रहा है। सड़क, वायु, जल सब जगह कनेक्टिविटी बढ़ी है। कनेक्टिविटी के बाद बिजली सबसे अहम है। इसके बिना कुछ संभव नहीं है। हमने हर गांव और हर घर तक बिजली पहुंचाने का काम किया है। बिजली उत्पादन बढ़ाने के लिए हमने परंपरागत तरीकों के अलावा सोलर पर भी फोकस किया है। स्वास्थ्य के तहत प्रिवेंशन पर ज्यादा जोर दिया है। इसके कारण पूर्वांचल में इस बार इंसेफ्लाइटिस के मामले बेहद कम सामने आए हैं। आयुष्मान योजना के तहत पांच लाख रुपये तक का इलाज मुफ्त में योग्य लोगों को मिलेगा। इसी तरह रोजगार के लिए हमने स्वरोजगार पर फोकस किया है। इसी के तहत मुद्रा योजना शुरू की गई, जो रोजगार से लेकर स्वरोजगार का लाभ दे रही है।
नोटबंदी की वजह से तमाम लोगों की नौकरियां गईं और सरकार भी अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पाई, ऐसे में क्या आपको लगता है कि यह गलत फैसला था?
शुरुआत में नोटबंदी का नुकसान हुआ था जिससे लोग परेशान हुए। उस दौर में जरूर ऐसा हुआ था लोगों की नौकरियां गईं, गांवों की तरफ पलायन भी बढ़ा था। लेकिन 3-4 महीने बाद स्थिति सुधरनी शुरू हो गई। इसके अलावा ग्लोबल परिस्थितियों का भी प्रेशर था। पर अब स्थिति सामान्य हो गई है। जहां तक नौकरी की बात है तो ‘बेरोजगार से लेकर स्वरोजगार की यात्रा’ का हमने नारा दिया। इसके तहत एमएसएमई मंत्रालय में मेरे मंत्री रहते 300 से ज्यादा इन्क्यूबेशन सेंटर खोले गए, जहां किसी भी व्यक्ति को छोटा बिजनेस शुरू करने की ट्रेनिंग मिलती है। जब मैं मंत्री था, एसपायर स्कीम (स्कीम फॉर प्रमोशन ऑफ इनोवेशन, आंत्रप्रेन्योरशिप ऐंड एग्रो इंडस्ट्री) शुरू की गई। साथ ही देश के हर जिले की स्किल मैंपिंग भी की गई है।
भाजपा ने बुजुर्ग पार्टी नेताओं को अब अलग कैटेगरी, मार्गदर्शक के रूप में पहचान देनी शुरू कर दी है। इसे आप कैसे देखते हैं?
ये चीजें पार्टी के क्रियाकलाप से जुड़ी हैं। इसलिए मेरा प्रतिक्रिया देना सही नहीं है। मैंने स्वयं 75 की उम्र पार करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से पूछा था कि मुझे क्या करना है। उस समय हम अनुभव करते थे, मुझे लेकर मीडिया में बेमतलब की बातें आ रही थीं, इसीलिए मैंने कहा कि मुझे क्या करना है। पार्टी की नीति के आधार पर बाद में मैं मंत्री पद से हट गया था। कुल मिलाकर यह सिर्फ कलराज मिश्र का मामला नहीं है। यह पूरी तरह से नीतिगत फैसला है। आगे भी पार्टी जो तय करेगी वह हम करेंगे।
महागठबंधन से क्या लगता है कि भाजपा सरकार के लिए मुश्किलें बढ़ेंगी?
लोकसभा चुनाव की बात करें, तो जनता समझदार हो गई है। दिल्ली में बैठकर भले ही हमें आभास न हो लेकिन गांव में बैठा मतदाता यह सोचता है कि मोदी नहीं तो किसे वोट दिया जाए! उनके सामने इससे अच्छा कोई विकल्प नहीं है। यह बात मैं दिल्ली में बैठकर नहीं कह रहा हूं, मैं गांव-गांव जाता हूं। मैं उस अनुभव के आधार पर कह रहा हूं कि आगामी लोकसभा चुनावों में विपक्ष के महागठबंधन का असर नहीं पड़ेगा। हम पूर्ण बहुमत से फिर सरकार बनाएंगे ।
आप उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं में से एक रहे हैं, आपके दौर में विपक्ष के नेता मुलायम सिंह, कांशीराम, मायावती जैसे लोग रहे हैं। अब विपक्ष के नेतृत्व में भी पीढ़ीगत बदलाव आ गया है। ऐसे में नए दौर की राजनीति में आप क्या अंतर देखते हैं?
देखिए, आज योगी आदित्यनाथ, अखिलेश यादव का जमाना है। ये लोग भी अपने स्तर पर अच्छा काम कर रहे हैं। एक बात समझिए जब भी पीढ़ीगत बदलाव होता है तो चिंतन बदलता है। आज की पीढ़ी के मनोविज्ञान को पुरानी पीढ़ी नहीं समझ पाती है तो वह आलोचना करने लगती है। लेकिन, नई पीढ़ी की सोच मौजूदा समय के आधार पर होती है। आज के दौर में व्यक्तिवाद बढ़ा है, इसीलिए छोटी-छोटी पार्टियां ज्यादा हैं। आज का परिवेश यह है कि लोग सोचते हैं कि किसी के साथ जुड़ने से क्या मिलेगा। यानी हमें फायदा क्या मिलेगा। सत्ता में रहकर लोग गाली दे रहे हैं, लेकिन साथ भी हैं। क्योंकि उनको लगता है साथ में रहने से कुछ फायदा मिलेगा। कुल मिलाकर यह अलग दौर है।