इंटरव्यू - संजय मिश्रा: ‘मेरे खून के हर कतरे में अभिनय है’
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से अभिनय के गुर सीखने वाले अभिनेता संजय मिश्रा हिंदी सिनेमा के उन चुनिंदा कलाकारों में शामिल हैं जिन्होंने अपने आप को कभी एक छवि में बंधने नहीं दिया। इसके अलावा उन्होंने जितनी लोकप्रियता टेलीविजन से हासिल की, उतनी ही कामयाबी उन्हें सिनेमा के परदे पर भी मिली है। बीते कुछ वर्षों में संजय मिश्रा ने ऐसा काम किया है कि उनकी प्रतिभा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचानी जा रही है। जहां एक तरफ संजय मिश्रा को उनकी फिल्म वध के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है, वहीं दूसरी ओर उनकी शॉर्ट फिल्म गिद्ध- द स्केवेंजर को ऑस्कर की शॉर्ट फिल्म श्रेणी में जगह मिल गई है। संजय मिश्रा से उनके जीवन, अभिनय सफर के बारे में आउटलुक से मनीष पाण्डेय ने बातचीत की। मुख्य अंश :
जिस सपने के साथ अभिनय सफर शुरू किया, वह सपना कितना पूरा हुआ?
मेरा हमेशा से यही सपना रहा कि मैं सिनेमा की दुनिया से जुड़ा रहूं। चाहे फिर वह कोई भी क्षेत्र हो। मेरे लिए महत्वपूर्ण यह था कि मैं सिनेमा के जादू को हर दिन जीता रहूं। मैंने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से अभिनय की ट्रेनिंग ली। यदि ऐसा नहीं भी हुआ होता तो शायद मैं कैमरामैन होता या कोई अन्य तकनीशियन। अभिनय की दुनिया में मैंने लंबा सफर तय किया है। मुझे ऑफिस ऑफिस धारावाहिक से पहचान मिली। फिर कुछ कॉमेडी किरदारों को लोगों ने बहुत प्यार दिया। पिछले कुछ वर्षों में आंखों देखी, मसान, कड़वी हवा, वध जैसी फिल्मों ने मुझे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्यार और सम्मान दिलाया है। आज लोग मुझसे मिलते हैं, तो अपार प्रेम लुटाते हैं। वह बताते हैं कि मेरी फिल्मों ने उनके जीवन पर गहरा प्रभाव छोड़ा है। किसी कलाकार के लिए इससे बड़ी उपलब्धि या पुरस्कार नहीं हो सकता। मैं अपनी अभिनय यात्रा से पूरी तरह से संतुष्ट हूं। मैंने जो कुछ सोचा नहीं, चाहा नहीं था, उससे कहीं अधिक ईश्वर ने मुझे दिया है। इसके लिए मैं हृदय से अपने माता-पिता, ईश्वर, गुरुजनों और दर्शकों का आभारी हूं।
आपने जब शुरुआत की थी, तब सिनेमा में स्टार सिस्टम चरम पर था। साधारण शक्ल-सूरत, कद-काठी के कलाकार के लिए काम पाना बड़ा कठिन था। अपनी यात्रा को याद करते हुए बताएं यह सफर कितना चुनौतीपूर्ण रहा?
