नगालैंड में न्याय खुद किया जाता है- उर्मिला चनम
क्या लोगों का यह गुस्सा बांग्लादेशी के खिलाफ था या बलात्कारी के खिलाफ ?
बलात्कारी के खिलाफ था। नॉर्थ ईस्ट की संस्कृति में महिला से बलात्कार बर्दाश्त ही नहीं है। जीरो टॉलरेंस हैं। देश का यह ऐसा हिस्सा है जहां तादाद में लड़कियां लड़कों के बराबर हैं, दहेज प्रथा और बाल विवाह नहीं है। महिलाएं घर की मुखिया होती हैं, आर्थिक विकास दर महिलाओं के कारोबार पर निर्भर है। हम नहीं मान सकते कि महिलाएं शाम को सात बजे घर लौट जाएं और बलात्कार के लिए महिलाएं ही दोषी हैं।
यानि यह बांग्लादेशी वाला मामला नहीं है ?
नहीं। बांग्लादेशी वाला मामला बताकर इसे मुद्दे से नहीं भटकाना चाहिए। हालांकि यह सच है कि नॉर्थ ईस्ट में बांग्लादेशियों के प्रति हमेशा से कड़वाहट भरा माहौल रहा है। बांग्लादेशी यहां आर्थिक तौर पर मजबूत हैं, इसलिए भी स्थानीय लोग उनसे खार खाते हैं लेकिन दीमापुर वाले मामले में ऐसा नहीं है। मैंने बताया कि हमारी संस्कृति में बलात्कार बर्दाश्त ही नहीं है। यह स्थानीय नागा लोगों के गुस्से का नतीजा है।
लेकिन इतना गुस्सा कि कानून अपने हाथ में ले लिया ?
हां। नॉर्थ ईस्ट में दिल्ली की तरह बहस या गुस्सा फेसबुक, टिवटर या टेलीविजन पर जाहिर नहीं होता है। लड़ाइयां आभासी दुनिया में नहीं चलती हैं। हमारे यहां लोग अपने घरों से सड़कों पर न्याय मांगने निकलते हैं। प्रदर्शन करते हैं। मुख्यमंत्री आवास घेरते हैं। यहां न्याय के लिए सरकार पर निर्भर नहीं रहा जाता है बल्कि न्याय खुद किया जाता है।
पहले भी कभी ऐसा हुआ ?
हां होता ही रहता है। मणिपुर में ड्रग्स लेने वालों से महिलाएं खुद निपट लेती हैं। लोग जागरूक हैं। कई साल पहले मणिपुर में आठ वर्ष की लुंगनीला एलिजाबेथ नाम की लड़की से बलात्कार कर उसकी हत्या कर दी गई थी। जबकि बलात्कारी स्थानीय लोग थे। उस मामले में लोगों ने आरोपियों के घर जलाकर खाक कर दिए थे। सेना द्वारा मनोरमा के बलात्कार वाले मामले में हमने देखा है कि स्थानीय महिलाओं ने कैसे रिएक्ट किया। यहां जनआंदोलन मजबूत हैं।