Advertisement
23 December 2024

इंटरव्यू । राहुल रवैलः ‘इंसानी भावनाओं को पर्दे पर उतारने में बेजोड़ थे राज साहब’

लव स्टोरी (1981), बेताब (1983), अर्जुन (1985), डकैत (1987), अंजाम (1994), और अर्जुन पंडित (1999) जैसी हिट फिल्मों के निर्देशन के लिए चर्चित राहुल रवैल दो बार सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकित हो चुके हैं। वे राज कपूर के बेहद करीबी थे और उन्हें अपना गुरु मानते हैं। उनका कहना है कि वे जो कुछ भी आज हैं, वह राज कपूर की बदौलत हैं। राहुल रवैल ने राज कपूर के साथ अपने अनुभवों को अपनी पुस्तक  राज कपूर: द मास्टर ऐट वर्क में संजोया है। यह किताब राज कपूर के निर्देशन, उनके सिनेमा के प्रति नजरिये और उनके व्यक्तित्व को करीब से समझने का मौका देती है। यह पुस्तक राज कपूर के फिल्मकार, अभिनेता और फिल्मों के प्रति जुनूनी एक व्यक्ति की अनोखी कहानी भी कहती है। आउटलुक के राजीव नयन चतुर्वेदी ने राहुल रवैल से खास बातचीत की। संपादित अंश:

भारतीय सिनेमा में राज कपूर के योगदान को कैसे देखते हैं?

भारतीय सिनेमा पर उनका गहरा प्रभाव था। जब मैं भारतीय सिनेमा कह रहा हूं, तो उसमें क्षेत्रीय भाषाओं में बनने वाली फिल्में भी शामिल हैं। राज कपूर का फिल्मों के बारे में नजरिया और उनकी सोच सबसे अलग थी। सिनेमा को लेकर उनका दृष्टिकोण बेहद व्यापक था। कोई भी विषय हो, वे उसे इतनी बारीकी से पर्दे पर उतारते थे कि हर दर्शक खुद को उससे जोड़ पाता था। आज भी उनका प्रभाव भारतीय सिनेमा पर कायम है।

Advertisement

समकालीनों में वे कितने और कैसे अलग थे?

वह दौर स्वर्णिम था। फिल्म इंडस्ट्री के लिए ऐसा समय न पहले आया न शायद आएगा। उस दौर में राज कपूर के साथ-साथ गुरु दत्त और महबूब साहब का भी सिनेमा पर बड़ा प्रभाव रहा। सभी की अपनी अलग पहचान थी और उनकी तुलना करना संभव नहीं है। फिर भी, राज कपूर का दृष्टिकोण और सिनेमा को देखने का तरीका उन्हें सबसे अलग बनाता था। इसी वजह से वे आज भी प्रासंगिक हैं।

राज कपूर पर लिखी राहुल रवैल की पुस्तक का आवरण

समकालीनों के साथ उनका रिश्ता कैसा था?

सभी के बीच दोस्ताना संबंध था। ये लोग अक्सर साथ बैठते और फिल्मों पर चर्चा करते थे। हंसी-मजाक आम बात थी। आज के समय में यह बदल गया है। अब स्क्रिप्ट के बजाय बजट को प्राथमिकता दी जाती है। किसी को इस बात की चिंता नहीं होती कि फिल्म कैसी बनेगी, बल्कि यह चिंता रहती है कि सप्ताहांत में वह कितनी कमाई करेगी।

ब्लैक ऐंड व्हाइट फिल्मों से शुरू कर वे रंगीन फिल्मों तक पहुंचे। कलाकार के रूप में उन्होंने इस बदलाव में खुद को कैसे ढाला?

उन्हें खुद को ज्यादा ढालना नहीं पड़ा। फर्क केवल इतना आया कि फिल्में सादी से रंगीन हो गईं। राज कपूर का विजुअल सेंस इतना अद्भुत था कि उन्होंने इस बदलाव को सहजता से अपना लिया।

पिता पृथ्वीराज कपूर उन्हें अभिनेता ही बनना चाहते थे?

पृथ्वीराज कपूर सख्‍त विचारों वाले व्यक्ति नहीं थे। उनका मानना था कि उनका बेटा ऐक्टिंग करना चाहता है, तो यह अच्छी बात है। और यदि वह ऐसा नहीं भी करना चाहता, तब भी कोई समस्या नहीं है। वह दौर आज की तरह नहीं था कि अभिनेता सोचे कि उनका बेटा भी अभिनेता ही बने। तब फिलमों में काम करने का मौका मिलना भी बड़ी बात थी। आज की तरह नहीं कि कोई भी निर्देशक किसी नए को तुरंत मौका दे दे क्योंकि वह किसी नामी अभिनेता का बेटा या बेटी है। आज के समय में कई डायरेक्टर ऐसे हैं, जो किसी स्टार के बच्चे को तुरंत साइन कर लेते हैं। स्टार भी चाहते हैं कि उनका बेटा फिल्मों में काम करे, लेकिन आप देख सकते हैं कि कितने स्टार के बच्चे वास्तव में स्टार बन पाए हैं।

राज कपूर की फिल्में चीन और रूस में बहुत प्रसिद्ध हुईं। उन देशों में वे ‘कल्ट’ बन गए। इस प्रसिद्धि के पीछे क्या कारण देखते हैं?