जब मैंने शुरुआत की थी, तब सिनेमा की परिभाषा कुछ और होती थी। तब सिनेमा मुख्य रूप से मनोरंजन का माध्यम हुआ करता था। ऐसे में मुझ जैसे कलाकार के लिए सबसे पहली चुनौती तो यह थी कि किसी तरह निर्देशक की नजर में आ सकूं। मैं अपने आप को सौभाग्यशाली मानता हूं कि मैं जिस दौर में अभिनय करने आया, तब तक टेलीविजन लोकप्रिय होने लगा था। मैं जब अपने से पहले के कलाकारों के बारे में सोचता हूं तो मन घबरा जाता है। उनके पास अपनी प्रतिभा को सही जगह तक पहुंचाने के कितने सीमित अवसर थे। मैंने स्वयं ऐसे कई कलाकारों को देखा है जो बेहद प्रतिभावान थे लेकिन उन पर किसी भी निर्देशक, निर्माता की नजर नहीं पड़ी। मेरे साथ यह अच्छा रहा कि ऑफिस ऑफिस धारावाहिक में मेरे किरदार ने मुझे भारतीय जनता के बीच लोकप्रिय बना दिया। शुक्ला के किरदार को देखकर सभी को यह महसूस हुआ कि मेरे अंदर प्रतिभा है और मैं अभिनय कर सकता हूं।
यहां मैं एक बात कहना चाहता हूं। मेरी फिल्म आंखों देखी को दर्शकों ने बहुत प्यार दिया। लोग अक्सर मुझे इसी से फिल्म से पहचानते हैं या मिलने पर इसी फिल्म का हवाला देते हैं। मगर जिस दौर में मैंने कदम रखा, उस समय इस तरह की फिल्म की कल्पना नहीं की जा सकती थी। उस दौर में इक्का-दुक्का ऐसी फिल्में बनती भी थीं, लेकिन उन्हें सही मंच और दर्शक नहीं मिल पाते थे। यहां मैं ईश्वर को और अपनी जिजीविषा को श्रेय देना चाहूंगा कि मैं निरंतर आगे बढ़ता रहा। यदि मैं भी एक जैसी भूमिकाओं को कर के ऊब जाता तो शायद कभी मसान, कड़वी हवा, आंखों देखी, वध जैसी फिल्मों में काम नहीं कर पाता। मैं आज की युवा पीढ़ी को यह संदेश देना चाहता हूं कि वर्तमान की परिस्थितियों से विचलित न हों। धैर्य रखें। यदि आप धैर्य रखते हैं तो आपको मनवांछित फल जरूर मिलता है।
अभिनय की दुनिया से सबसे बड़ा हासिल क्या रहा?
अभिनय की दुनिया को चकाचौंध की दुनिया की तरह देखा जाता है। अक्सर लोग यहां नाम, शोहरत, पैसा हासिल करने आते हैं, मगर अभिनय की दुनिया भौतिकता के परे भी है। एक अभिनेता के रूप में आप जितनी जिंदगियां जीते हैं, वह अविस्मरणीय अनुभव होता है। आप दुनिया के किसी भी अन्य क्षेत्र में इतनी विविधता के साथ काम नहीं कर सकते हैं। अभिनय करते हुए मैंने जिंदगी के सारे रंग महसूस किए हैं। उदाहरण के लिए, एक जीवित आदमी कभी अपने जीवन में चिता पर नहीं लेटता है, मगर एक मृत व्यक्ति का किरदार निभाने वाला अभिनेता जीवित होते हुए भी मृत्यु के पश्चात होने वाली सभी गतिविधियों का साक्षी बनता है। यह अद्भुत और रोमांचक अनुभव है। यह ऐसा अनुभव है, जिसे आप पैसे से, ताकत से, लोकप्रियता से नहीं हासिल कर सकते हैं। यही मेरे लिए अभिनय जगत का हासिल रहा है।
आज हम जिस दौर में हैं, वहां लोगों का मन बहुत जल्दी किसी भी चीज से ऊब जाता है। इतने लंबे अभिनय सफर के बाद सिनेमा और इससे जुड़ी उपलब्धियां आपको किस तरह रोमांचित करती हैं?
