“अनुच्छेद 370 हटने से भारत की आवाज मजबूत हुई”
जम्मू-कश्मीर को अनुच्छेद 370 और 35ए के जरिए हासिल विशेष दर्जा को गंवाए लगभग साल भर हो गया। हालांकि भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव ने भावना विज-अरोड़ा से बातचीत में कहा कि अनुच्छेद 370 निरस्त होने से सबसे नए केंद्र शासित प्रदेश में “भारत की आवाज मजबूत” हुई है। इससे स्थानीय नेताओं की असलियत भी सामने आ गई है, जो जनता और प्रशासन के बीच पुल बनने का काम करने के बजाय अपनी फेसबुक वॉल और ट्विटर हैंडल में ही छुपे हुए हैं। बकौल उनके, “यही वजह है कि जब उन्हें नजरबंद किया गया तो आंसू बहाने वाले कम ही थे।” प्रमुख अंशः
अनुच्छेद 370 के तहत विशेष दर्जे की समाप्ति के साल भर बाद जम्मू-कश्मीर के हालात का वर्णन कैसे करेंगे?
एक साल पहले, 5 अगस्त 2019 को जब हमारी सरकार ने अनुच्छेद 370 को बेमानी बनाया था तो विपक्ष ने राज्य में खून-खराबा और सड़कों पर हिंसा की आशंका जताई थी। लेकिन पिछले ग्यारह महीनों में ऐसा कुछ नहीं हुआ। आतंकी हिंसा जरूर हुई लेकिन इन घटनाओं के अलग पहलू हैं और उनके अलग तरह से विश्लेषण की जरूरत है। यूटी में प्रशासन के पास विकास पर ध्यान केंद्रित करने के लिए पर्याप्त शांति है।
आपको लगता है, हमने देश के बाकी हिस्सों के साथ जम्मू-कश्मीर को मुख्यधारा में लाने के घोषित लक्ष्य की दिशा में कुछ प्रगति की है?
हमें मुख्यधारा जैसे शब्दों के इस्तेमाल में थोड़ी सतर्कता बरतने की जरूरत है क्योंकि इसका मतलब है कि वहां के लोग भारत के साथ नहीं थे। ऐसी ही धारणा के कारण दिल्ली के प्राइम टाइम टीवी कार्यक्रमों में आम कश्मीरी रोज अपनी देशभक्ति की परीक्षा देते हैं। कश्मीर घाटी में आबादी का एक वर्ग ऐसा है, जो अलगाववादियों के बयानों से प्रभावित है, लेकिन जम्मू के लोग और कश्मीर की आबादी का एक बड़ा हिस्सा दशकों से राष्ट्रीय मुख्यधारा के साथ है। विशेष दर्जे के मामले में घाटी में अनुच्छेद 370 के प्रति लगाव था, लेकिन जम्मू में ऐसा नहीं था। सात दशक तक अनुच्छेद 370 के साथ रहने वाले सामान्य कश्मीरी, जिन्हें इससे कुछ नहीं मिला, अब शायद इसके बिना जीवन का अनुभव करना चाहते हैं। यही वजह है कि वे लोग सड़कों पर नहीं उतरे और उन्होंने पत्थर नहीं फेंके। अनुच्छेद 370 के निरस्त होने से केंद्र शासित प्रदेश में भारत की आवाज मजबूत हुई है।
केंद्र शासित प्रदेश में उद्योगों ने निवेश करने में रुचि दिखाई है? आप निजी निवेश के बारे में आश्वस्त हैं?
पिछले साल अगस्त के फैसले के बाद सर्दियां शुरू हो गई थीं। सर्दियां खत्म होते ही कोविड महामारी आ गई। इन प्राकृतिक चुनौतियों के अलावा, नए केंद्र शासित प्रदेश में नए डोमिसाइल कानून जैसे मुद्दे थे, जिनकी घोषणा होने में कुछ समय लगा। मॉल और मल्टीप्लेक्स में कुछ निवेश पहले ही आ चुके हैं। राज्य में एक इन्वेस्टर मीट की योजना बन रही है, जिससे निवेश का रास्ता खुलेगा।
अनुच्छेद 370 बेमानी होने के बाद राज्य में अलगाववाद के मामले में कोई असर पड़ा है? हाल ही में आतंकवादी हमले में भाजपा के शीर्ष कार्यकर्ता और उनके परिवार के सदस्यों की हत्या को आप कैसे देखते हैं?
