अच्छे दिन धीरे-धीरे आएंगे- लार्ड स्वराज पॉल
प्रवासी भारतीयों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल को आप किस रूप में देखते हैं?
प्रवासी भारतीयों को अपनी धरती से जोडऩे में प्रधानमंत्री की बड़ी भूमिका है। एक प्रवासी होने के नाते मेरा मानना है कि 35 सालों के बाद मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होने प्रवासी भारतीयों की ताकत एवं क्षमता को पहचाना है।
लेकिन कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री देश की चिंता कम दुनिया की चिंता ज्यादा कर रहे हैं?
ऐसा नहीं है। प्रधानमंत्री वैश्विक स्तर पर भारत की पहचान बढ़ा रहे हैं। आज वह जहां भी जा रहे हैं वहां लोगों का भरपूर समर्थन मिल रहा है। यही कारण है कि जो प्रवासी हैं वे प्रधानमंत्री की क्षमता को देख कर भारत में निवेश की योजना बना रहे हैं।
आप भारत में किस तरह का निवेश कर रहे हैं?
हम तो हर क्षेत्र में निवेश करना चाहते हैं। जो हमारी क्षमता है उसमें हम चाहते हैं कि भारत के लिए कुछ किया जा सके। इसलिए रक्षा से लेकर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में कुछ करना चाहता हूं। मैं ब्रिटेन में कई शैक्षिक संस्थानों से जुड़ा हूं। इस क्षेत्र के बारे में मुझे भी जानकारी है और मैं चाहता हूं कि भारत में शिक्षा के विकास के लिए मैं अपने अनुभवों को साझा कर सकूं।
लेकिन प्रवासी भारतीयों द्वारा निवेश को लेकर जो बड़ी-बड़ी बातें की जा रही थी उन बातों में ज्यादा दम नहीं दिखाई पड़ता?
ऐसा नहीं है। प्रवासी भारतीय निवेश करना चाहते हैं। सरकार की पहल सकारात्मक है। जब सकारात्मक पहल होगी तो निवेश भी होगा।
लेकिन अभी कोई बड़ा निवेश नहीं हो रहा है?
अभी नरेंद्र मोदी सरकार ने जो पहल की है उसका असर कुछ समय बाद दिखेगा। अभी प्रवासी देख रहा है कि भारत में किस तरह का निवेश किया जा सकता है। जैसे ही कुछ सकारात्मक लगेगा निवेश होना शुरु हो जाएगा।
नरेंद्र मोदी की सरकार को एक साल पूरा होने जा रहा है, आप इस बारे में क्या कहना चाहेंगे?
किसी भी सरकार के प्रदर्शन का आकलन एक साल में करना जल्दबाजी होगी। जो पहल नरेंद्र मोदी ने की है उसका असर आने वाले दिनों में दिखेगा। इतने बड़े लोकतांत्रिक देश में रातों-रात चमत्कार नहीं होगा। क्योंकि देश बड़ा है और समस्याएं जटिल। हमें कुछ दिन और इंतजार करना होगा।
लेकिन देश की जनता का मूड अब बदलने लगा है। जिस ऊर्जा के साथ लोकसभा चुनाव में जनता ने नरेंद्र मोदी को वोट दिया। वह ऊर्जा अब दिखाई नहीं पड़ रही है?
दरअसल लोगों की सोच है कि सबकुछ जल्दी मिल जाए। कुछ पाने के लिए इंतजार भी करना होता है। मुझे मालूम है कि चुनाव में जो वायदे होते हैं, जनता चाहती है कि सरकार बनते ही वे पूरे हो जाएं। लोगों ने एक उम्मीद के साथ वोट दिया और उसी उक्वमीद को वह तुरत पाना चाहते हैं। मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री के पास काफी विचार, ऊर्जा और इच्छा है लेकिन उसे पूरा होने में समय लगेगा।
तो आपके विचार से एक साल में सरकार का आकलन करना ठीक नहीं है?
बिल्कुल, अगर कुछ परिणाम देखना है तो थोड़ा समय और इंतजार करना होगा। कुछ सकारात्मक अगर हो रहा है तो यह शुभ संकेत है।
लेकिन एक साल के अंदर ही देश में सांप्रदायिकता के मामले बढ़े हैं। महंगाई बढ़ी है, अच्छे दिन का वायदा जो था वह लोगों में निराशा का भाव पैदा कर रहे हैं?
यह दुखद है। भारत धर्मनिरपेक्ष मुल्क है और यहां अगर सांप्रदायिक घटनाएं घटित होती हैं तो चिंता का विषय है। महंगाई की जहां तक बात है तो उसके लिए सरकार को दोषी ठहराना ठीक नहीं है। मौसम खराब है, फसल बर्बाद हो रही है निश्चित तौर पर महंगाई बढ़ेगी। लेकिन पेट्रोल-डीजल की कीमत कम हुई है। हर क्षेत्र का आकलन होना चाहिए। लोगों को अभी निराश होने की जरुरत नहीं है।
पिछले एक साल में देश का सियासी परिदृश्य बदला है। पहले केंद्र में भाजपा को बड़ी जीत और बाद में दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार। इस बारे में आप क्या कहेंगे?
लोकतांत्रिक देश में यह कोई नई बात नहीं है। जनता का मूड जिधर होगा उधर ही सत्ता होगी। अगर किसी शासन से जनता ऊब गई तो निश्चित तौर पर वह नई सत्ता चाहेगी। यही केंद्र में हुआ और इसी का रूप दिल्ली में देखने को मिला।
लेकिन कहा जाता है कि जबर्दस्त प्रचार अभियान की वजह से भाजपा और आम आदमी पार्टी को सफलता मिली?
निश्चित तौर पर यह प्रचार अभियान हो सकता है। लेकिन जनता को जागरूक भी प्रचार अभियान ने किया। जनता ही सत्ता की कुर्सी तक पहुंचाती है, जनता ही कुर्सी से उतारती है। आज इस बात को समझना होगा कि आम आदमी की ताकत बढ़ी है, तभी नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं और अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री।