मेरे हिसाब से राज कपूर का चार्ली चैपलिन वाला किरदार कम्युनिस्ट देशों में खास अपील कर गया था। उनकी लोकप्रियता में इस किरदार का बड़ा योगदान था। इजरायल जैसे देशों में भी उन्हें काफी पसंद किया गया। आज के किसी अभिनेता को विदेश में ऐसी प्रसिद्धि नहीं मिली है।

व्यक्ति रूप में वे कैसे थे? आपके जीवन पर उनका कितना प्रभाव है?

मैं उनके बारे में क्या कहूं? मेरे पास शब्द नहीं हैं। मेरे लिए जो कुछ भी हैं, वह राज साहब ही हैं। आज आप मेरा साक्षात्कार भी इसलिए ले रहे हैं क्योंकि मैं उनके साथ जुड़ा रहा। मेरे लिए वे अल्ट‌िमेट कैरेक्टर हैं।

उनके साथ जुड़ी कोई यादगार बात, जिससे आपको कुछ सीखने को मिला हो।

मैंने इस विषय पर किताब (राज कपूर: द मास्टर ऐट वर्क) लिखी है। उसमें सैकड़ों ऐसी बातें हैं, जो सिनेमा के विद्यार्थियों को जरूर पढ़नी चाहिए। उनकी बातें आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं। यह किताब राज कपूर साहब के जीवन और उनके काम को समझने का एक प्रयास है। इसमें मैंने दिखाने की कोशिश की है कि कैसे उन्होंने सिनेमा को जिया और उसे एक अलग ऊंचाई पर पहुंचाया।

आपने किताब में लिखा है कि राज कपूर के साथ काम करने का आपके करियर पर बड़ा असर पड़ा। इस पर थोड़ा विस्तार से बताएं।

जो कुछ भी मैंने निर्देशन के बारे में सीखा वह राज साहब की छत्रछाया में सीखा। उनकी सोच और काम करने का तरीका मेरे लिए एक पाठशाला जैसा था। उनके साथ जो सबक मैंने सीखे, वही मेरे निर्देशन की नींव बना। उन्हीं से सीखी बातों का इस्तेमाल मैंने अपनी फिल्मों जैसे लव स्टोरी, बेताब, अर्जुन और डकैत में किया। राज साहब अद्भुत शिक्षक और मेंटर भी थे। उन्होंने सिखाया कि कैसे इंसानी भावनाओं को समझा जाए और उन्हें पर्दे पर उतारा जाए। उनकी संगीत की समझ, उनकी कहानी कहने की कला और उनकी विजुअल स्टोरीटेलिंग का कोई सानी नहीं था।

उनके बारे में क्या सबसे ज्यादा मिस करते हैं?

मुझे उनकी सबसे ज्यादा याद एक विचारक और एक आला दर्जे के फिल्म निर्माता के रूप में आती है।

राज कपूर साहब अक्सर लता मंगेशकर, शंकर-जयकिशन और मुकेश जैसे कलाकारों के साथ काम करना पसंद करते थे। इसके क्या कारण थे?

जहां तक मेरी समझ है कि वे एक बार जिसके साथ काम करते थे, उसके साथ बार-बार काम करना पसंद करते थे। वे काम में भी व्यक्तिगत रिश्ता बना लेते थे।

क्या बात राज कपूर को फिल्ममेकर के रूप में खास बनाती है?

इंसानी भावनाओं को गहराई से समझना उनकी सबसे बड़ी ताकत थी। वे जानते थे कि दर्शकों को क्या जोड़ता है। उनके लिए सिनेमा सिर्फ कहानी नहीं, बल्कि अनुभव था। उनकी फिल्मों में संगीत, कहानी और विजुअल्स का जो संतुलन होता था, वह अपने आप में बेमिसाल था।

मेरा नाम जोकर को राज कपूर साहब ने बहुत चाव से बनाया था। फिल्म नहीं चली। यहां तक कि वे दिवालिया हो गए। उन्होंने हिम्मत बटोर के बॉबी बनाई।  बॉबी के सेट पर उनकी मनःस्थिति कैसी रहती थी?

यह सच है कि राज साहब को मेरा नाम जोकर फिल्म से बहुत  नुकसान हुआ था। यह फिल्म उनके दिल के बहुत करीब थी। इस कहानी से उनका अलग ही जुड़ाव था। इसे भावनात्मक जुड़ाव कह सकते हैं। इस के वित्तीय नुकसान ने उन्हें परेशान जरूर किया लेकिन वे टूटे नहीं। हालांकि उस नुकसान की भरपाई बहुत मुश्किल थी। लेकिन यह राज कपूर साहब की हिम्मत ही थी, जो बॉबी के सेट पर वे वैसे ही गए जैसे अपनी दूसरी फिल्मों के सेट पर जाते थे। उन्होंने वैसे ही काम किया, जैसी पिछली फिल्मों के लिए किया था। उनकी मेहनत का नतीजा सबके सामने है। यही बात उन्हों दूसरे निर्देसकों, कलाकारों से अलग बनाती थी।

आर.के. स्टूडियो बंद क्यों हुआ?

मैं इस विषय पर कुछ नहीं कहना चाहूंगा।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: Rahul Rawail, Interview
OUTLOOK 23 December, 2024
Advertisement