अनुच्छेद 370 के बेमानी होने से सीमा पार के आतंकवादी और उनके आका बहुत हताश हैं। वे लगातार राज्य में अधिक से अधिक आतंकवादियों की घुसपैठ कराने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन हमारे सुरक्षा बल सतर्क हैं। वे सीमा पर या उनके ठिकानों पर उन्हें बेअसर कर दे रहे हैं। एक भी सप्ताह ऐसा नहीं गुजरता कि बड़ी संख्या में आतंकवादियों का सफाया न हुआ हो। दूसरी ओर आतंकवादी रैंकों में स्थानीय भर्ती काफी कम हो गई है। हाई-प्रोफाइल वारदात में कामयाबी हासिल न हो पाने की हताशा में आतंकवादियों ने स्थानीय स्तर के राजनीतिक कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया है। कुछ को तो हाल ही में निशाना बनाया गया है। हालांकि, राज्य में सभी आवश्यक सुरक्षा उपाय किए जा रहे हैं। हमने अपने काडर को बताया है कि घबराने की नहीं, सावधान रहने की जरूरत है।
इससे पहले एक कांग्रेस सरपंच अजय पंडिता की हत्या कर दी गई थी और एक अन्य महिला सरपंच का अपहरण कर लिया गया था। क्या आपको लगता है कि इसका मकसद कश्मीरी पंडितों को घाटी से दूर रखना है?
उन्हें घाटी में हमेशा ही भारत के साथ खड़े होने या राष्ट्रीय झंडे को उठाने की चुनौतियां झेलनी पड़ी हैं। पंडितों ने इसकी भारी कीमत चुकाई है। भाजपा नेता वसीम बारी के परिवार जैसे कई स्थानीय कश्मीरियों ने भी अपनी जान की बाजी लगा दी। बड़ी संख्या में पंडितों को घाटी छोड़नी पड़ी थी। घाटी उनका घर है और यहां लौटने का उन्हें अधिकार है। आतंकवादी उस अधिकार को नकारने के लिए हर तरकीब अपनाएंगे, लेकिन हम भी उन्हें सम्मान, सुरक्षा के साथ वापस लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसी तरह, हम उन सभी कश्मीरियों की सुरक्षा आश्वस्त करेंगे जो भारत के लिए खड़े हैं। घाटी में हम हर दिन आतंकवादियों को बेअसर कर रहे हैं। अब घाटी में किसी आतंकवादी का जीवन कुछ ही महीनों का है।
घाटी की अपनी हालिया यात्रा के दौरान, आपने कहा कि नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी जिम्मेदारी से काम नहीं कर रहे हैं। आपकी राय में इस समय उनकी क्या भूमिका है?
केंद्र शासित प्रदेश में जब राज्यपाल का शासन होता है, तो लोगों को नेताओं की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, क्योंकि केवल वे ही लोगों और प्रशासन के बीच पुल का काम कर सकते हैं। सभी राजनीतिक दलों के लगभग सभी नेता नजरबंदी से बाहर हैं, लेकिन वे लोगों की मदद के लिए आगे नहीं आ रहे हैं। लोगों को सरकारी कार्यक्रमों का लाभ दिलाने के लिए वे वहां नहीं हैं। आतंकवादी राजनैतिक कार्यकर्ताओं को मार रहे हैं, वे वहां भी गायब हैं। राज्य ने पिछले दो वर्षों में पंचायत स्तर के कई चुनाव देखे हैं। स्थानीय दलों ने उनका बहिष्कार किया और भाग गए। क्यों? ये लोग आम लोगों को पूरी तरह अस्वीकार्य हैं। ये लोग अपनी फेसबुक वॉल और ट्विटर हैंडल के पीछे छुपे हुए हैं। जनता भी यह बात समझ रही है। यही वजह है कि जब ये लोग नजरबंद हुए तो किसी ने आंसू नहीं बहाए।
चुनावों के संदर्भ में स्थिति कब सामान्य होगी? परिसीमन कब तक हो पाएगा?
छिटपुट पाकिस्तानी शह से आतंकी वारदातों को छोड़कर केंद्र शासित प्रदेश में शांति है। जहां तक केंद्र शासित प्रदेश में विधायिका की सामान्य स्थिति बहाली की बात है, तो मुझे यकीन है कि यह प्राथमिकता पर होगा। नए यूटी अधिनियम के तहत, परिसीमन का काम केंद्र शासित विधानमंडल के चुनावों में जाने से पहले पूरा होगा। न्यायमूर्ति रंजना देसाई की अध्यक्षता में केंद्र सरकार ने इसके लिए एक आयोग नियुक्त किया है। कोविड की वजह से प्रक्रिया में देरी हुई है। एक बार शुरू होने के बाद, मुझे लगता है यह कुछ महीनों में पूरी हो जाएगी। उम्मीद है, प्रक्रिया जल्द पूरी होगी और चुनाव होंगे।
क्या यह सच है कि अधिकांश नेताओं को एक बॉन्ड भरने की शर्त पर रिहा किया गया है कि वे अनुच्छेद 370 पर नहीं बोलेंगे? क्या यही वजह है कि पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती अब भी नजरबंद हैं?
