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18 April 2015

जिसे हनुमान जी बुलाते हैं वही आते हैं

प्रियंका राय

 

खान साहब, सबसे पहले आपका बनारस में फिर से स्वागत।

शुक्रिया आपका। मेरा स्वागत मेरे श्रोताओं ने किया। मैं आप सभी का तहे-दिल से आभारी हूं।

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संकटमोचन संगीत समारोह में प्रस्तुति देना कैसा लगा?

सब जानते है, संकटमोचन संगीत समारोह में हिस्सा लेना किसी भी संगीतकार के लिए कितना अहम है। यहां गाए बिना सब अधूरा है। जब तक हनुमान जी का बुलावा आता नहीं, तब तक कोई हिस्सा ले नहीं सकता। मुझ पर करम हुआ तभी मैं आ सका हूं। संकटमोचन में गाना रूहानी एहसास है। आप अपने खुदा से जुडक़र गाते हैं। संकटमोचन में बुलावे के लिए मैं महंत पं. विशंभरनाथ मिश्र का शुक्रगुजार हूं।

बनारस आप तीसरी दफा आए हैं। कैसा लगता है इस शहर में आकर?

यह शहर और यहां के लोग मुझे बहुत प्यार करते हैं। मैं सभी का शुक्रगुजार हूं। शायद यह इन लोगों का प्यार ही है कि मैं यहां यूं चला आता हूं। इस बार समारोह के बुलावे से ज्यादा खुशी हो रही है, क्योंकि यह एक मुकम्मिल मंच है, जहां मुझे मौका मिला है। खुशी है कि बड़े-बड़े दिग्गज यहां आए हैं और आते रहेंगे। उन सबसे मिलने और सुनने का यहां अवसर मिलता है।

भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में जो उठा-पटक चलती रहती है, उसमें संगीत की क्या जगह है?

संगीत मुहद्ब्रबत की आवाज है। मैं खुशनसीब हूं कि मुझ पर यह मुहब्बत की आवाज इनायत हुई है। जहां तक दो वतनों के बीच के संबंधों की बात है, वह तो सियासी मसला है। हम सियासतदार लोग नहीं है और न हमने कोई ऐसी कोशिश भी की है। हमारी मुहब्बत हिंदुस्तान के लोगों को संगीत के जरिये मिलती रहे और उनका प्यार हमें मिलता रहे, उससे बड़ी खुशनसीबी क्या होगी? संगीत के जरिये ही हम मुहब्बत को बढ़ा सकते हैं और बढ़ा भी रहे हैं। जहां तक सियासी मसलों की बात है, वह सियासत ही जाने।

कई धर्मों से जुड़ी दक्षिणपंथी ताकतें सक्रिय हो रही हैं। पत्रकार, लेखक, कलाकार मार दिए जा रहे हैं। लोगों पर हमले हो रहे हैं। ऐसे समय में गजल की पहुंच कहां तक है?

गजल न तो किसी के साथ होती है, न ही किसी के खिलाफ। वह या तो इश्क की साख होती है या सूफी कलाम होती है। यहां यह भी साफ कर देना जरूरी है कि न इश्क किसी के खिलाफ है न सूफीयत। मैं फिर से वही बात दुहराऊंगा कि हम मुहद्ब्रबत की जुबान में बात करते हैं। दहशतगर्दी से दूर-दूर तक नाता नहीं है। जहां तक मजहब की बात है, किसी भी मजहब का मकसद यह नहीं होता कि उसके बाशिंदे कत्ल करें या दूसरे मजहब से बैर पाल लें। हमने भी मंदिर और मस्जिद दोनों जगहों पर गाया है। ऐसे वक्त में गजल गायकी अपनी पहुंच से बाहर जाकर मजहबी सुकून पैदा करती है।

किस भारतीय गायकों का काम आपको अच्छा लगता है?

मेरे जेहन में दो ही नाम आते हैं, जगजीत सिंह और लता मंगेशकर। खुदा ऐसा वन पीस ही बनाता है। कोई दूसरा इनकी जगह लेने वाला नहीं होता।

आपको जगजीत सिंह की कमी खलती है?

जगजीत सिंह का जाना मौजूदा वक्त बड़ा नुकसान है। जाहिरा तौर पर भारतीय संगीत का एक बड़ा हिस्सा खाली हो गया। जगजीत सिंह मेरे अजीज थे, मेरे लिए भी उनका जाना एक बड़े धक्के की तरह है। उनकी कमी पूरा करने वाला कोई शख्स मौजूदा वक्त में दिखाई नहीं पड़ता।

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TAGS: गुलाम अली खां, संकटमोटन मंदिर, वाराणासी, पाकिस्तानी गजल गायक
OUTLOOK 18 April, 2015
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