यह इस पीढ़ी का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि इसे सब कुछ बहुत जल्दी और आसानी से हासिल हुआ है। यही इसके लिए अभिशाप बन गया है। एक जमाना था कि जब अपनी प्रतिभा को मंच देने में जीवन बीत जाता था। लोग एक अवसर के लिए तरसते रहते थे। इसलिए जब उन्हें मौका मिलता था, तो वह आजीवन कृतज्ञ रहते थे। आज सभी के हाथ में फोन है। सोशल मीडिया सबसे बड़ा मंच बनकर उभरा है। आज रातोरात लोग वायरल हो जाते हैं और पलक झपकते ही गुमनाम भी। यह प्रक्रिया इतनी तेज हो गई है कि इंसान को कुछ सोचने, समझने, महसूस करने का समय नहीं मिल पाता। पहले किसी चहेते कलाकार की एक झलक पाना हर दर्शक के लिए सपना हुआ करता था। लोगों के सपनों में उनके पसंदीदा अभिनेता, अभिनेत्री आते थे। आज आप सोशल मीडिया पर अपने पसंदीदा कलाकारों से जुड़े हुए हैं। आप उन्हें मीडिया इवेंट्स, प्रमोशनल शोज में देखते, सुनते हैं। इसी से जीवन का रोमांच और जादू खत्म हो गया है। यदि आप चाहते हैं कि जीवन में रस बना रहे तो तुरंत सब कुछ जान लेने, पा लेने की लालसा छोड़ दीजिए। धीमे-धीमे जब आप पर रहस्य खुलता है तो आनंद बरकरार रहता है। मैं अपनी बेटियों से अक्सर कहता हूं कि अपने जीवन से टाइमपास और बोरिंग शब्द निकाल दो। यह जीवन, यह प्रकृति इतनी अद्भुत है, सुंदर है कि आप बोर नहीं हो सकते। यदि आप बोर हो रहे हैं, तो आपके दृष्टिकोण में दोष है। मैं आज भी जब अभिनय करता हूं तो जी जान झोंक देता हूं। मेरे खून के हर कतरे में अभिनय है। मैं जब भी शूटिंग पर पहुंचता हूं तो लगता है कि यह मेरा पहला दिन है। मेरी फिल्मों को जिस तरह का प्यार मिल रहा है, मुझे जो सम्मान मिल रहा है, उसके लिए मेरा रोम रोम शुक्रगुजार है। अनुग्रहित होने के इस भाव से ही आज तक मुझे अभिनय, सिनेमा रोमांचित करता है।
ओटीटी प्लेटफॉर्म आने के बाद कलाकारों के लिए अवसर बढ़े हैं। सभी लोग ओटीटी प्लेटफॉर्म के सकारात्मक पक्ष की आज चर्चा करते हैं। आप ओटीटी प्लेटफॉर्म से जुड़े अपने अनुभव साझा कीजिए और बताइए कि आज अभिनेताओं के सामने क्या चुनौतियां हैं?
ओटीटी प्लेटफॉर्म एक क्रांति की तरह है। जिस दौर में मैं आया, उस समय यदि टेलीविजन नहीं होता तो मुझे अपनी प्रतिभा साबित करने में कई साल और लग जाते। टेलीविजन ने मुझे भारत के घर-घर में पहुंचा दिया। यही काम आज के कलाकारों के लिए ओटीटी प्लेटफॉर्म कर रहे हैं। किसी कलाकार ने यदि ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अपना प्रभाव छोड़ दिया तो तुरंत उसका जिक्र सिनेमा जगत के गलियारों में होने लगता है। निर्माता, निर्देशक उसे लेकर फिल्में प्लान करने लगते हैं। ऐसे कलाकार जो समय की धूल में फीके पड़ गए थे, उन्हें फिर से चमकाने में अहम भूमिका निभाई है ओटीटी प्लेटफॉर्म ने। इन कलाकारों का एक तरह से पुनर्जन्म हुआ है ओटीटी प्लेटफॉर्म के कारण। चूंकि ओटीटी प्लेटफॉर्म भी बाजार के अधीन है इसलिए आज ओटीटी प्लेटफॉर्म पर बहुत कुछ ऐसा बन रहा है जिसमें दोहराव है। इससे बचा जाना चाहिए। जहां तक बात चुनौतियों की है, तो आज सबसे बड़ी चुनौती है प्रासंगिक बने रहना। आज इतने अभिनेता हो गए हैं कि यदि आप कुछ विशेष नहीं करते तो आप खो जाएंगे, आपको कोई नहीं पूछेगा। आज जबरदस्त प्रतिस्पर्धा का दौर है। एक किरदार के लिए चालीस अभिनेता प्रयास करते हैं। यदि आप कुछ अलग करने की क्षमता रखते हैं तो ही आपको काम मिलेगा और जनता प्यार देगी।
आज बॉलीवुड में स्टार कल्चर कम हुआ है। पहले सारा सिनेमा स्टार के इर्द-गिर्द बुना जाता था। आज छोटे शहरों और सामान्य वर्ग से आए कलाकार बॉलीवुड पर राज कर रहे हैं। आप स्वयं जिस पृष्ठभूमि से आए हैं और जिस तरह का अभिनय करते हैं, उसे आज अच्छा स्पेस मिल रहा है। इस बदलाव के पीछे क्या मुख्य कारण देखते हैं?