जहां तक मैं जानता हूं, यह कोरी बकवास है। वास्तव में इससे हिरासत में लिए गए नेताओं की साख पर सवाल खड़े होते हैं। तमाम राजनीतिक मतभेदों के बावजूद मैं इन दलों के कई नेताओं की निष्ठा असंदिग्ध मानता हूं और इसलिए इस आरोप को खारिज करता हूं।
क्या जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा फिर बहाल करने की कोई संभावना है?
केंद्रीय गृह मंत्री की घोषणा के अनुसार, यह केंद्र शासित प्रदेश के लिए आगे का रास्ता होगा। उचित समय पर आवश्यक कदम उठाए जाएंगे।
जम्मू-कश्मीर में कुछ हलकों में जनसंख्यागत परिवर्तन की आशंका व्यक्त की जा रही है। यहां तक कि अल्ताफ बुखारी की ‘अपनी पार्टी’ भी डोमिसाइल कानून पर चिंता व्यक्त कर चुकी है। ऐसी चिंताएं जायज हैं?
ये सभी बातें भ्रामक हैं। नए डोमिसाइल कानून के तहत, राज्य सरकारों द्वारा क्रमिक रूप से की गई ऐतिहासिक गलती को सुधारा गया है और दशकों से घाटी में रहने वाले वास्तविक भारतीय नागरिकों को डोमिसाइल दर्जा दिया गया है।
जम्मू में एक बड़े तबके को लगता है कि अनुच्छेद 370 को बेमानी करने के बाद भी उन्हें कुछ हासिल नहीं हुआ। जाहिर तौर पर जम्मू के लोग स्थिति से खुश नहीं हैं। जम्मू को अलग राज्य बनाने की कोई योजना?
जम्मू के लोगों की लंबे समय से मांग रही है कि अनुच्छेद 370 निरस्त हो। वे इसे हासिल कर खुश हैं। जम्मू को पिछले कुछ वर्षों में विकास की कई परियोजनाएं मिलीं। लेकिन यह भी सच है कि घाटी में जो कुछ होता है उसकी कीमत जम्मू के लोग चुकाते रहते हैं। दशकों से, प्रशासन को केवल घाटी के नजरिए से राज्य को देखने की आदत थी। यूटी एक ही इकाई है, इसलिए प्रशासन को ऐसा करने के नायाब तरीके विकसित करने होंगे।
कई विशेषज्ञ एलएसी पर चीन के आक्रामक तेवर को अनुच्छेद 370 के बेमानी होने और लद्दाख को अलग केंद्रशासित राज्य बनाने से जोड़ते हैं। आप इस बारे में क्या सोचते हैं?
एलएसी पर चीन की कार्रवाई की कई तरह की व्याख्याएं हैं। हम सभी विशेषज्ञों और उनकी राय का सम्मान करते हैं। लेकिन चीन ने अतीत में भी कई बार ऐसा ही किया है, विशेष रूप से 2013 में। उस समय यूटी का कोई प्रश्न नहीं था।
हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के अपने धड़े से सैयद अली गिलानी के इस्तीफे के बारे में सबसे पहले आपने ट्वीट किया। यह कितना बड़ा घटनाक्रम है?
गिलानी का इस्तीफा आंतरिक टकराव और पाकिस्तान की बदली प्राथमिकताओं का नतीजा था। वे घाटी के हजारों युवाओं को आतंकवाद के रास्ते पर ले गए। उन्होंने हजारों निर्दोष कश्मीरियों के हजारों परिवारों को नष्ट कर दिया। हुर्रियत के कट्टरपंथी नेता के रूप में वे पाकिस्तान की सरपरस्ती का आनंद उठाते रहे। उनका इस्तीफा आज क्या उन सभी भयावह अपराधों को कम कर सकता है, जो उन्होंने इन दशकों में किए और जिसकी वजह से कश्मीरी लोग पीड़ित हुए?
क्या हुर्रियत अब भी प्रासंगिक है?
बहुत पहले हुर्रियत अपनी प्रासंगिकता खो चुका है। यह समय है कि कश्मीर के लोग उन्हें छोड़ कर आगे बढ़ जाएं।