सरकार उनकी है , जो चाहे कर लें : संगीत सोम
आपकी निर्भय यात्रा बड़े दावे के साथ शुरू हुई और फिर बिना किसी परिणाम के रद्द भी हो गई ?
हमारी यात्रा में हज़ारों लोग पूरे उत्साह के साथ जुड़े थे । हम लोग सरधना से निकल कर लगभग ढाई किलोमीटर आगे भी बढ़ गए थे, इसके बाद हमको रोक दिया गया। प्रशासन ने हमसे अनुरोध किया कि क़ानून व्यवस्था के मद्देनज़र हम लोग कैराना नहीं जाएं । इस पर हमने प्रशासन को 15 दिन का समय दिया है और कहा है कि इस बीच वे क्षेत्र में क़ानून व्यवस्था की स्थिति सुदृढ़ कर लें ।
हुकुम सिंह के दबाव में तो यात्रा रद्द नहीं हुई ?
हुकुम सिंह जी पार्टी के बड़े नेता हैं और उनकी सलाह मेरे लिए क़ीमती है मगर इस मुद्दे पर मेरी उनसे कोई बातचीत नहीं हुई । हां, अख़बारों से उनकी इच्छा का पता ज़रूर चल गया था।
तो पांव वापस खींचने की वजह क्या रही ?
हमने पांव वापस नहीं खींचे हैं मगर हम ऐसा कोई काम भी नहीं करना चाहते जिससे हम पर कोई आरोप लगे। मेरी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मौर्या जी से आज सुबह फ़ोन पर बात हुई थी। उनकी भी यही राय थी कि हम क़ानून व्यवस्था को अपने हाथ में नहीं लें। इसीलिए प्रशासन को समय दिया गया।
शिवपाल सिंह यादव ने एक प्रेस कांफ़्रेंस में आप पर गंभीर आरोप लगाए है, आप क्या कहेंगे ?
सपा की प्रदेश में पिछले साढ़े चार साल से सरकार है। इस बीच उन्होंने सौ से अधिक मेरी जांच कराई मगर उनके हाथ कुछ नहीं लगा। आगे भी उन्हें कुछ नहीं मिलेगा। मैं ग़रीब परिवार से आया हूं और मेहनत-मशक़्क़त से यहां तक पहुंचा हूं। यदि किसी आरोप में दम है तो वे सत्ता में हैं और उनके हाथ भी बंधे नहीं हैं। जो चाहे कर लें, इंतज़ार किस बात का कर रहे हैं ?
आप जिन भी मुद्दों को उठाते हैं उनमें राजनीति की ही महक आतीं है । ऐसा क्यों?
मैं ग़लत बात का विरोध करता हूं बस। अब इसे कोई राजनीति कहता है तो कहे। अब सिवालख़ास क़स्बे में हिंदुओं की हत्या के मामले सामने आए हैं। मैं इसकी चर्चा करूंगा तो इसे राजनीति कहा जाएगा ।
चुनाव की बेला में एसे मुद्दे प्रमुखता से क्यों उठाए जाते हैं ?
ऐसा नहीं है। अपने पूरे राजनीतिक जीवन में मैं उत्पीड़न के ख़िलाफ़ हमेशा बोलता रहा हूं।
पहले बिसेहड़ा फिर मथुरा और अब क़ैराना। मुख़ालफ़त के लिए आप ही क्यों?
आपने मथुरा का ज़िक्र किया । मैं इसकी सीबीआई जांच की मांग कर रहा हूँ तो इसमें ग़लत क्या है। सरकार की शह पर अरबों रुपये की ज़मीन पर पहले क़ब्ज़ा हुआ और जब क़ब्ज़ा ख़ाली कराने पुलिस गई तो एसपी और थानेदार की हत्या कर दी गई । क्या एसे मुद्दों का विरोध ग़लत है?
आपको नहीं लगता कि अधिकांश मामला क़ानून व्यवस्था का होता है और उसे सांम्प्रदायिक रूप देने की ज़रूरत नहीं होती ?
देखिए अपराधी की कोई जाति नहीं होती। हत्या हत्या ही होती है और उसे देखने का नज़रिया धर्म के आधार पर नहीं होना चाहिए। मगर प्रदेश की सपा सरकार ऐसा नहीं करती और मरने वाले और मारने वाले का धर्म पहले देखती है। हमारा विरोध इसी को लेकर रहता है ।