बदलाव के पीछे मुख्य कारण है समय। समय खुद बदलाव लाता है। एक दौर था, जब दर्शकों से लेकर निर्माता, निर्देशकों की अपनी समझ और प्राथमिकताएं होती थीं। उन्हीं के अनुसार सिनेमा बनता था। पहले सिनेमा बड़े शहरों तक सीमित था। संसाधन भी बड़े शहरों में थे। जैसे-जैसे छोटे शहरों से, सामान्य वर्ग से लोग मुंबई पहुंचे, बदलाव की बयार बहने लगी। जब बॉलीवुड में छोटे शहरों का प्रतिनिधित्व बढ़ा तो फिर कहानियों में विविधता नजर आने लगी। इस विविधता ने ही संभावनाओं के द्वार खोले। आज दर्शक भी परिपक्व हुआ है। डिमांड सप्लाई पर ही बाजार चलता है। दर्शक आज दुनिया भर का सिनेमा देखता है। यदि उसे कुछ अच्छा और अलग नहीं परोसा जाता तो वह वह कंटेंट को नकारने में जरा सी देरी नहीं करता। यही कारण है कि फिल्म निर्माताओं ने प्रयोग को बढ़ावा दिया है। नए विषयों पर फिल्म बन रही है। हर तरह के कलाकारों को काम मिल रहा है। मुझ जैसे कलाकारों को, जिन्हें कल तक सहायक भूमिका मिलती थी, उन्हें फिल्म का मुख्य किरदार मिल रहा है। यह सारा बदलाव दर्शकों के कारण ही आया है। यदि आज वह हमें नकार दें तो हमें काम मिलना बंद हो जाएगा। जब तक हम दर्शकों को पसंद आ रहे हैं, तभी तक हम प्रासंगिक हैं। यह बात हर कलाकार को समझनी चाहिए और मेहनत, समर्पण में कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए।
हमने गुजरे जमाने के कलाकारों की संघर्ष गाथा सुनी है। आज कलाकारों में धैर्य की कमी देखी जा रही है। वे जल्दी डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं। इस बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?
जब तक आप यह नहीं समझेंगे कि सब कुछ अस्थाई है, आप दुखी रहेंगे। जीवन का सत्य यही है कि सब कुछ बदल जाना है। न परिस्थितियां एक जैसी रहती हैं और न संबंध। आज के कलाकार सोशल मीडिया पर वायरल होते हैं और सोचते हैं कि वे बड़े अभिनेता बन सकते हैं जबकि किसी इंसान का वायरल होना और अभिनय में योग्य होना अलग अलग बात है। ये जो टू-मिनट सक्सेस की चाहत है, वही डिप्रेशन का कारण है। दिलीप कुमार से लेकर लता मंगेशकर यह जानते थे कि एक दिन में चमत्कार नहीं होते हैं। यही कारण हैं कि उन्होंने तमाम उतार चढ़ाव अच्छे से स्वीकार किए। आज की पीढ़ी ये भूल जाती है कि दिन के बाद रात आती है। जो यह नहीं भूलेगा, वह कभी नहीं विचलित होगा।