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24 February 2021

इंटरव्यू | विनोद के जोस: “रिहाना या ग्रेटा का किसानों का समर्थन करना गलत नहीं”

 “गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में लाल किले की घटना के बाद जो 257 टि्वटर हैंडल सस्पेंड किए गए थे, उनमें ‘द कारवां’ पत्रिका का टि्वटर हैंडल भी शामिल था। ज्योतिका सूद के साथ बातचीत में पत्रिका के कार्यकारी संपादक विनोद के. जोस ने बताया कि सोशल मीडिया, पत्रकार और सरकार कैसे काम कर रही है। मुख्य अंश:”

मौजूदा समय की तुलना इमरजेंसी से की जा रही है। क्या यह आपको ठीक लगता है?

घोषित तौर पर तो इमरजेंसी नहीं है, लेकिन जिस तरह पत्रकारों को निशाना बनाया जा रहा है, उससे यह धारणा बनने लगी है कि भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता की जगह कम होती जा रही है। प्रेस की आजादी में भारत आज 142वें स्थान पर है जबकि एक दशक पहले भारत की रैंकिंग दहाई अंकों में हुआ करती थी।

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सरकार ने जातिसंहार (जेनोसाइड) हैशटैग का इस्तेमाल 257 ट्विटर हैंडल को रोकने के लिए किया। क्या पत्रिका या इसके हैंडल से जुड़े लोगों ने इस शब्द का इस्तेमाल किया?

हमने इस शब्द का इस्तेमाल नहीं किया। लेकिन अगर कोई पत्रकार तथ्यों के आधार पर बात कहता है तो उसे चुप क्यों रहना चाहिए। जब ऐसे लोगों को अधिकार मिल जाएंगे जो कानून-व्यवस्था और प्रेस की आजादी में विश्वास नहीं रखते तो तनाव बढ़ना तय है। तो क्या इसका मतलब यह है कि पत्रकार को अपना काम छोड़ देना चाहिए? सरकार को जो बातें पसंद हैं सिर्फ वही बातें प्रकाशित की जाएं?

क्या खुलकर असंतोष व्यक्त करना, सच बताने के आपके उद्देश्य को नुकसान नहीं पहुंचाएगा?

अगर आप यह पूछना चाहते हैं कि पत्रकारिता के नजरिए से कारवां ने किसान नवनीत सिंह की मौत की खबर प्रकाशित करके कोई गलत काम किया, तो मेरा जवाब होगा ‘नहीं’। हमारे पत्रकारों ने प्रत्यक्षदर्शियों से बात की, पुलिस वालों के जवाब लिए, किसान के परिवार से बात की, उस अस्पताल में गए जहां उसकी ऑटोप्सी हुई थी, पोस्टमार्टम की रिपोर्ट स्वतंत्र पैथोलॉजिस्ट को दिखाई और उसके बाद फिर पुलिस से सवाल किए। अगर इसमें ऐसे सवाल उठते हैं जिनका जवाब सरकार को देना चाहिए, तो इसमें गुस्से या असंतोष की बात कहां से आती है?

रिहाना, ग्रेटा थनबर्ग और अन्य ग्लोबल सेलिब्रिटी की प्रतिक्रिया को आप कैसे देखते हैं?

पत्रकार होने के नाते मैं हर खुली बातचीत का स्वागत करता हूं। अगर रिहाना या ग्रेटा किसानों के पक्ष में कुछ कहती हैं तो इसमें गलत क्या है। क्या हमने जॉर्ज फ्लॉयड और ब्लैक लाइव्स मैटर के बारे में बात नहीं की? समस्या तब शुरू हुई जब सरकार ने इसका जवाब कुछ इस तरह दिया जैसे वह किसी राजनीतिक दल की प्रेस कॉन्फ्रेंस का जवाब दे रही हो। रिहाना और ग्रेटा सरकार के प्रतिनिधि नहीं हैं। इसलिए उनके ट्वीट के जवाब में जब विदेश मंत्रालय ने प्रेस विज्ञप्ति जारी की तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारी छवि औसत दर्जे की हो गई। बाद में भारतीय फिल्म स्टार और क्रिकेट खिलाड़ियों ने भी उन्हीं शब्दों और हैशटैग के साथ प्रतिक्रिया दी। हम बार-बार लोकतंत्र की बात कहते हैं लेकिन कुछ ग्लोबल सेलिब्रिटी के ट्वीट को सहन नहीं कर सकते।

 

 

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TAGS: विनोद के. जोस, कार्यकारी संपादक द कारवां, असहमति, सोशल मीडिया और सरकार, ग्रेटा थनबर्ग, टूलकिट मामला, निकिता जैकब, शांतनु मुलुक, बॉम्बे हाइकोर्ट, ग्रेटा, दिशा, रिहाना, Disagreements, Social Media and Government, Greta Thunberg, Toolkit Case, Nikita Jacob, Shantanu Mul
OUTLOOK 24 February, 2021
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