मैं काल्पनिक नहीं प्रामाणिक पर भरोसा करता हूं-रामदरश मिश्र
रामदरश मिश्र ने अपनी कविताएं सुनाईं, गजलों की फरामईश पूरी की। अपने बचपन के किस्से सुनाए। काशी के दिन और फिर नौकरी के लिए गुजरात से दिल्ली के सफर को रोचक अंदाज में सुनाया। लगभग 15 बड़े पुरस्कार प्राप्त इस लेखक को देखकर अंदाजा लगाना कठिन होता है कि उनकी झोली व्यास, साहित्य भूषण, शलाका, दयावती मोदी कवि शेखर, विश्व हिंदी, भारत भारती, सारस्वत और ताजा अकादमी पुरस्कारों-सम्मानों से भरी हुई है। उनसे जो भी प्रश्न पूछा गया उन्होंने सरलता और सहजता के साथ उसका उत्तर दिया।
आप गांव को आज भी इतनी शिद्दत से याद करते हैं। जबकि शहर आकर लोग खुश होते हैं कि गांव से पीछा छूट गया?
जो लोग शहर आते हैं, वे शहर नहीं आते बल्कि चकाचौंध की दुनिया में आते हैं। वे आते ही शहर का चिकनापन ओढ़ लेते हैं। गांव मुझे इसलिए याद आता है क्योंकि मुझे गांव ने जो दिया प्रामाणिक दिया। मुझे उसे याद नहीं करना पड़ता, वह मेरे अंदर ही रहता है। मेरी रचनाओं में भी मैं काल्पनिक कुछ नहीं रचता।
ऐसी कौन सी रचना है जिसे लिखने में आपको कल्पना को कष्ट देना पड़ा?
मुझे तो ऐसी रचना याद नहीं पड़ती।
आपने उपन्यास लिखे, कहानियां लिखीं, सभी बहुत चर्चित हुईं। आपको मलाल नहीं है कि साहित्य अकादमी आपको कविता की पुस्तक पर मिला?
इसमें मलाल कैसा। सभी मेरी ही रचनाएं हैं। अकादमी को जो अच्छा लगा वह किया। मैं इसका सम्मान करता हूं।
आपके दिल के करीब कौन सी रचना है?
आम के पत्ते और आग की हंसी।